रायपुर: पिछले कुछ समय से छत्तीसगढ़ में आरएसएस की सक्रियता बढ़ी है, जिससे कांग्रेस का चुनावी समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है. वहीं भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही है. आरएसएस ने पिछले चुनाव से दूरी बना ली थी. उसकी वजह थी भाजपा आरएसएस के हिसाब से काम नहीं कर रही थी. ना ही टिकट वितरण के दौरान आरएसएस के लोगों के सुझावों को महत्व दिया गया. जिस वजह से आरएसएस चुनाव में सक्रिय नहीं था और इसका खामियाजा भाजपा को सत्ता गंवा कर उठाना पड़ा.
आरएसएस काफी सक्रिय नजर आ रहा: इस बार आरएसएस काफी सक्रिय नजर आ रहा है. यहां तक कि पार्टी के प्रमुख पदों पर भी आरएसएस बैकग्राउंड पर लोगों को नियुक्ति दी जा रही है. हालांकि आरएसएस को राजनीतिक दल नहीं कहा जाता है. बावजूद इसके, इनका चुनाव में काफी बड़ा हस्तक्षेप होता है, जिसका फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिलता है.
मोहन भागवत ने छत्तीसगढ़ में गुजारा लंबा समय: संघ प्रमुख मोहन भागवत की बात की जाए तो, पिछले साल 2022 के अंत में मोहन भागवत दो बार छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहे. पहले उनका सितंबर में दौरा रहा. इस दौरान वे रायपुर में आयोजित चिंतन शिविर में शामिल हुए. उसके बाद उनका नवंबर में छत्तीसगढ़ का तीन दिवसीय दौरा हुआ. इस दौरान भी वे सरगुजा संभाग में रहे. इस तरह छत्तीसगढ़ में आरएसएस की सक्रियता बढ़ गई है. खासकर उन क्षेत्रों में, जहां पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में भी आरएसएस की सक्रियता देखने को मिल रही है.
भाजपा और आरएसएस के बीच सांठगांठ: छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता में लाने की जिम्मेदारी भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने आरएसएस की तिकड़ी को सौंपी है. जिसमे राष्ट्रीय संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल के साथ बिलासपुर के सांसद और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव शामिल हैं. वहीं राज्य सरकार को घेरने की जवाबदारी धरमलाल कौशिक की जगह नारायण चंदेल को दी गई थी. इनके जरिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व आगामी विधानसभा चुनाव की नैया पार करना चाह रहा है.
आरएसएस राजनीतिक दल ना होते हुए भी है सक्रिय: छत्तीसगढ़ में आरएसएस और भाजपा में आरएसएस बैकग्राउंड के नेताओं की सक्रियता पर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी का कहना है कि "यूं तो आरएसएस अपने आपको राजनीतिक दल नहीं मानता, वह सामाजिक संगठन मानता है. लेकिन पर्दे के पीछे से पूरी तरह से भाजपा के लिए काम करता है, यह सभी जानते हैं. चुनाव में भी उनकी भूमिका रहती है.
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"छत्तीसगढ़ में नहीं बचा भाजपा के पास कोई चेहरा": छत्तीसगढ़ के नेताओं को छत्तीसगढ़ भाजपा में प्रमुख पदों पर न रखने को लेकर घनश्याम राजू तिवारी ने कहा कि "छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं बचा है. जिस वजह से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने बाहर के चेहरे को यहां उतारा है. साथ ही आरएसएस बैकग्राउंड वाले लोगों को यहां जवाबदारी दी गई है. चाहे आरएसएस हो या भाजपा, इनके द्वारा लगातार धर्म जाति के नाम पर एक दूसरे को लड़ाया जाता है. लेकिन अपने वे मंसूबों में कामयाब नहीं होंगे. प्रदेश की जनता यह सब जानती है. वह इनके बहकावे में नहीं आने वाली है.
कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा ने कसी कमर: भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गौरी शंकर श्रीवास्तव कहना है कि "जिस तरह से भाजपा का आंदोलन हुआ है, जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी के नेता अब जमीन पर उतरकर आम लोगों की लड़ाई लग रहे हैं. इसको देखकर कांग्रेस पार्टी के नेता डरे हुए हैं, विचलित हैं. निश्चित तौर पर हमारा संकल्प है कि 2023 के चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकना है. इसके लिए पूरे भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता कमर कसकर सड़क की लड़ाई लड़ रहे हैं.
आरएसएस विचारधारा का भाजपा नेता करते हैं पालन : गौरी शंकर श्रीवास्तव ने कहा कि "आरएसएस को लाना, आरएसएस के नाम पर इस प्रकार की बयानबाजी करना, यह रोज का एक इनका धंधा बन चुका है. वास्तव में यह संघ को अब तक समझ नहीं सके हैं. संघ का राजनैतिक दल से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन हर राष्ट्रवादी कहीं ना कहीं संघ से तालुकात रखता है. इसलिए कांग्रेस पार्टी तय करे कि वह राष्ट्रवादी है या फिर गद्दार है. हां, भाजपा के जितने भी हमारे नेता हैं, निश्चित रूप से संघ की विचारधारा, राष्ट्रवाद की विचारधारा का अनुसरण करते हैं, ना कि विदेश की विचारधारा का अनुसरण करते हैं."
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पिछले चुनाव में आरएसएस ने बनाई थी दूरी: राजनीतिक जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि "छत्तीसगढ़ विधानसभा के पिछले चुनाव में आरएसएस को लेकर काफी बड़ा फर्क देखने को मिला. बहुत सारे सुझाव, सर्वे, विचार जो भाजपा को मानना चाहिए थे, उन्होंने नहीं माना. जिसके कारण आरएसएस ने फिजिकल रूप से बहुत ज्यादा सपोर्ट नहीं किया. उस दौरान जो सूत्रों से जानकारी आई थी कि आरएसएस ने 13 मंत्रियों के टिकट काटने की बात भी कही थी. इसमें कितना सच, कितना नहीं, यह मैं नहीं कहना चाहता.
2023 के चुनाव पर आरएसएस का है फोकस: उचित शर्मा ने कहा कि "अब 2023 चुनाव को देखते हुए जिस तरीके से आरएसएस लगातार छत्तीसगढ़ में फोकस कर रही है. माइक्रो लेवल पर नीचे जाकर आरएसएस के लोग काम कर रहे हैं. तो यही कहना चाहूंगा कि इस बार 2023 का चुनाव पर आरएसएस प्लस बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व का फोकस है. पिछली बार उन्होंने बहुत ही कॉन्फिडेंस से सबकुछ रमन सिंह पर छोड़ा हुआ था. लेकिन आज की स्थिति वह नहीं है. अभी निचले स्तर पर यानी माइक्रो लेवल ब्लॉक, ग्राम पंचायत, वनांचल क्षेत्र, शेड्यूल एरिया पर काम करने के लिए आरएसएस के लोग लगे हुए हैं.
2023 का चुनाव कांग्रेस के लिए है बड़ी चुनौती: उचित शर्मा ने कहा कि "निश्चित तौर पर 2023 का चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होगा. एंटी इनकंबेंसी, ईडी के द्वारा लगाया गया भ्रष्टाचार का आरोप, कांग्रेस विधायकों की परफॉर्मेंस भी देखनी है. 36 विधायकों पर कार्रवाई हो सकती है या उनकी टिकट कट सकती है. दूसरा आपसी सामंजस्य और सौहार्दपूर्ण वातावरण था, वह गड़बड़ा गया है. ढाई ढाई साल के मुद्दे को लेकर जो मामला था टीएस सिंह देव वाला, मरकाम संगठन और सत्ता की आपस की लड़ाई, यह सभी चीजें देखने को मिली है. जो आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी.
उचित शर्मा ने बताया "छत्तीसगढ़ भाजपा में प्रमुख पदों पर आरएसएस के बैकग्राउंड वाले जो विशेषज्ञ हैं, उन्हें बैठाया गया है. इसलिए पहले ही कह चुका हूं यह चुनाव कांग्रेस वर्सेस आरएसएस प्लस भाजपा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच है. वर्तमान के राजनीतिक समीक्षा की बात की जाए, तो मुझे लगता है कि जिस तरह से विपक्ष संघर्ष करते हुए आगे आ रहा है. मेहनत कर रहा है और आगे बढ़ रहा है. 2023 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने 50-50 के रूप में लाकर खड़ा कर दिया है.