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SPECIAL: जैविक के नाम पर बेचा जा रहा है 'जहर', फसल और सेहत दोनों के लिए खतरनाक

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Published : Oct 7, 2020, 12:20 AM IST

दुर्ग में डुगेश निषाद नाम के किसान की फसल दवा के छिड़काव के बाद बर्बाद हो गई. किसान यह सदमा नहीं सह पाया और उसने आत्महत्या कर ली है. घटना के बाद से पूरे प्रदेश में नकली रासायनिक कीटनाशकों को लेकर नाराजगी है. आत्महत्या की घटना के बाद से प्रदेश में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग को लेकर चर्चा तेज हो गई है. ETV भारत ने इन तमाम मसलों को लेकर पड़ताल की है.

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जैविक के नाम पर बाजार में बिक रहे रासायनिक जहर

रायपुर: जैविक खेती के नाम पर किसानों की फसल और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. कई बड़ी रासायनिक कंपनियां बड़ा खेल कर रही हैं. जैविक कीटनाशकों के नाम पर कारोबारी कंपनियां अपना रजिस्ट्रेंशन तो करा रही हैं. लेकिन रासायनिक कीटनाशकों की पैकिंग कर किसानों को सीधे केमिकल प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के किसान न चाहकर भी रसायनों को जैविक उत्पाद समझकर अपनी फसलों और खेतों पर धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं. लेकिन इसके परिणाम खतरनाक हैं.

जैविक के नाम पर बाजार में बिक रहे रासायनिक जहर

दुर्ग में डुगेश निषाद नाम के किसान की फसल दवा के छिड़काव के बाद बर्बाद हो गई. किसान यह सदमा नहीं सह पाया और उसने आत्महत्या कर ली है. किसान ने सुसाइड नोट में इस बात को स्पष्ट किया है. घटना के बाद से पूरे प्रदेश में नकली रासायनिक कीटनाशकों को लेकर नाराजगी है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार ने तमाम तरह की योजनाएं चलाई हैं. फिलहाल आम लोग भी जैविक प्रोडक्ट के लिए काफी आकर्षित हुए हैं.

बड़ी कार्रवाई की जरूरत

ऑर्गेनिक और जैविक रसायनों के नाम पर कंपनियां भोले-भाले किसानों को परेशान तो कर ही रही हैं. साथ ही हमारी प्रकृति और आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही हैं. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर संकेत ठाकुर ने नकली दवा बेचने और प्रदेश में धड़ल्ले से चल रहे इस कारोबार को लेकर बड़ी कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से प्रदेश में नकली कीटनाशकों को लेकर कार्रवाई होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है. उन्होंने स्पष्ट किया कि किसान की मौत के बाद प्रदेश सरकार को बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने की जरूरत है. लगातार इस मामले को लेकर हमारे माध्यम से मांग की जाती रही है. इसके बावजूद किसी भी बड़ी कंपनी पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई है. यही वजह है कि हमारे प्रदेश में ऐसे ही नकली दवाओं का कारोबार फल-फूल रहा है. दुर्ग में किसान ने जिस दवा कंपनी का उपयोग किया है, उस कीटनाशक कंपनी पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.

पढ़ें-SPECIAL: बाढ़ का पानी तो चला गया, लेकिन पीछे छोड़ गया तबाही

व्यापारी भी चाहते हैं कार्रवाई

ETV भारत ने प्रदेश में खराब रासायनिक दवाओं के कारोबार को समझने के लिए खाद और बीज का व्यापार कर रहे व्यापारियों से बात की. व्यापारियों ने भी कार्रवाई की मांग की है. व्यापारियों ने कहा कि ऐसे कई तरह के प्रोडक्ट बाजार में बिक रहे हैं, जिनका उपयोग किसान धड़ल्ले से कर रहे हैं. लेकिन प्रोडक्ट किसान की फसल और आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. व्यापारियों ने बताया कि शहरी इलाकों में ऐसी कंपनियां काम नहीं करती हैं. लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसी कंपनियों ने अपनी पैठ बना ली है. क्योंकि ब्रांडेड कंपनियों के डीलरशिप लेने के लिए बड़ा अमाउंट डिपॉजिट करना होता है. साथ ही प्रोडक्ट भी महंगा होता है. ऐसे में नकली कीटनाशक बना रही कंपनियां ग्रामीण इलाकों में कम मार्जिन में ही किसानों को अपना प्रोडक्ट बेचती हैं. इसके चलते साफ-सुथरा काम करने वाले व्यापारी भी परेशान हैं. क्योंकि किसानों को कम कीमत में ही सस्ती कीटनाशक चाहिए होती है.

विभाग का दावा, लगातार हो रही कार्रवाई

कृषि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि प्रदेश में नकली कीटनाशकों को लेकर लगातार विभाग की ओर से कार्रवाई की जाती रही है. टीम बनाकर लगातार कार्रवाई की जा रही है. क्योंकि कीटनाशकों का बाजार बहुत व्यापक है. कीटनाशकों की जांच के लिए विभाग की ओर से लगातार छापेमारी की जा रही है. जिस तरह से शिकायत आती है विभाग इसके लिए कार्रवाई कर रहा है. रायपुर में भी लगातार इस तरह की कार्रवाई की गई है. सर्विलेंस टीम बनाकर लगातार विभागों में कार्रवाई की जा रही है.

पढ़ें-धान और सब्जी की फसल पर कीट का प्रकोप, किसानों के माथे पर पड़ी चिंता की लकीरें

नकली कीटनाशकों से किसानों को धोखा

कीटनाशकों में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को लेकर भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है. इस लिहाज से तमाम कीटनाशकों में जहरीले रसायन के उपयोग को लेकर इन गाइडलाइनों को फॉलो करना बेहद अनिवार्य किया गया है. इसके तहत तमाम रसायनिक कीटनाशकों के भंडारण, विक्रय और उपयोग को लेकर सारी जानकारी सार्वजनिक की जानी है. लेकिन छत्तीसगढ़ समेत देशभर में ऐसे कई कीटनाशक जैविक रसायनों के नाम से धड़ल्ले से बिक रहे हैं. जैविक कीटनाशकों की जगह रासायनिक कीटनाशकों को किसानों को धड़ल्ले से खपाया जा रहा है.

अखिल भारतीय किसान महासंघ ने की बड़ी कार्रवाई की मांग

देशभर के 45 राष्ट्रीय किसान संगठनों के महासंघ अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक राजाराम त्रिपाठी ने कहा है कि जैविक खेती को लेकर रासायनिक खादों और कीटनाशकों का कारोबार देश में धड़ल्ले से चल रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैविक चीजों के नाम पर रासायनिक चीजों को बेचा जा रहा है. जो कि बेहद ही खतरनाक है. जैविक के नाम पर जहर बेचा जा रहा है. जिसके दुष्परिणाम कभी भी किसी बड़ी घटना के रूप में सामने आ सकते हैं. हर रासायनिक उत्पादों को बेचने और उपयोग को लेकर गाइडलाइन होती है, जिसमें इन कीटनाशकों को उनके जहर के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड किया गया है. लेकिन जैविक रसायनों में इस तरह का लेबल नहीं होता है. हैरानी की बात यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां बायो, जैविक और ऑर्गेनिक के नाम पर धड़ल्ले से अपने प्रोडक्ट को बेच रहे हैं. अखिल भारतीय किसान महासंघ ने इस तरह की घटनाओं और प्रोडक्ट के खरीदी बिक्री और उपयोग पर बड़ी कार्रवाई की मांग की है.

पढ़ें-फसलों में लग रही बीमारी से किसान परेशान, बढ़ी कीटनाशक दवाईयों की मांग

स्वास्थ्य पर कीटनाशकों का प्रभाव

इन कीटनाशकों का प्रभाव मानव जीवन के लिए भी बेहद घातक है. रासायनिक कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, अल्जाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह के कैंसर होने का खतरा रहता है. इसके साथ ही प्रीमेच्योर बेबी और किडनी में इन्फेक्शन भी कीटनाशकों के चलते काफी बढ़े हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गजेंद्र चंद्राकर ने ETV भारत के माध्यम से किसानों और डीलरों दोनों को अलग-अलग स्तर पर खुद ही रसायनिक कीटनाशकों की परीक्षण को लेकर उपाय साझा किए हैं.

ऐसे करें आसानी से परीक्षण

  • इसके लिए केचुए और इल्लियां जैसे छोटे कीड़ों को रखकर उन पर इस तरह की दवाओं का छिड़काव करने के साथ ही इस तरह की दवाओं के हकीकत सामने आ सकती है. रसायनिक दवाओं के उपयोग करने से इस तरह के कीटों की तत्काल से लेकर 72 घंटे के दौरान मौत हो जाती है. वहीं जैविक कीटनाशकों के उपयोग से वे कई दिन बाद मरते हैं.
  • रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मरे हुए कीड़ों के शरीर अकड़ जाते हैं. शरीर काला पड़ जाता है. वहीं जैविक कीटनाशकों में कीड़ों का शरीर भूरा या पिचपिचा हो जाता है. उनके शरीर से पानी निकलता है या फिर सफेद फफूंदी दिखाई देती है.

रासायनिक कीटनाशकों से होता है घाटा

  • रासायनिक कीटनाशक जिसमें तनाछेदक को पौधों में उपयोग करने पर वह कीड़ों और इल्लियों को मारने के साथ अंतर प्रवाही होकर पौधों को भी जहरीला करता है. वहीं जैविक कीटनाशक पौधों को जहरीला नहीं करते हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग से खेतों और जमीन के मित्र माने जाने वाले केचुआ, इल्लियों और सूक्ष्म जीवों को मार देता है. जबकि जैविक खाद या जैविक रसायन उन्हें नहीं मारते हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग करने से भूमिगत जल, भूमिगत जमीन, पर्यावरण, पशु और मनुष्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है. लेकिन जैविक कीटनाशकों के उपयोग से इसमें किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है.

कीटनाशकों को लेकर सरकार के नियम

  • रासायनिक कीटनाशक, कीटनाशक अधिनियम 1968 के अंतर्गत आता है जैविक कीटनाशकों के लिए इस तरह के प्रावधान नहीं है.
  • रसायनिक कीटनाशकों के भंडारण, विक्रय, वितरण और उपयोग पर भारत सरकार की गाइडलाइन को फॉलो करना अनिवार्य है. लेकिन जैविक रसायनों के लिए इस तरह की चीजें जरूरी नहीं है. यही वजह है कि इस तरह के नियमों से बचने के लिए कंपनियां जैविक को हथियार बनाकर रासायनिक चीजों को धड़ल्ले से परोस रही हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के लिए भारत सरकार की प्रमाणित NABL संबंधित लैब से जांच कराई जाती है. यह जांच राज्य से लेकर केंद्र तक के तमाम अधिकृत लैब से की जानी चाहिए. इनके दावे और हकीकत सबके सामने आ जाएंगे. जैविक खादों के लिए इस तरह की कोई गाइडलाइन नहीं है.

खेती-किसानी के प्रयोग में आने वाले कीटनाशक अब मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं. भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक मसौदा राज पत्र भी जारी किया है. इसके तहत खेती किसानी और सब्जी फलों के उत्पादन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जा रहे रसायनिक कीटनाशकों को बैन करने के लिए भी निर्देश दिया जा चुका है. बड़े पैमाने पर फलों, सब्जियों और अनाज को कीड़ों, रोगों और खरपतवारों से बचाने के साथ पैदावार बढ़ाने के लिए कई तरह के रसायनों का मनमाना छिड़काव किया जाता है. किसानों की फसलों के साथ-साथ मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बड़ा संकट बनता जा रहा है.

रायपुर: जैविक खेती के नाम पर किसानों की फसल और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. कई बड़ी रासायनिक कंपनियां बड़ा खेल कर रही हैं. जैविक कीटनाशकों के नाम पर कारोबारी कंपनियां अपना रजिस्ट्रेंशन तो करा रही हैं. लेकिन रासायनिक कीटनाशकों की पैकिंग कर किसानों को सीधे केमिकल प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के किसान न चाहकर भी रसायनों को जैविक उत्पाद समझकर अपनी फसलों और खेतों पर धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं. लेकिन इसके परिणाम खतरनाक हैं.

जैविक के नाम पर बाजार में बिक रहे रासायनिक जहर

दुर्ग में डुगेश निषाद नाम के किसान की फसल दवा के छिड़काव के बाद बर्बाद हो गई. किसान यह सदमा नहीं सह पाया और उसने आत्महत्या कर ली है. किसान ने सुसाइड नोट में इस बात को स्पष्ट किया है. घटना के बाद से पूरे प्रदेश में नकली रासायनिक कीटनाशकों को लेकर नाराजगी है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार ने तमाम तरह की योजनाएं चलाई हैं. फिलहाल आम लोग भी जैविक प्रोडक्ट के लिए काफी आकर्षित हुए हैं.

बड़ी कार्रवाई की जरूरत

ऑर्गेनिक और जैविक रसायनों के नाम पर कंपनियां भोले-भाले किसानों को परेशान तो कर ही रही हैं. साथ ही हमारी प्रकृति और आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही हैं. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर संकेत ठाकुर ने नकली दवा बेचने और प्रदेश में धड़ल्ले से चल रहे इस कारोबार को लेकर बड़ी कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से प्रदेश में नकली कीटनाशकों को लेकर कार्रवाई होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है. उन्होंने स्पष्ट किया कि किसान की मौत के बाद प्रदेश सरकार को बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने की जरूरत है. लगातार इस मामले को लेकर हमारे माध्यम से मांग की जाती रही है. इसके बावजूद किसी भी बड़ी कंपनी पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई है. यही वजह है कि हमारे प्रदेश में ऐसे ही नकली दवाओं का कारोबार फल-फूल रहा है. दुर्ग में किसान ने जिस दवा कंपनी का उपयोग किया है, उस कीटनाशक कंपनी पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.

पढ़ें-SPECIAL: बाढ़ का पानी तो चला गया, लेकिन पीछे छोड़ गया तबाही

व्यापारी भी चाहते हैं कार्रवाई

ETV भारत ने प्रदेश में खराब रासायनिक दवाओं के कारोबार को समझने के लिए खाद और बीज का व्यापार कर रहे व्यापारियों से बात की. व्यापारियों ने भी कार्रवाई की मांग की है. व्यापारियों ने कहा कि ऐसे कई तरह के प्रोडक्ट बाजार में बिक रहे हैं, जिनका उपयोग किसान धड़ल्ले से कर रहे हैं. लेकिन प्रोडक्ट किसान की फसल और आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. व्यापारियों ने बताया कि शहरी इलाकों में ऐसी कंपनियां काम नहीं करती हैं. लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसी कंपनियों ने अपनी पैठ बना ली है. क्योंकि ब्रांडेड कंपनियों के डीलरशिप लेने के लिए बड़ा अमाउंट डिपॉजिट करना होता है. साथ ही प्रोडक्ट भी महंगा होता है. ऐसे में नकली कीटनाशक बना रही कंपनियां ग्रामीण इलाकों में कम मार्जिन में ही किसानों को अपना प्रोडक्ट बेचती हैं. इसके चलते साफ-सुथरा काम करने वाले व्यापारी भी परेशान हैं. क्योंकि किसानों को कम कीमत में ही सस्ती कीटनाशक चाहिए होती है.

विभाग का दावा, लगातार हो रही कार्रवाई

कृषि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि प्रदेश में नकली कीटनाशकों को लेकर लगातार विभाग की ओर से कार्रवाई की जाती रही है. टीम बनाकर लगातार कार्रवाई की जा रही है. क्योंकि कीटनाशकों का बाजार बहुत व्यापक है. कीटनाशकों की जांच के लिए विभाग की ओर से लगातार छापेमारी की जा रही है. जिस तरह से शिकायत आती है विभाग इसके लिए कार्रवाई कर रहा है. रायपुर में भी लगातार इस तरह की कार्रवाई की गई है. सर्विलेंस टीम बनाकर लगातार विभागों में कार्रवाई की जा रही है.

पढ़ें-धान और सब्जी की फसल पर कीट का प्रकोप, किसानों के माथे पर पड़ी चिंता की लकीरें

नकली कीटनाशकों से किसानों को धोखा

कीटनाशकों में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को लेकर भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है. इस लिहाज से तमाम कीटनाशकों में जहरीले रसायन के उपयोग को लेकर इन गाइडलाइनों को फॉलो करना बेहद अनिवार्य किया गया है. इसके तहत तमाम रसायनिक कीटनाशकों के भंडारण, विक्रय और उपयोग को लेकर सारी जानकारी सार्वजनिक की जानी है. लेकिन छत्तीसगढ़ समेत देशभर में ऐसे कई कीटनाशक जैविक रसायनों के नाम से धड़ल्ले से बिक रहे हैं. जैविक कीटनाशकों की जगह रासायनिक कीटनाशकों को किसानों को धड़ल्ले से खपाया जा रहा है.

अखिल भारतीय किसान महासंघ ने की बड़ी कार्रवाई की मांग

देशभर के 45 राष्ट्रीय किसान संगठनों के महासंघ अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक राजाराम त्रिपाठी ने कहा है कि जैविक खेती को लेकर रासायनिक खादों और कीटनाशकों का कारोबार देश में धड़ल्ले से चल रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैविक चीजों के नाम पर रासायनिक चीजों को बेचा जा रहा है. जो कि बेहद ही खतरनाक है. जैविक के नाम पर जहर बेचा जा रहा है. जिसके दुष्परिणाम कभी भी किसी बड़ी घटना के रूप में सामने आ सकते हैं. हर रासायनिक उत्पादों को बेचने और उपयोग को लेकर गाइडलाइन होती है, जिसमें इन कीटनाशकों को उनके जहर के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड किया गया है. लेकिन जैविक रसायनों में इस तरह का लेबल नहीं होता है. हैरानी की बात यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां बायो, जैविक और ऑर्गेनिक के नाम पर धड़ल्ले से अपने प्रोडक्ट को बेच रहे हैं. अखिल भारतीय किसान महासंघ ने इस तरह की घटनाओं और प्रोडक्ट के खरीदी बिक्री और उपयोग पर बड़ी कार्रवाई की मांग की है.

पढ़ें-फसलों में लग रही बीमारी से किसान परेशान, बढ़ी कीटनाशक दवाईयों की मांग

स्वास्थ्य पर कीटनाशकों का प्रभाव

इन कीटनाशकों का प्रभाव मानव जीवन के लिए भी बेहद घातक है. रासायनिक कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, अल्जाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह के कैंसर होने का खतरा रहता है. इसके साथ ही प्रीमेच्योर बेबी और किडनी में इन्फेक्शन भी कीटनाशकों के चलते काफी बढ़े हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गजेंद्र चंद्राकर ने ETV भारत के माध्यम से किसानों और डीलरों दोनों को अलग-अलग स्तर पर खुद ही रसायनिक कीटनाशकों की परीक्षण को लेकर उपाय साझा किए हैं.

ऐसे करें आसानी से परीक्षण

  • इसके लिए केचुए और इल्लियां जैसे छोटे कीड़ों को रखकर उन पर इस तरह की दवाओं का छिड़काव करने के साथ ही इस तरह की दवाओं के हकीकत सामने आ सकती है. रसायनिक दवाओं के उपयोग करने से इस तरह के कीटों की तत्काल से लेकर 72 घंटे के दौरान मौत हो जाती है. वहीं जैविक कीटनाशकों के उपयोग से वे कई दिन बाद मरते हैं.
  • रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मरे हुए कीड़ों के शरीर अकड़ जाते हैं. शरीर काला पड़ जाता है. वहीं जैविक कीटनाशकों में कीड़ों का शरीर भूरा या पिचपिचा हो जाता है. उनके शरीर से पानी निकलता है या फिर सफेद फफूंदी दिखाई देती है.

रासायनिक कीटनाशकों से होता है घाटा

  • रासायनिक कीटनाशक जिसमें तनाछेदक को पौधों में उपयोग करने पर वह कीड़ों और इल्लियों को मारने के साथ अंतर प्रवाही होकर पौधों को भी जहरीला करता है. वहीं जैविक कीटनाशक पौधों को जहरीला नहीं करते हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग से खेतों और जमीन के मित्र माने जाने वाले केचुआ, इल्लियों और सूक्ष्म जीवों को मार देता है. जबकि जैविक खाद या जैविक रसायन उन्हें नहीं मारते हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग करने से भूमिगत जल, भूमिगत जमीन, पर्यावरण, पशु और मनुष्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है. लेकिन जैविक कीटनाशकों के उपयोग से इसमें किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है.

कीटनाशकों को लेकर सरकार के नियम

  • रासायनिक कीटनाशक, कीटनाशक अधिनियम 1968 के अंतर्गत आता है जैविक कीटनाशकों के लिए इस तरह के प्रावधान नहीं है.
  • रसायनिक कीटनाशकों के भंडारण, विक्रय, वितरण और उपयोग पर भारत सरकार की गाइडलाइन को फॉलो करना अनिवार्य है. लेकिन जैविक रसायनों के लिए इस तरह की चीजें जरूरी नहीं है. यही वजह है कि इस तरह के नियमों से बचने के लिए कंपनियां जैविक को हथियार बनाकर रासायनिक चीजों को धड़ल्ले से परोस रही हैं.
  • रसायनिक कीटनाशकों के लिए भारत सरकार की प्रमाणित NABL संबंधित लैब से जांच कराई जाती है. यह जांच राज्य से लेकर केंद्र तक के तमाम अधिकृत लैब से की जानी चाहिए. इनके दावे और हकीकत सबके सामने आ जाएंगे. जैविक खादों के लिए इस तरह की कोई गाइडलाइन नहीं है.

खेती-किसानी के प्रयोग में आने वाले कीटनाशक अब मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं. भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक मसौदा राज पत्र भी जारी किया है. इसके तहत खेती किसानी और सब्जी फलों के उत्पादन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जा रहे रसायनिक कीटनाशकों को बैन करने के लिए भी निर्देश दिया जा चुका है. बड़े पैमाने पर फलों, सब्जियों और अनाज को कीड़ों, रोगों और खरपतवारों से बचाने के साथ पैदावार बढ़ाने के लिए कई तरह के रसायनों का मनमाना छिड़काव किया जाता है. किसानों की फसलों के साथ-साथ मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बड़ा संकट बनता जा रहा है.

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