ETV Bharat / state

नगरीय निकाय चुनाव में इस बदलाव के खिलाफ बीजेपी और JCCJ - जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमों अजित जोगी

राज्य में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव के नियमों में बदलाव को लेकर राजनीतिक दलों की सुगबुगाहट तेज हो गई है. कांग्रेस विरोधी दल इसे लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं .

फैसले का विरोध कर रहे हैं विपक्षी दल
author img

By

Published : Aug 21, 2019, 1:07 PM IST

रायपुर : कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बड़ा बदलाव करने जा रही है. ज्यादा से ज्यादा नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो, इसके लिए कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए हैं. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी इसी मुद्दे को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है. छत्तीसगढ़ के विपक्षी दल इस आशंका से सतर्क होकर इस तरह के फैसले का विरोध कर रहे हैं.

नगरीय निकाय चुनाव के नियमों में हो सकता है बदलाव

क्या छत्तीसगढ़ में महापौर और निकायों के अध्यक्षों के चुनाव के नियम में बदलाव हो सकता है ? महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता नहीं, बल्कि पार्षद करेंगे, यह व्यवस्था लागू की जा सकती है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो राज्य के राजनीतिक दलों में सुगबुगाहट की वजह बने हुए हैं.

विपक्ष इस फैसले के खिलाफ
कांग्रेस विरोधी दल इसे लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस तरह का कोई भी फैसला अगर लिया जाता है तो ये आम लोगों के मताधिकार का हनन होगा. विपक्षियों की चिंता जायज भी है, इसका कारण ये भी है कि रायपुर और बिलासपुर जिले के कांग्रेसी कार्यकर्ता और वर्तमान पार्षद इस पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग कर चुके हैं. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश इस दिशा में कदम भी बढ़ा चुका है.

भाजपा सांसद सुनील सोनी का कहना है कि, 'चुनाव डायरेक्ट हों तो बेहतर है, राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर ऐसी नीतियां तय नहीं होनी चाहिए.'

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमों अजित जोगी ने कहा कि, 'लोकतंत्र, जनभावना और निष्पक्षता की दृष्टि से ये गलत कदम होगा और हमारी पार्टी इसका विरोध करती है.'

1984 तक थी यही व्यवस्था

  • छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर निगम में पहले यही नियम लागू थे. तब जनता पार्षद चुनती थी और पार्षद महापौर और निकाय अध्यक्ष चुनते थे. ये व्यवस्था 1984 तक चली. उस वक्त महापौर का कार्यकाल सिर्फ एक साल का हुआ करता था.
  • साल 1985 से 10 सालों के लिए प्रशासक बिठा दिए गए, जिस वजह से इस बीच चुनाव नहीं हुए. उसके बाद 1995 में जब फिर से चुनाव हुआ, तो जनता ने पार्षदों को चुना और पार्षदों ने महापौर का चुनाव किया था.
  • प्रदेश के बाकी नगरीय निकायों में यही नियम लागू रहा. इसके बाद नियम में बदलाव किया गया. 1999 से जनता सीधे पार्षदों के साथ महापौर और अध्यक्षों का भी चुनाव करने लगी.
  • साल 2000, 2004, 2010 और 2015 का चुनाव ऐसे ही हुआ. कांग्रेस के भीतरखाने में अब पुरानी व्यवस्था को अपनाने की मांग फिर से उठी है. हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व महापौर किरणमयी नायक इस बारे में खुलकर नहीं कह पाई.

रायपुर : कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बड़ा बदलाव करने जा रही है. ज्यादा से ज्यादा नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो, इसके लिए कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए हैं. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी इसी मुद्दे को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है. छत्तीसगढ़ के विपक्षी दल इस आशंका से सतर्क होकर इस तरह के फैसले का विरोध कर रहे हैं.

नगरीय निकाय चुनाव के नियमों में हो सकता है बदलाव

क्या छत्तीसगढ़ में महापौर और निकायों के अध्यक्षों के चुनाव के नियम में बदलाव हो सकता है ? महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता नहीं, बल्कि पार्षद करेंगे, यह व्यवस्था लागू की जा सकती है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो राज्य के राजनीतिक दलों में सुगबुगाहट की वजह बने हुए हैं.

विपक्ष इस फैसले के खिलाफ
कांग्रेस विरोधी दल इसे लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस तरह का कोई भी फैसला अगर लिया जाता है तो ये आम लोगों के मताधिकार का हनन होगा. विपक्षियों की चिंता जायज भी है, इसका कारण ये भी है कि रायपुर और बिलासपुर जिले के कांग्रेसी कार्यकर्ता और वर्तमान पार्षद इस पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग कर चुके हैं. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश इस दिशा में कदम भी बढ़ा चुका है.

भाजपा सांसद सुनील सोनी का कहना है कि, 'चुनाव डायरेक्ट हों तो बेहतर है, राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर ऐसी नीतियां तय नहीं होनी चाहिए.'

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमों अजित जोगी ने कहा कि, 'लोकतंत्र, जनभावना और निष्पक्षता की दृष्टि से ये गलत कदम होगा और हमारी पार्टी इसका विरोध करती है.'

1984 तक थी यही व्यवस्था

  • छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर निगम में पहले यही नियम लागू थे. तब जनता पार्षद चुनती थी और पार्षद महापौर और निकाय अध्यक्ष चुनते थे. ये व्यवस्था 1984 तक चली. उस वक्त महापौर का कार्यकाल सिर्फ एक साल का हुआ करता था.
  • साल 1985 से 10 सालों के लिए प्रशासक बिठा दिए गए, जिस वजह से इस बीच चुनाव नहीं हुए. उसके बाद 1995 में जब फिर से चुनाव हुआ, तो जनता ने पार्षदों को चुना और पार्षदों ने महापौर का चुनाव किया था.
  • प्रदेश के बाकी नगरीय निकायों में यही नियम लागू रहा. इसके बाद नियम में बदलाव किया गया. 1999 से जनता सीधे पार्षदों के साथ महापौर और अध्यक्षों का भी चुनाव करने लगी.
  • साल 2000, 2004, 2010 और 2015 का चुनाव ऐसे ही हुआ. कांग्रेस के भीतरखाने में अब पुरानी व्यवस्था को अपनाने की मांग फिर से उठी है. हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व महापौर किरणमयी नायक इस बारे में खुलकर नहीं कह पाई.
Intro:cg_rpr_02_cg_nagriya_nikay_election_rule_change_spl_7203517

कुछ दिन पहले खबर आई कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बड़ा बदलाव करने जा रही है। ज्यादा से ज्यादा नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो, इसके लिए कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए हैं। तो पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी ऐसी ही सुबुगाहत तेज़ हो गई है। छत्तीसगढ़ के विपक्षी दल इस आशंका से सतर्क होकर इस तरह के आशंकित फैसले का विरोध कर रहे है।Body:Vo1 -

क्या छत्तीसगढ़ में महापौर और निकायों के अध्यक्षों के चुनाव के नियम में बदलाव हो सकता है? महापौर और अध्यक्षों यानी का चुनाव जनता नहीं, बल्कि पार्षद करेंगे, यह व्यवस्था लागू की जा सकती है? यह सवाल इस समय छत्तीसगढ़ में सियासत करने वालो के जेहन में है क्योंकि हाल ही में पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए थे। यह फार्मूला मध्यप्रदेश में लागू होगा कि नही न तो यह स्पष्ट है न छत्तीसगढ़ को लेकर तस्वीर साफ है, लेकिन जेहन में आशंका पालकर इस साल के अंत मे होने वाले नगरीय निकाय चुनावों की तैयारी में लगे राजनीतिक दलों ने सियासत शुरू कर दी है। कांग्रेस विरोधी दल अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे है। ऐसा तो आम लोगो के मताधिकार का हनन होगा। इसके पीछे सत्ताधारी दल में भय साफ तौर पर दिख रहा है।

बाईट-अजीत जोगी,सुप्रीमो,जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़(जे)

बाईट- सुनील सोनी,भाजपा सांसद

Vo2 -
विपक्षियों की चिंता जायज़ भी है ,इसका कारण यह है कि कांग्रेस के रायपुर-बिलासपुर के कार्यकर्ता और वर्तमान पार्षद इस पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग कर चुके हैं। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश इस दिशा में कदम भी बढ़ा चुका है। छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर निगम में पहले यही नियम लागू थे। तब जनता पार्षद चुनती थी और पार्षद महापौर और निकाय अध्यक्ष। यह व्यवस्था 1984 तक चली। उस वक्त महापौर का कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता था। 1985 से 10 वर्षों के लिए प्रशासक बिठा दिए गए। इस कारण इस बीच चुनाव नहीं हुआ। उसके बाद 1995 में जब फिर से चुनाव हुआ, तो जनता ने पार्षदों को चुना और पार्षदों ने महापौर का चुनाव किया था।
प्रदेश के बाकी नगरीय निकायों में यही नियम लागू रहा। इसके बाद नियम में बदलाव हुआ। 1999 से जनता ही सीधे पार्षदों के साथ महापौर और अध्यक्षों का भी चुनाव करने लगी। 2000, 2004, 2010 और 2015 का चुनाव ऐसे ही हुआ। कांग्रेस के भीतरखाने में अब पुरानी व्यवस्था को अपनाने की मांग फिर से उठी है।हालाकि कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व महापौर रही डॉ किरणमयी नायक इस बारे में खुलकर नही कहती।

बाईट- डॉ किरणमयी नायक,कांग्रेस प्रवक्ता, छग

Conclusion:Fvo-

विधानसभा चुनाव में अपनी विराट जीत का झंडा गाड़ चुकी कांग्रेस नगरीय निकाय चुनाव को लेकर ठोस रणनीति पर काम शुरू कर चुकी है ,लेकिन यह रणनीति पार्टी के सीनियर नेताओ के साथ ही भूपेश मंत्रिमंडल के सदस्यों की सोच से सिद्ध होने होगी? क्योंकि पार्टी के लिए बडी जीत का रास्ता एकबार उन्हें ही तय करना है,लिहाजा नगरीय निकाय चुनाव से चंद महीनों पहले विपक्ष चौकन्ना होकर हर ,चर्चा,गतिविधि पर नज़र तो रखेगा ही।

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.