ETV Bharat / state

herbal farming in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ पूरी दुनिया के लिए बन सकता है हर्बल बास्केट-राजाराम त्रिपाठी

छत्तीसगढ़ में हर्बल खेती के लिए अपार संभावनाएं हैं. इस बात की तस्दीक हर्बल खेती के जानकार और आयुष मंत्रालय के मेडिसिनल प्लांट बोर्ड सदस्य राजाराम त्रिपाठी ने की है. उनका कहना है कि सरकार अगर हर्बल खेती को हॉर्टिकल्चर या एग्रीकल्चर विभाग में शामिल कर ले तो यह मुमकिन हो सकता है. इससे कई किसान फिर जुड़ेंगे. इस तरह छत्तीसगढ़ पूरी दुनिया के लिए हर्बल बास्केट बन सकता है.

herbal farming in Chhattisgarh
हर्बल खेती के जानकार राजाराम त्रिपाठी
author img

By

Published : Jan 28, 2022, 10:36 PM IST

रायपुर: राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके राजाराम त्रिपाठी छत्तीसगढ़ के पहले किसान हैं जिन्हें आयुष मंत्रालय के मेडिसिनल प्लांट बोर्ड में बतौर सदस्य स्थान मिला है. राजाराम त्रिपाठी पिछले 25 वर्षों से जैविक और औषधीय खेती के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं. इनसे प्रेरित होकर प्रदेश के सैकड़ों किसानों ने इनकी खेती के मॉडल को अपनाया है. ईटीवी भारत ने बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव के किसान राजाराम त्रिपाठी से किसानी और किसानों से जुड़े विषयों को लेकर खास बातचीत की है.

हर्बल खेती के जानकार राजाराम त्रिपाठी से खास मुलाकात

सवाल : कोरोना काल के 2 वर्षों ने समाज के सभी वर्गों के काम को प्रभावित किया , इस दौरान किसानों को कितना नुकसान हुआ है .

जवाब : कोरोना ने पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. इससे छोटे व्यापारी ज्यादा दुखी रहे , बड़े व्यापारियों की आय में वृद्धि ही हुई. देश का किसान इस दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, विशेषकर साग-सब्जी उगाने वाले किसान . जिन्हें लॉकडाउन के समय ना तो बाजार मिल पाया और ना ही अपनी फसल के उचित दाम मिल पाए . साथ ही साथ इस दौर में खेती की इनपुट कास्ट में भारी वृद्धि हुई. खाद बीज और दवाइयों के रेट काफी बढ़ गए डीजल के दाम काफी बढ़े. जिससे किसानों की कमर टूट गई. खेती तो पहले से ही घाटे का सौदा था. लेकिन अब भारत की खेती आईसीयू में पड़ी हुई है .

सवाल : आपको क्यों लगता है कि , प्रदेश में परंपरागत धान की खेती करने वाले किसानों को जैविक और औषधीय खेती करनी चाहिए.

जवाब : छत्तीसगढ़ जंगलों से आच्छादित प्रदेश है . यहां लगभग 44% वन है . जलवायु अच्छी है , लोग मेहनती हैं . मिट्टी उपजाऊ है. बावजूद इसके यहां धान की ही खेती की जाती है . एक पुरानी कहावत है कि धान और गरीबी का चोली दामन का साथ है. ऐसे में जरूरत इस बात की है , कि हम उन खेती को अपनाएं जो छत्तीसगढ़ में हो सकती हैं. छत्तीसगढ़ में इतनी संभावना है , कि यह विश्व भर के लिए हर्बल बास्केट बन सकता है. किसानों को धान के साथ इस तरह की खेती की ओर बढ़ना ही पड़ेगा तभी उनमें समृद्धि आएगी .

भारतीय मानक ब्यूरो की समिति के सदस्य बने बस्तर के किसान डॉ राजाराम त्रिपाठी

सवाल : एक ओर आप छत्तीसगढ़ को हर्बल बास्केट बनने की प्रबल प्रबल संभावना वाला राज्य बता रहे हैं , लेकिन दूसरी तरफ यहां लगातार जंगलों की कटाई भी हो रही है. क्या यह भी एक वजह है कि औषधीय खेती की जाए

जवाब : सही बिंदु को उठाया है आपने , देश में 25 हजार से ज्यादा आयुर्वेदिक कंपनियां हैं. जिनको कच्चे माल के लिए जड़ी बूटियों की जरूरत होती है. जंगल तेजी से कट रहे हैं.वन भूमि पट्टा कानून की वजह से भी वनों की बेदर्दी से कटाई हुई है. आगे चलकर हम परंपरागत जंगल ,जड़ी-बूटियों की आपूर्ति नहीं कर पाएंगे. ऐसे में जरूरत आ गई है कि उन जड़ी-बूटियों को खेतों में उगाया जाए. हालांकि सच्चाई यह भी है कि राज्य बनने के बाद , हमारे प्रदेश को हर्बल स्टेट घोषित किया गया था लेकिन यह अभी तक नारा ही बनकर रह गया है.

सवाल : आप शक्कर और चावल के सब्स्टीट्यूड की खेती भी कर रहे हैं . यह डायबिटीज के पेशेंट के लिए कितना फायदेमंद है .

जवाब : स्टीविया एक ऐसा पौधा है जिसे हम मीठी तुलसी भी कहते हैं . इसकी पत्तियां शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठी होती हैं. जीरो कैलोरी भी होता है और यह शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए यह दवाई का काम करता है. इसमें अच्छी बात यह भी है कि गन्ने की तुलना में इसकी खेती में सिर्फ 10% ही पानी लगता है. इसे 21वीं सदी का फसल भी माना जाता है. आज पूरे देश भर में सबसे बड़े पैमाने पर इसकी खेती बस्तर में ही हो रही है. बस्तर के आदिवासियों के साथ मिलकर यह खेती की जा रही है. डायबिटीज रोगियों के लिए स्टीविया वरदान की तरह है. हम काले चावल की भी खेती कर रहे हैं जिसमें कई पौष्टिक गुण होते हैं. यह भी किसानों के लिए ज्यादा फायदे वाली फसल साबित होगी.

लालफीताशाही में उलझा छत्तीसगढ़ के किसानों का सपना

सवाल : क्या बस्तर की तस्वीर बदल रही है. क्योंकि बस्तर का जिक्र करते ही लोगों के मन में यहां की हिंसा की छवि दिखाई देती है. क्या अब यहां के लोगों का रुझान भी जैविक और औषधीय खेती की ओर बढ़ रहा है .

जवाब : किसानों की रूचि बदलने में बड़ा वक्त लगता है . मुझे करीब 25 साल लगे, लेकिन अब धीरे-धीरे किसान जुड़ रहे हैं और काला चावल ,काली मिर्च और स्टीविया की खेती भी कर रहे हैं. छोटे पैमाने पर ही सही मगर सकारात्मक शुरुआत हुई है, और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आने लगे हैं.

सवाल : दिल्ली में हुए किसान आंदोलन में छत्तीसगढ़ के किसानों की भूमिका क्या रही है.

जवाब : तीनों कानूनों के खिलाफ लड़ाई का सूत्रपात कोंडागांव से ही हुआ था. इसके लिए छत्तीसगढ़ को श्रेय जाता है. इन बिलों की खामियों के बारे में हमने सबसे पहले किसान नेताओं को अवगत करवाया था. शुरुआत में तो देश के ,कई बड़े किसान नेताओं ने भी इन बिलों का स्वागत कर दिया था. मगर हम लोगों ने इसको पढ़कर इसका विरोध किया , जिसके बाद राकेश टिकैत और युद्धवीर सिंह जैसे बड़े किसान नेता भी छत्तीसगढ़ आये. इसी वजह से किसान संगठनों ने गाजीपुर मोर्चे पर मेरा सम्मान भी किया. हालांकि मैं इसका श्रेय व्यक्तिगत न लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश को देता हूं .

सवाल : प्रदेश में फसल चक्र परिवर्तन की बात काफी पहले से की जाती रही है. आपको क्यों लगता है कि फसल चक्र परिवर्तन होना जरूरी है .

जवाब : समय की मांग है , कि किसान बाजार के हिसाब से खेती करें . मांग और आपूर्ति के हिसाब से फसल का चयन किया जाना चाहिए . छत्तीसगढ़ की जलवायु इतनी अच्छी है कि लगभग सभी तरह की फसलें यहां हो सकती हैं . अगर हम केवल धान की ही फसलें लेते रहे और सरकार के भरोसे रहें कि उसे ,समर्थन मूल्य में सरकार खरीद ले, तो यह समीकरण ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा और इस समीकरण में ,सरकार को कम और किसानों को ज्यादा नुकसान होगा. अगर किसानों को फायदा लेना है तो उन्हें सरकार की ओर मुंह नहीं ताकना चाहिए बल्कि उन्हें नई फसलें और नए बाजार ,खुद तलाशने चाहिए .

कृषि क्षेत्र की बढ़ रहीं उम्मीदें, क्या बजट पर दिखेगा 'किसान आंदोलन' का असर

सवाल : किसानों के हित में सरकार द्वारा स्थाई पहल, क्या की जानी चाहिए .

जवाब : वर्तमान सरकार किसान आकांक्षाओं की सरकार है. किसानों ने ही इन्हें जीत दिलाई है . हालांकि इन्होंने सरकार आने के बाद कुछ अच्छी योजनाएं भी संचालित की हैं. ये योजनाएं धरती पर कितना क्रियान्वित हो पाएंगी ,अधिकारी इन योजनाओं से कितना जुड़ पाएंगे यह बड़ा सवाल है. योजनाओं की सफलता इस पर निर्भर करती है कि जिम्मेदार अधिकारी ,उन योजनाओं से किस तरह जुड़ते हैं. अगर हम बात करें औषधीय खेती की तो सरकार अभी भी वनोपजों पर ही आश्रित है. जो ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है.

सवाल : सरकार की ओर से लगातार किसानों को ,दलहन तिलहन की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है . इसे लेकर अपील भी की जा रही है . क्या आपको लगता है , कोई ठोस पहल होनी चाहिए.

जवाब : केवल अपील से काम नहीं चलेगा. जरूरत है किसानों के लिए ठोस योजना लेकर आने की और उनके उत्पादों की समुचित खरीदी के लिए व्यवस्था बनाने की . हर्बल जैसे विभागों को हॉर्टिकल्चर या एग्रीकल्चर को दिया जाए तभी अच्छे परिणाम आ सकते हैं. इसके साथ ही योजनाओं के साथ किसानों को जोड़ा जाए और जब तक यह काम नहीं होगा तब तक योजनाओं का सफल होना कठिन है.

सवाल : आप प्रदेश के पहले किसान हैं जो मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सदस्य बनाए गए हैं. बोर्ड में काम किस तरह होता है और केंद्र की सरकार कितनी गंभीर है.

जवाब : मुझे भारत सरकार के आयुष मंत्रालय में मेडिसिनल प्लांट बोर्ड का सदस्य बनाया गया है. हाल ही में सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान औषधीय खेती को प्रमोट करने के लिए किया था. लेकिन यह योजना भी अब तक वास्तविक किसानों तक नहीं पहुंची है . राज्य और केंद्र दोनों ही जगह, योजनाओं और लाभार्थी किसानों के बीच दूरी नजर आती है. इस गैप को हमें दूर करना होगा तभी इसका फायदा किसानों तक पहुंचेगा

रायपुर: राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके राजाराम त्रिपाठी छत्तीसगढ़ के पहले किसान हैं जिन्हें आयुष मंत्रालय के मेडिसिनल प्लांट बोर्ड में बतौर सदस्य स्थान मिला है. राजाराम त्रिपाठी पिछले 25 वर्षों से जैविक और औषधीय खेती के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं. इनसे प्रेरित होकर प्रदेश के सैकड़ों किसानों ने इनकी खेती के मॉडल को अपनाया है. ईटीवी भारत ने बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव के किसान राजाराम त्रिपाठी से किसानी और किसानों से जुड़े विषयों को लेकर खास बातचीत की है.

हर्बल खेती के जानकार राजाराम त्रिपाठी से खास मुलाकात

सवाल : कोरोना काल के 2 वर्षों ने समाज के सभी वर्गों के काम को प्रभावित किया , इस दौरान किसानों को कितना नुकसान हुआ है .

जवाब : कोरोना ने पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. इससे छोटे व्यापारी ज्यादा दुखी रहे , बड़े व्यापारियों की आय में वृद्धि ही हुई. देश का किसान इस दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, विशेषकर साग-सब्जी उगाने वाले किसान . जिन्हें लॉकडाउन के समय ना तो बाजार मिल पाया और ना ही अपनी फसल के उचित दाम मिल पाए . साथ ही साथ इस दौर में खेती की इनपुट कास्ट में भारी वृद्धि हुई. खाद बीज और दवाइयों के रेट काफी बढ़ गए डीजल के दाम काफी बढ़े. जिससे किसानों की कमर टूट गई. खेती तो पहले से ही घाटे का सौदा था. लेकिन अब भारत की खेती आईसीयू में पड़ी हुई है .

सवाल : आपको क्यों लगता है कि , प्रदेश में परंपरागत धान की खेती करने वाले किसानों को जैविक और औषधीय खेती करनी चाहिए.

जवाब : छत्तीसगढ़ जंगलों से आच्छादित प्रदेश है . यहां लगभग 44% वन है . जलवायु अच्छी है , लोग मेहनती हैं . मिट्टी उपजाऊ है. बावजूद इसके यहां धान की ही खेती की जाती है . एक पुरानी कहावत है कि धान और गरीबी का चोली दामन का साथ है. ऐसे में जरूरत इस बात की है , कि हम उन खेती को अपनाएं जो छत्तीसगढ़ में हो सकती हैं. छत्तीसगढ़ में इतनी संभावना है , कि यह विश्व भर के लिए हर्बल बास्केट बन सकता है. किसानों को धान के साथ इस तरह की खेती की ओर बढ़ना ही पड़ेगा तभी उनमें समृद्धि आएगी .

भारतीय मानक ब्यूरो की समिति के सदस्य बने बस्तर के किसान डॉ राजाराम त्रिपाठी

सवाल : एक ओर आप छत्तीसगढ़ को हर्बल बास्केट बनने की प्रबल प्रबल संभावना वाला राज्य बता रहे हैं , लेकिन दूसरी तरफ यहां लगातार जंगलों की कटाई भी हो रही है. क्या यह भी एक वजह है कि औषधीय खेती की जाए

जवाब : सही बिंदु को उठाया है आपने , देश में 25 हजार से ज्यादा आयुर्वेदिक कंपनियां हैं. जिनको कच्चे माल के लिए जड़ी बूटियों की जरूरत होती है. जंगल तेजी से कट रहे हैं.वन भूमि पट्टा कानून की वजह से भी वनों की बेदर्दी से कटाई हुई है. आगे चलकर हम परंपरागत जंगल ,जड़ी-बूटियों की आपूर्ति नहीं कर पाएंगे. ऐसे में जरूरत आ गई है कि उन जड़ी-बूटियों को खेतों में उगाया जाए. हालांकि सच्चाई यह भी है कि राज्य बनने के बाद , हमारे प्रदेश को हर्बल स्टेट घोषित किया गया था लेकिन यह अभी तक नारा ही बनकर रह गया है.

सवाल : आप शक्कर और चावल के सब्स्टीट्यूड की खेती भी कर रहे हैं . यह डायबिटीज के पेशेंट के लिए कितना फायदेमंद है .

जवाब : स्टीविया एक ऐसा पौधा है जिसे हम मीठी तुलसी भी कहते हैं . इसकी पत्तियां शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठी होती हैं. जीरो कैलोरी भी होता है और यह शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए यह दवाई का काम करता है. इसमें अच्छी बात यह भी है कि गन्ने की तुलना में इसकी खेती में सिर्फ 10% ही पानी लगता है. इसे 21वीं सदी का फसल भी माना जाता है. आज पूरे देश भर में सबसे बड़े पैमाने पर इसकी खेती बस्तर में ही हो रही है. बस्तर के आदिवासियों के साथ मिलकर यह खेती की जा रही है. डायबिटीज रोगियों के लिए स्टीविया वरदान की तरह है. हम काले चावल की भी खेती कर रहे हैं जिसमें कई पौष्टिक गुण होते हैं. यह भी किसानों के लिए ज्यादा फायदे वाली फसल साबित होगी.

लालफीताशाही में उलझा छत्तीसगढ़ के किसानों का सपना

सवाल : क्या बस्तर की तस्वीर बदल रही है. क्योंकि बस्तर का जिक्र करते ही लोगों के मन में यहां की हिंसा की छवि दिखाई देती है. क्या अब यहां के लोगों का रुझान भी जैविक और औषधीय खेती की ओर बढ़ रहा है .

जवाब : किसानों की रूचि बदलने में बड़ा वक्त लगता है . मुझे करीब 25 साल लगे, लेकिन अब धीरे-धीरे किसान जुड़ रहे हैं और काला चावल ,काली मिर्च और स्टीविया की खेती भी कर रहे हैं. छोटे पैमाने पर ही सही मगर सकारात्मक शुरुआत हुई है, और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आने लगे हैं.

सवाल : दिल्ली में हुए किसान आंदोलन में छत्तीसगढ़ के किसानों की भूमिका क्या रही है.

जवाब : तीनों कानूनों के खिलाफ लड़ाई का सूत्रपात कोंडागांव से ही हुआ था. इसके लिए छत्तीसगढ़ को श्रेय जाता है. इन बिलों की खामियों के बारे में हमने सबसे पहले किसान नेताओं को अवगत करवाया था. शुरुआत में तो देश के ,कई बड़े किसान नेताओं ने भी इन बिलों का स्वागत कर दिया था. मगर हम लोगों ने इसको पढ़कर इसका विरोध किया , जिसके बाद राकेश टिकैत और युद्धवीर सिंह जैसे बड़े किसान नेता भी छत्तीसगढ़ आये. इसी वजह से किसान संगठनों ने गाजीपुर मोर्चे पर मेरा सम्मान भी किया. हालांकि मैं इसका श्रेय व्यक्तिगत न लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश को देता हूं .

सवाल : प्रदेश में फसल चक्र परिवर्तन की बात काफी पहले से की जाती रही है. आपको क्यों लगता है कि फसल चक्र परिवर्तन होना जरूरी है .

जवाब : समय की मांग है , कि किसान बाजार के हिसाब से खेती करें . मांग और आपूर्ति के हिसाब से फसल का चयन किया जाना चाहिए . छत्तीसगढ़ की जलवायु इतनी अच्छी है कि लगभग सभी तरह की फसलें यहां हो सकती हैं . अगर हम केवल धान की ही फसलें लेते रहे और सरकार के भरोसे रहें कि उसे ,समर्थन मूल्य में सरकार खरीद ले, तो यह समीकरण ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा और इस समीकरण में ,सरकार को कम और किसानों को ज्यादा नुकसान होगा. अगर किसानों को फायदा लेना है तो उन्हें सरकार की ओर मुंह नहीं ताकना चाहिए बल्कि उन्हें नई फसलें और नए बाजार ,खुद तलाशने चाहिए .

कृषि क्षेत्र की बढ़ रहीं उम्मीदें, क्या बजट पर दिखेगा 'किसान आंदोलन' का असर

सवाल : किसानों के हित में सरकार द्वारा स्थाई पहल, क्या की जानी चाहिए .

जवाब : वर्तमान सरकार किसान आकांक्षाओं की सरकार है. किसानों ने ही इन्हें जीत दिलाई है . हालांकि इन्होंने सरकार आने के बाद कुछ अच्छी योजनाएं भी संचालित की हैं. ये योजनाएं धरती पर कितना क्रियान्वित हो पाएंगी ,अधिकारी इन योजनाओं से कितना जुड़ पाएंगे यह बड़ा सवाल है. योजनाओं की सफलता इस पर निर्भर करती है कि जिम्मेदार अधिकारी ,उन योजनाओं से किस तरह जुड़ते हैं. अगर हम बात करें औषधीय खेती की तो सरकार अभी भी वनोपजों पर ही आश्रित है. जो ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है.

सवाल : सरकार की ओर से लगातार किसानों को ,दलहन तिलहन की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है . इसे लेकर अपील भी की जा रही है . क्या आपको लगता है , कोई ठोस पहल होनी चाहिए.

जवाब : केवल अपील से काम नहीं चलेगा. जरूरत है किसानों के लिए ठोस योजना लेकर आने की और उनके उत्पादों की समुचित खरीदी के लिए व्यवस्था बनाने की . हर्बल जैसे विभागों को हॉर्टिकल्चर या एग्रीकल्चर को दिया जाए तभी अच्छे परिणाम आ सकते हैं. इसके साथ ही योजनाओं के साथ किसानों को जोड़ा जाए और जब तक यह काम नहीं होगा तब तक योजनाओं का सफल होना कठिन है.

सवाल : आप प्रदेश के पहले किसान हैं जो मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सदस्य बनाए गए हैं. बोर्ड में काम किस तरह होता है और केंद्र की सरकार कितनी गंभीर है.

जवाब : मुझे भारत सरकार के आयुष मंत्रालय में मेडिसिनल प्लांट बोर्ड का सदस्य बनाया गया है. हाल ही में सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान औषधीय खेती को प्रमोट करने के लिए किया था. लेकिन यह योजना भी अब तक वास्तविक किसानों तक नहीं पहुंची है . राज्य और केंद्र दोनों ही जगह, योजनाओं और लाभार्थी किसानों के बीच दूरी नजर आती है. इस गैप को हमें दूर करना होगा तभी इसका फायदा किसानों तक पहुंचेगा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.