रायपुर: साल 2015 में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर तंज कसते हुए कहा था कि आजादी के 60 साल बाद भी जगह-जगह गड्ढा खोदने और गड्ढा भरने में योजना चलाई जा रही है, जो शर्म की बात है. पीएम मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार कभी भी इस स्कीम को बंद नहीं करेगी, क्योंकि यह कांग्रेस की विफलताओं का जीता जागता स्मारक है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2015 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान संसद में कहा था कि वे मनरेगा को बंद नहीं करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि, 'आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा, ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का पर ढोल पीटता रहूंगा. दुनिया को बताऊंगा कि ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 साल के पापों का परिणाम है. इसलिए मेरी राजनीतिक सूझ-बूझ पर आप शक मत कीजिए, मनरेगा रहेगा...आन, बान और शान के साथ रहेगा और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा.'
मनरेगा बना लोगों की रोजगार का प्रमुख साधन
कोरोना संकट ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा डाला. पूरे देश के अलग-अलग कोनों में मजदूर दो वक्त के निवाले के लिए तरस गए थे, लॉकडाउन ने उनसे उनकी रोजी-रोटी छीन ली. वह अपने गृहग्रामों का रुख करने लगे. प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्य को पढ़ने के बाद अब वर्तमान स्थिति की बात करें, तो दूसरे राज्यों से अपने राज्यों में पहुंचे प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा वरदान साबित हुआ. अब केंद्र सरकार इसी मनरेगा के तहत देश के कई लोगों को रोजगार मुहैया कराने का सबसे बड़ा साधन मान रही है. मनरेगा के लिए केंद्र सरकार न भारी-भरकम बजट भी जारी किया है.
मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ का अतिरिक्त बजट
केंद्र सरकार ने पिछले महीने ही इस योजना में 40 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया है. पूर्व बजट में मनरेगा के लिए केंद्र सरकार ने 61 हजार करोड़ रुपए का एलान किया था. यह 40 हजार करोड़ रुपए उससे अलग है. केंद्र सरकार के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि दूसरे राज्यों से अपने गृहग्राम पहुंचने वाले मजदूरों को वहां काम मिल सके.
देश में मनरेगा के तहत दिए रोजगारों का, छत्तीसगढ़ में लगभग 24% हिस्सा
कोरोना महामारी को देखते हुए किए गए लॉकडाउन में मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने वाली सूची में छत्तीसगढ़ देश में पहले नंबर पर है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और लोगों की आजीविका को सुरक्षित रखने के लिए छत्तीसगढ़ में करीब 18 लाख 52 हजार मजदूर काम कर रहे हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में मनरेगा के तहत दी गई नौकरियों का छत्तीसगढ़ में लगभग 24% हिस्सा है. लॉकडाउन होने के बावजूद छत्तीसगढ़ की 9 हजार 883 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत 18 लाख 52 हजार 536 मजदूरों ने काम किया.
548 करोड़ 40 लाख रुपए का मजदूरी का किया गया भुगतान
छत्तीसगढ़ में मनरेगा के अंतर्गत शुरू किए गए कामों से लॉकडाउन के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई. उसके बाद अप्रैल महीने में ही नए और पुराने कार्यों को मिलाकर कुल 548 करोड़ 40 लाख रुपए की मजदूरी का भुगतान किया गया है. राज्य सरकार ने सामग्री मद में भुगतान के लिए 210 करोड़ रुपए जारी किए थे. इसके अलावा 50 दिन के अतिरिक्त रोजगार के लिए भी 76 करोड़ 94 लाख रुपय भी जल्द जारी किया जाएगा.
मनरेगा श्रमिकों का आंकड़ा 57 हजार से पहुंचा 19 लाख
जानकारी के मुताबिक नए वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले दिन 1 अप्रैल को राज्य में मनरेगा श्रमिकों की संख्या केवल 57 हजार 536 थी. लेकिन लॉकडाउन के दौरान गांव में काम करने की जरूरत को देखते हुए राज्य सरकार ने मनरेगा कार्य शुरू किया. महीने के आखिरी में 30 अप्रैल को यह संख्या 19 लाख 50 हजार 166 तक पहुंच गई. मनरेगा जॉब कार्डधारी 10 लाख 24 हजार परिवारों को 1 करोड़ 23 लाख से ज्यादा मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध कराया गया. मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया तेजी से पूरी कर श्रमिकों को भुगतान भी किया जा रहा है. अप्रैल में काम करने वालों को 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की मजदूरी का भुगतान भी किया जा चुका है.
मनरेगा पर छत्तीसगढ़ में गरमाई सियासत
कोरोना संकट में लोगों को रोजगार की चिंता सता रही है. ऐसे में श्रमिकों के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) वरदान साबित हो रहा है. लेकिन दूसरे तरफ इसे लेकर प्रदेश में राजनीति शुरू हो गई है. छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार दूसरे राज्यों के मुकाबले प्रदेश में मनरेगा के तहत ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने का दावा कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर मनरेगा के तहत मिलने वाले रोजगार के दिनों को बढ़ाने और बकाया राशि के भुगतान की मांग की है.
मोदी के बयान पर बीजेपी की सफाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मनरेगा का उपहास उड़ाए जाने वाले बयान को लेकर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि प्रधानमंत्री का तात्पर्य था कि सिर्फ गड्ढा खोदना कोई निर्माण नहीं है, सिर्फ गड्ढे खोदवाकर मजदूरी देना सही नहीं है. इसका मतलब तभी सही होगा जब गड्ढे करा कर उसमें जरूरी निर्माण कार्य किया जाए. सच्चिदानंद उपासने का कहना था कि उस समय गड्ढे में निर्माण कराया जाना था, जो कांग्रेस सरकार ने नहीं कराया था.
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'मनरेगा को बढ़ावा देने को मजबूर हुए PM मोदी'
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी ने कहा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस योजना का उपहास उड़ाया था, उस योजना को लागू करने के लिए आज पीएम मोदी को ही मजबूर होना पड़ रहा है.
मनरेगा में 50 दिन का दिया जाए अतिरिक्त रोजगार : बीजेपी
इसी बीच बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि जब पूरे देश में मनरेगा के तहत 100 दिन का रोजगार दिया जाता था, तब तत्कालीन रमन सरकार ने 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार देने की शुरुआत की थी, यानी छत्तीसगढ़ में 150 दिनों के लिए रोजगार दिया गया. प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि कांग्रेस सरकार भी मजदूरों को 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार जल्द मुहैया कराए.
150 दिन की जगह 37 दिन का रमन सरकार ने दिया था रोजगार : कांग्रेस
प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव के इस बयान पर पलटवार करते हुए घनश्याम राजू तिवारी ने कहा की 150 दिनों का रोजगार देने के दावे करने वाली रमन सरकार के कार्यकाल में मनरेगा के तहत मजदूरों को महज 37 दिन का रोजगार दिया गया था, जबकि वर्तमान की भूपेश सरकार ने मजदूरों को 150 दिन से ज्यादा का रोजगार दिया. उनका डंका आज पूरे भारत में बज रहा है.
प्रधानमंत्री उत्साह में कुछ ज्यादा ही बोल जाते हैं : अमरजीत भगत
पीएम मोदी के मनरेगा के बयान को लेकर छत्तीसगढ़ के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्साह में कुछ ज्यादा ही बोल जाते हैं. उन्हें बातों की गंभीरता को समझना चाहिए. कोई भी योजना 2-4 उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बनाई जाती है. उनको लाभ पहुंचाने से पूरे देश को लाभ नहीं मिलता है. भगत ने कहा कि प्रधानमंत्री को इसकी गंभीरता को समझना चाहिए की आज कोरोना काल में अगर मनरेगा नहीं होता, तो उनके पास लोगों को रोजगार मुहैया कराने का कोई दूसरा साधन नहीं था.
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बता दें कि साल 2005 में आई मनरेगा योजना का मुख्य उद्देश्य गांवो के संपूर्ण विकास और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देना है. इस योजना के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को हर दिन की मजदूरी और साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है. लेकिन समय पर भुगतान न होने और कम मजदूरी दर के कारण योजना के तहत काम करने वाले मजदूर निराश हैं. वहीं अब कोरोना संक्रमण के दौरान बनी परिस्थितियों के बाद मनरेगा देश सहित प्रदेश में रोजगार का प्रमुख साधन बना हुआ है.
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मनरेगा के मामले में पहले स्थान पर छत्तीसगढ़
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष के प्रथम दो महीने अप्रैल और मई के लिए दो करोड़ 88 लाख 14 हजार मानव दिवस के रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा था. यह इस वर्ष के लिए निर्धारित कुल लेबर बजट साढ़े तेरह करोड़ मानव दिवस का 37 प्रतिशत है. चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 1996 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया है. मनरेगा में प्रदेश में प्रति परिवार औसत 23 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 16 दिन का है. इस मामले में छत्तीसगढ़ देश में पहले स्थान पर है.