रायपुर : कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बड़ा बदलाव करने जा रही है. ज्यादा से ज्यादा नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो, इसके लिए कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए हैं. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी इसी मुद्दे को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है. छत्तीसगढ़ के विपक्षी दल इस आशंका से सतर्क होकर इस तरह के फैसले का विरोध कर रहे हैं.
क्या छत्तीसगढ़ में महापौर और निकायों के अध्यक्षों के चुनाव के नियम में बदलाव हो सकता है ? महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता नहीं, बल्कि पार्षद करेंगे, यह व्यवस्था लागू की जा सकती है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो राज्य के राजनीतिक दलों में सुगबुगाहट की वजह बने हुए हैं.
विपक्ष इस फैसले के खिलाफ
कांग्रेस विरोधी दल इसे लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस तरह का कोई भी फैसला अगर लिया जाता है तो ये आम लोगों के मताधिकार का हनन होगा. विपक्षियों की चिंता जायज भी है, इसका कारण ये भी है कि रायपुर और बिलासपुर जिले के कांग्रेसी कार्यकर्ता और वर्तमान पार्षद इस पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग कर चुके हैं. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश इस दिशा में कदम भी बढ़ा चुका है.
भाजपा सांसद सुनील सोनी का कहना है कि, 'चुनाव डायरेक्ट हों तो बेहतर है, राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर ऐसी नीतियां तय नहीं होनी चाहिए.'
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमों अजित जोगी ने कहा कि, 'लोकतंत्र, जनभावना और निष्पक्षता की दृष्टि से ये गलत कदम होगा और हमारी पार्टी इसका विरोध करती है.'
1984 तक थी यही व्यवस्था
- छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर निगम में पहले यही नियम लागू थे. तब जनता पार्षद चुनती थी और पार्षद महापौर और निकाय अध्यक्ष चुनते थे. ये व्यवस्था 1984 तक चली. उस वक्त महापौर का कार्यकाल सिर्फ एक साल का हुआ करता था.
- साल 1985 से 10 सालों के लिए प्रशासक बिठा दिए गए, जिस वजह से इस बीच चुनाव नहीं हुए. उसके बाद 1995 में जब फिर से चुनाव हुआ, तो जनता ने पार्षदों को चुना और पार्षदों ने महापौर का चुनाव किया था.
- प्रदेश के बाकी नगरीय निकायों में यही नियम लागू रहा. इसके बाद नियम में बदलाव किया गया. 1999 से जनता सीधे पार्षदों के साथ महापौर और अध्यक्षों का भी चुनाव करने लगी.
- साल 2000, 2004, 2010 और 2015 का चुनाव ऐसे ही हुआ. कांग्रेस के भीतरखाने में अब पुरानी व्यवस्था को अपनाने की मांग फिर से उठी है. हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व महापौर किरणमयी नायक इस बारे में खुलकर नहीं कह पाई.