रायपुर : छत्तीसगढ़ में कुछ महीनों बाद चुनाव हैं.ऐसे में एक बार फिर राजनीतिक दल सक्रिय हो चुके हैं.राजनीतिक दल प्रदेश के हर सीट से जीतने वाले कैंडिडेट्स के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. वहीं आगामी चुनाव में महिला प्रत्याशियों की भूमिका को लेकर भी अलग माहौल बन रहा है. कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में 50 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की बात कही गई है. दूसरी तरफ बीजेपी अपने दल में महिलाओं की सक्रियता को बढ़ा रही है.इसका जीता जागता उदाहरण भी देखने को मिल रहा है.कांग्रेस ने जहां प्रदेश प्रभारी की कमान कुमारी शैलजा को सौंपी है.वहीं बीजेपी ने लता उसेंडी और सरोज पाण्डेय को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर कहीं ना कहीं महिलाओं को संदेश दिया है कि आने वाले चुनाव में महिलाओं की भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता.
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों का आंकड़ा : छत्तीसगढ़ के वर्तमान राजनीतिक समीकरण की बात की जाए तो मौजूदा विधानसभा में 16 महिला विधायक हैं. इसमें उपचुनाव के नतीजे भी शामिल हैं. जिसमें कांग्रेस की तरफ से महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी .साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 90 सीट में से 13 सीटें महिलाओं ने जीतीं थी. विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी ने 14 महिलाओं को टिकट दिया था. वहीं कांग्रेस ने 13 महिलाओं को मैदान में उतारा था. जिसमें से तीन सीटों पर महिला प्रत्याशियों के मुकाबले में महिला प्रत्याशीं थीं. ये सीटें सारंगढ़, सिहावा और तखतपुर थी. विधानसभा चुनाव 2018 में 13 महिला विधायक विधानसभा पहुंची. जिसमें 10 कांग्रेस , एक बीजेपी, एक जोगी कांग्रेस और एक बहुजन समाज पार्टी की महिला नेत्री है.
साल 2013 में कांग्रेस ने 12 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. जिसमें से 4 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. वहीं भाजपा ने 10 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया. जिसमें से 6 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की.
साल 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने 10-10 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जिसमें से कांग्रेस की 5 और बीजेपी की 6 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की.
साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 90 में से 8 महिलाओं को टिकट दिया था.जिसमें से एक भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सकी थी.वहीं बीजेपी ने छह महिलाओं को टिकट दिया.जिसमें से 4 महिलाएं जीती.
कांग्रेस पार्टी में ही महिलाओं का सम्मान : महिलाओं को टिकट देने के मामले में वंदना राजपूत की माने तो कांग्रेस में जो महिला नेता जमीनी स्तर में शुरु से काम कर रही है.उन्हें टिकट मिलता ही है.क्योंकि चुनाव का एक सूत्र है जीतने वाले कैंडिडेट को टिकट मिलना चाहिए.इसी फॉर्मूले पर पार्टी टिकट देती है. इस बारे में कांग्रेस का मत है कि उनकी पार्टी में महिलाओं का सम्मान होता है. सिर्फ चुनाव के लिए महिलाओं को याद नहीं किया जाता.
''कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसमें महिलाओं को अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, उसमें महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है.वहीं बीजेपी आरएसएस मानसिकता वाली हैं,जहां महिलाओं को पुरुषों के पीछे रखते हैं.बीजेपी महिलाओं को लेकर सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करती है. चुनाव नजदीक आते ही महिलाओं को आगे किया जाता है.लेकिन टिकट वितरण के दौरान इन्हें प्राथमिकता नहीं दी जाती है.''-वंदना राजपूत, कांग्रेस नेता
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी विधायक और प्रदेश प्रवक्ता रंजना साहू का दावा है कि बीजेपी ही ऐसी पार्टी है जिसने महिलाओं को सम्मान दिया है. पिछला इतिहास उठाकर देख लिया जाए तो पता चलेगा कि महिलाओं को अधिक संख्या में टिकट दिया गया.
'' महिलाएं ईमानदारी के साथ काम भी करती हैं.ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाएगा और वे जीतकर भी आएंगी.उनका विधानसभा में प्रतिशत भी ज्यादा रहेगा.'' -रंजना साहू, बीजेपी विधायक एवं प्रदेश प्रवक्ता
कांग्रेस और बीजेपी के टिकट वितरण को लेकर अपने-अपने दावे हैं.लेकिन हकीकत यही है कि किसी भी राजनीतिक दल ने उतनी संख्या में महिलाओं को टिकट नहीं बांटा जितनी वो बातें करते हैं. पिछले चुनावों के आंकड़े भी ये स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि कितनी महिलाओं को टिकट बांटे गए. राजनीति के जानकार उचित शर्मा का मानना है कि इस बारे में उनकी राजनीतिक दल के बड़े नेताओं से चर्चा हुई है.इसके लिए वो तीन वजह बताते हैं.
''पहला राजनीतिक दल के बड़े नेताओं के मुताबिक महिलाओं के साथ काम करने में बड़े लीडर्स कंफर्ट फील नहीं करते. दूसरा बहुत जल्दी महिलाएं यस मैन या यस वूमेन नहीं हो पाती है. किसी भी जगह जल्दी से अर्जेस्ट नहीं हो पाती है. तीसरी जब टिकट देने की बात आती है, जहां महिलाओं को टिकट देना अनिवार्य है उसके लिए एक निर्धारित परसेंटेज तय किया गया. तो ऐसे में उस दल के नेता अपने परिवार से संबंधित महिलाओं को टिकट दिलाते हैं. जिससे बहुत ज्यादा आम महिलाएं आगे नहीं आ पाती है.''-उचित शर्मा, राजनीति के जानकार
वादों और नारों में मौजूद रहती हैं महिलाएं : उचित शर्मा के मुताबिक छत्तीसगढ़ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दूसरे राज्यों से काफी अच्छा है.दूसरे राज्यों में महिलाओं को 50% आरक्षण और टिकट देने की बात की जाती है. लेकिन उन्हें टिकिट मिलती. उन दलों की कोशिश होती है कि नारों और वादों में इन महिलाओं को रखें.लेकिन उन्हें टिकट नहीं देते है. छत्तीसगढ़ 16-17% महिलाओं का प्रतिनिधित्व है. लोकसभा की बात की जाए जिसमें 428 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और लगभग 10% महिलाएं जीतकर भी आईं. उसमें ज्यादातर महिलाएं राजनीतिक परिवार से ही हैं या फिर जिन जनप्रतिनिधियों की मृत्यु हो जाती है उनकी पत्नियों को टिकट दिया जाता है. इसलिए कहा जा सकता है कि महिलाओं के चयन प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दलों में कहीं ना कहीं कोई कमी जरूर है.
छत्तीसगढ़ बनने के बाद कितनी महिलाएं पहुंची विधानसभा : राज्य गठन के समय पहली विधानसभा में केवल छह महिला सदस्य थीं. दूसरी विधानसभा 2003 में भी छह महिला सदस्य थीं. तीसरी विधानसभा 2008 में 12 और चौथी विधानसभा 2013 में 10 महिला सदस्य विधानसभा पहुंची. वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 13 सीटें महिलाओं ने जीती थी. इसके बाद हुए दो उप चुनाव में कांग्रेस से महिलाओं ने जीत हासिल की.जिसके बाद विधानसभा में कुल 15 महिला विधायक हो गई. इस तरह साल 2003 से लेकर अब तक हुए विधानसभा चुनाव में कुल 40 महिला विधायक चुनी गई हैं.
छत्तीसगढ़ में महिला वोटर्स की संख्या : जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 3 लाख 80 हजार है. कुल मतदाताओं की संख्या एक करोड़ 96 लाख 40 हजार 430 है. जो आबादी का लगभग 64.65% है. जिसमें पुरुष मतदाता की संख्या 98 लाख 6 हजार 906 है. जबकि महिला मतदाता 98 लाख 32 हजार 557 है. वहीं थर्ड जेंडर 767 हैं. यदि औसत की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाताओं की संख्या प्रति हजार पर 1003 हैं.