रायपुर: छठ महापर्व की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरु हो गई है. खरना के दिन व्रती महिलाएं सुबह से ही निर्जल रहकर भगवान सूर्य की आराधना करती हैं. फिर शाम को खीर और रोटी बनाकर भोग तैयार करती हैं. छठ मैया को भोग लगाने के बाद व्रती इस प्रसाद को खाकर व्रत की शुरूआत करती हैं. इसके बाद से व्रती निर्जल रहती हैं. 20 नवंबर को इस महापर्व का समापन है.
छठ पर्व क्यों है खास? : छठ पर्व एक ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य की पूजा पहले की जाती है. फिर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा किया जाता है. 19 नवंबर को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य और षष्ठी मैया की पूजा आराधना की जाती है. इसके साथ ही इस दिन भगवान शिव जी की भी पूजा करने का विधान है.
प्रकृति के उपासना का पर्व है छठ: छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर से होगी और इसका समापन 20 नवंबर को होगा. छठ का पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. पिछले कुछ सालों से इस त्यौहार को नेपाल में भी मनाया जाने लगा है. कई क्षेत्रों में छठ पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. छठ व्रत संतान के लिए रखा जाता है. इस पूजा में व्रती को 36 घंटे का निर्जल व्रत रखना पड़ता है. ये पर्व प्रकृति के उपासना का पर्व है. यही कारण है कि इस पर्व में प्राकृतिक चीजों को ही प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है. यहां तक कि इसमें मौसमी फलों को ही प्राथमिकता दी जाती है.
छठ पर्व की शुरुआत नहाए खाय के साथ होती है. इस पर्व के दूसरे दिन को खरना कहते हैं. इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन का व्रत रखती हैं. शाम को व्रत करने वाली महिलाएं खीर का प्रसाद बना कर ग्रहण करती हैं. छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्यदेव की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं शाम के समय नदी या तालाब में जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देती हैं. चौथे दिन सूर्यदेव को उगते हुए अर्ध्य देकर छठ पर्व का समापन किया जाता है. -प्रिया शरण त्रिपाठी, पंडित
चार दिनों की कठिन उपासना है छठ महापर्व:
- छठ पर्व का पहला दिन 17 नवंबर को है. नहाय खाय के दिन से ही इस पर्व की शुरुआत होती है. इस दिन व्रती सुबह-सुबह नदी में स्नान के बाद लौकी, चने की दाल और चावल बनाकर खाती हैं. लौकी भात खाकर व्रती व्रत की शुरुआत करती हैं. इस दिन नहाकर ही खाना पकाया भी जाता है और खाया भी जाता है. इसलिए इस दिन को नहाय खाय करते हैं.
- छठ पर्व का दूसरा दिन 18 नवंबर को है. इस दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन व्रती सुबह से ही निर्जल रहकर भगवान सूर्य की आराधना करती हैं. फिर शाम को खीर और रोटी बनाकर भोग तैयार करती हैं. छठ मैया को भोग लगाने के बाद व्रती इस प्रसाद को खाकर व्रत की शुरूआत करती हैं. इसके बाद से व्रती निर्जल रहती हैं.
- छठ पर्व का तीसरा दिन 19 नवंबर को है. इस दिन सुबह से ही व्रती छठ मैया का प्रसाद तैयार करती हैं. ठेकुआ, चावल के लड्डू, पुआ, पुड़ी मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है. बांस की टोकरी में मौसमी फलों के साथ ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि सजाकर घाट ले जाया जाता है. फिर सूप में इन फलों और प्रसाद को लेकर संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन डूबते सूर्य की उपासना की जाती है.
- छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन 20 नवंबर को सुबह-सुबह उगते हुए सूरज को अर्ध्य देकर व्रत का समापन किया जाता है. लगभग 36 घंटे के व्रत के बाद सूर्य को अर्ध्य देने की परंपरा है. सूर्य को अर्ध्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर पारण करती है.