रायपुर: बीजेपी नेता लता उसेंडी वैसे तो सियासी पिच पर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. एक धाकड़ आदिवासी नेता के तौर पर लता उसेंडी का नाम लिया जाता है. जमीनी स्तर से उठकर ये राष्ट्रीय फलक तक का बीजेपी में सफर तय की हैं.
लता उसेंडी का परिचय: लता उसेंडी का जन्म 1 मई 1974 को धौड़ाई गांव में हुआ. इनके पिता का नाम मंगलराम उसेंडी है. कहा जाता है कि, कोंडागांव सीट लता उसेंडी को पिता से विरासत में मिली. स्नातक तक की शिक्षा दीक्षा लता उसेंडी की है. पढ़ाई के बाद ये सामाजिक जीवन में उतर गईं.
सियासी सरफनामा: लता उसेंडी को बीजेपी में पहली बार जिम्मेदारी 1998 में मिली. 1999 में लता उसेंडी पहली बार पार्षद बनीं. इनकी प्रतिभा को पार्टी ने तरजीह देते हुए साल 2002 में इन्हें कोंडागांव जिला महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद ये विधानसभा के चुनावी पिच पर उतरीं. 2003 में बीजेपी ने इन्हें कोंडागांव से टिकट दिया. पार्टी के भरोसे को कायम रखते हुए लता उसेंडी को जीत मिली. इसके बाद इन्हें विधानसभा की कई समितियों में रखा गया. फिर साल 2005 में महिला बाल विकास मंत्रालय का जिम्मा छत्तीसगढ़ शासन में दिया गया. 2008 में लता उसेंडी फिर कोंडागांव से विधायक चुनी गईं. उसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी राजनीतिक समझ और आदिवासी समाज में पकड़ को देखते हुए बीजेपी इन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. 2023 के चुनाव में इन्होंने फिर से कोंडागांव में अपना परचम लहराया और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे मोहन मरकाम को हराया.
बेदाग छवि का असर: लता उसेंडी तेज तर्रार नेता हैं. 31 साल की उम्र शायद इसी वजह से इन्हें रमन सरकार में मंत्री का पद मिला. आदिवासी समाज में इनकी मजबूत स्तंभ के चलते बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इन्हें अपनी टीम में शामिल किया. लता उसेंडी को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया. आदिवासी समाज में बीजेपी ने इसके जरिए लता उसेंडी के पावर पॉलिटिक्स का संदेश दिया.