रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नारा दिया था "डीजल नहीं अब खाड़ी से, डीजल मिलेगा बाड़ी से". उन्होंने साल 2014 तक डीजल के मामले में छत्तीसगढ़ के पूरी तरह से आत्मनिर्भर होने का दावा भी किया था. साथ ही रतनजोत के बीज से बायो डीजल बनाने की योजना से प्रदेश के लाखों किसानों को लाभ मिलने सहित बेरोजगारों को रोजगार मिलने का भरोसा भी दिया था, लेकिन करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी योजना का कोई फल नहीं मिला.
प्रदेश में अब कांग्रेस की सरकार आ गई है, तो ऐसे में सरकार ने रतनजोत से बायो डीजल बनाने की योजना की फाइल से धूल हटाने के संकेत दिए हैं. जानकारी के मुताबिक सरकार जल्द ही इस मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई कर सकती है.
मामले में बड़ी कार्रवाई करेगी कांग्रेस सरकार
कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के मुताबिक पिछले 15 सालों में रमन सरकार की हुकूमत में काफी भ्रष्टाचार हुआ है. ऐसा ही भ्रष्टाचार रतनजोत से बायो डीजल बनाने के मामले में किया गया है. उस दौरान करोड़ों रुपए खर्च किए गए. यहां तक कि अंबिकापुर जिले में रिपोर्ट के मुताबिक जितनी जमीन नहीं है, उससे दोगुनी जमीन पर रतनजोत को लगाए जाने की बात कही गई है'.
चौबे का आरोप है कि, 'रतनजोत से बायो डीजल बनाने की योजना में तत्कालीन मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सहित अधिकारियों ने मिलकर जमकर भ्रष्टाचार किया है. प्रदेश की जनता ने तो उनको सत्ता से बाहर कर हिसाब कर दिया है, लेकिन अब आने वाले समय में कांग्रेस सरकार भी इस मामले को लेकर बड़ी कार्रवाई करेगी'.
उपासने ने किया कार्रवाई का समर्थन
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि, 'तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के द्वारा रतनजोत से बायो डीजल बनाने की एक महत्वाकांक्षी योजना थी, जिससे रमन सिंह की गाड़ियां भी चलने वाली थीं, लेकिन ये योजना सफल नहीं हो सकी. आखिर इसके पीछे क्या वजह थी? अधिकारियों ने इस योजना का क्रियान्वयन सही ढंग से क्यों नहीं किया? इसकी जांच होनी चाहिए. देखा जाए तो उपासने ने सरकार के रतनजोत मामले में कार्रवाई की बात का समर्थन किया है.
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300 करोड़ रुपए खर्च कर रोपे गए थे रतनजोत
दरअसल, भाजपा शासनकाल में लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी रतनजोत से बायोडीजल निकालने की योजना फेल रही. उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का दावा था कि साल 2014 तक छत्तीसगढ़ डीजल के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा. इसके लिए राज्य में 1.65 लाख हेक्टेयर जमीन पर रतनजोत के पौधे लगाए गए थे. प्रदेश को डीजल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 12 साल में करीब 300 करोड़ रुपए खर्च कर रतनजोत के पौधे रोपे गए, लेकिन बाद में न तो रतनजोत से बायो डीजल बनाने का प्लांट लगा और न ही उससे डीजल बनाया गया. यह योजना पूरी तरह से फेल हो गई और इससे संबंधित फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन अब वर्तमान की कांग्रेस सरकार ने इस मामले में बड़ी कार्रवाई करने के संकेत दिए हैं.