रायपुर: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुनकुरी में चुनाव प्रचार के दौरान विष्णुदेव साय को बड़ा आदमी बनाने का वादा किया था. खुद विष्णुदेव साय उस बात को भूल चुके थे लेकिन आज जब सीएम के नाम का ऐलान हुआ तो साय के कानों में अमित शाह की कही बात गूंजने लगी. एक सामान्य दरी उठाने वाले कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर साय ने यूं ही नहीं तय किया. एक राजनीति के बाद विष्णुदेव साय ने ये मुकाम पाया.
शाह ने लिखी साय की पटकथा: छ्त्तीसगढ़ की धरती पर कमल खिलाने वाले विष्णुदेव साय के प्रचार के लिए अमित शाह कुनकुरी की धरती पर पहुंचे थे. शाह ने प्रचार के मंच से ये वादा किया था कि आप कमल खिलाओ मैं विष्णुदेव साय को बड़ा आदमी बना दूंगा. जनता और साय दोनों ने बात को चुनाव प्रचार का हिस्सा भर माना. बीजेपी पर्यवेक्षकों ने बीजेपी विधायक दल की बैठक में साय के नाम का ऐलान सीएम के लिए किया तो विष्णुदेव साय को वो बात याद आ गई. अमित शाह ने जो वादा साय और जनता से किया था उसे पूरा कर दिया. साय छ्त्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.
23 से 24 पर निशाना: बीजेपी आलाकमान की मंशा है कि कि 2023 में छत्तीसगढ़ नए चेहरों को मौका देकर 2024 के लोकसभा चुनाव को अपने पक्ष में करे. राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से कांग्रेस ने इंडी गठबंधन बनाया है उसे ध्यान में रखकर बीजेपी आलाकमान अभी से 2024 की तैयारियों में जुट गई है. विष्णुदेव साय को पार्टी ने जिस तरह से आगे किया है उससे साफ है कि वो जनता के बीज ये संदेश लेकर जाना चाहती है कि वो सबका साथ सबका विकास के मूल मंत्र पर कायम है. कांग्रेस और दूसरी पार्टियां लंबे वक्त से बीजेपी पर अगड़ी जाति की राजनीति करने का आरोप लगाती रही है. बीजेपी ने अपने इस दांव से विपक्ष के सभी दावों की हवा निकाल दी है.
साय को सीएम चुनने की पीछे की कहानी: साय एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर सांसद और फिर सीएम बनने वाले हैं. बीजेपी का एक सामान्य कर्ताकर्ता भी जब इस पद तक पहुंच सकता है तो दूसरा कार्यकर्ता क्यों नहीं. इस सोच से बीजेपी कार्यकर्ताओं में जोश दोगुना होगा. 2024 में भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं के इसी जोश से आगे बढ़ेगी और इंडी गठबंधन को मात देने की तैयारी करेगी. साय न सिर्फ आदिवासी समाज के बड़े नेता है बल्कि केंद्रीय मंत्री जैसे पद पर रह चुके हैं. पार्टी चाहती है कि उनकी छवि को आगे बढ़ाकर आदिवासी वोटों को बीजेपी के पक्ष में एकतरफा कर लिया जाए.
सियासत साय को विरासत में मिली: सरपंच के पद से सियासी सफर शुरु करने वाले साय अमित शाह के पैमाने में बिल्कुल फिट बैठते थे. साय ने तीन बार छत्तीसगढ़ की भाजपा इकाई का नेतृत्व किया. साय के दादाजी भी मनोनित विधायक थे, उनके पिता खुद जनसंघ के आजीवन सदस्य रहे. सियासत साय को विरासत में मिली. उनकी काबिलियत को देखकर ही मोदी सरकार में उनको मंत्री बनाया गया. साल 1998 में साय ने पत्थलगांव सीट से चुनाव लड़ा लेकिन वो हार गए. पत्थलगांव की उस हार को साय कभी भूले नहीं. जनता के बीच गए और दूसरी बार में वो जशपुर से विधायक चुने गए. वहां से शुरु हुई साय की सियासी यात्रा फिर रुक नहीं. उनकी मेहतन और लगन को आज पार्टी ने सलाम किया और सीएम के पद के लिए चुना