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Battered Woman Syndrome: पारिवारिक सपोर्ट करता है महिलाओं के डर को दूर, बैटर्ड वोमेन सिंड्रोम बीमारी का यही है आधा इलाज

घरेलू हिंसा में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से पीड़ित महिलाएं अक्सर सामाजिक भय से उस हिंसा को बर्दाश्त करती रहती हैं. धीरे-धीरे उस हिंसा की वजह से भी महिलाएं अपना आत्मविश्वास खोने लगती हैं और खुद को बहुत छोटा मानते हुए हमेशा असहज महसूस करती हैं. यह कोई व्यवहार में बदलाव होना नहीं, बल्कि एक बीमारी है, जिसे बैटर्ड वुमेन सिंड्रोम कहा जाता है. उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने और सहज करने के लिए परिवार का सपोर्ट बहुत अहम है. raipur latest news

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Published : Mar 14, 2023, 10:35 PM IST

Battered Woman Syndrome
मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुणांशु परियल

रायपुर: घरेलू हिंसा में प्रताड़ना झेल रही महिला अजीबोगरीब बर्ताव करने लगती है, जैसे अचानक नाराज हो जाना, जल्दी से डर जाना, बाहर निकलने से डरना, छोटे से छोटे कामों के लिए भी इजाजत लेना उसकी आदत बन जाती है. यह व्यवहार में होने वाला कोई बदलाव नहीं बल्कि बैटर्ड वोमेन सिंड्रोम नाम की बीमारी है. इसमें परिवार के सपोर्ट का बहुत बड़ा रोल है. इस बीमारी में परिवार के लोगों का साथ और हौसला बढ़ाते रहने से पीड़ित महिला तकरीबन 60 परसेंट तक इस रोग से उबर जाती है. रही सही कसर विशेषज्ञ डाक्टर पूरी कर देते हैं.


उच्च वर्ग की महिलाएं भी इससे पीड़ित: मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुणांशु परियल के अनुसार "यह बीमारी केवल लोअर मिडल क्लास महिलाओं को नहीं होती बल्कि अपर हायर क्लास की महिलाएं भी इसकी शिकार बनती हैं. लेकिन वह अक्सर सामाजिक भय के कारण अपनी इन समस्या को सामने नहीं ला पाते हैं. उन्हें लगता है कि लोगों के सामने यदि उनकी समस्या आएगी तो उनकी बदनामी होगी. लोग उन पर हसेंगे.अपर मिडिल क्लास महिलाओं को लगता है कि उनके पार्टनर की नौकरी भी इस वजह से खतरे में जा सकती है तो अपने आसपास रहने वाले लोगों के बारे में सोचते हुए अक्सर महिलाएं इस बीमारी से जूझती रहती हैं. लेकिन धीरे-धीरे जब भी बहुत ज्यादा डिप्रेशन में जाने लगती हैं तो कभी-कभी ऐसे हालात भी बनते हैं कि वह सुसाइड कर लेते हैं. हमारे पास डेली 20 से 25 महिलाएं इसी तरह की बीमारी से परेशान होकर आती हैं."

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कितना लंबा चलेगा इलाज, मरीज की हालत पर है निर्भर: डॉक्टर अरुणांशु परियल के मुताबिक "यदि किसी महिला को काउंसलिंग की जरूरत होती तो हम उसे वह भी देते हैं और दवाइयों का भी 6 महीने का कोर्स चलाया जाता है. दवाइयों का कोर्स कितने महीने या कितने साल तक चलेगा यह महिला की दिमागी स्थिति के ऊपर निर्भर करता है. ऐसी महिलाओं को अकेले नहीं रहना चाहिए. इन्हें अक्सर अपनी मन की बातें किसी भरोसेमंद व्यक्ति के साथ शेयर करना चाहिए. यदि यह बातें अपने मन और दिमाग में रखेंगी तो अंदर ही अंदर उन्हें और भी परेशान होना पड़ेगा. इस तरह की बीमारियों से निकलने में अपनों का साथ और प्यार भी महत्वपूर्ण जगह रखता है."

रायपुर: घरेलू हिंसा में प्रताड़ना झेल रही महिला अजीबोगरीब बर्ताव करने लगती है, जैसे अचानक नाराज हो जाना, जल्दी से डर जाना, बाहर निकलने से डरना, छोटे से छोटे कामों के लिए भी इजाजत लेना उसकी आदत बन जाती है. यह व्यवहार में होने वाला कोई बदलाव नहीं बल्कि बैटर्ड वोमेन सिंड्रोम नाम की बीमारी है. इसमें परिवार के सपोर्ट का बहुत बड़ा रोल है. इस बीमारी में परिवार के लोगों का साथ और हौसला बढ़ाते रहने से पीड़ित महिला तकरीबन 60 परसेंट तक इस रोग से उबर जाती है. रही सही कसर विशेषज्ञ डाक्टर पूरी कर देते हैं.


उच्च वर्ग की महिलाएं भी इससे पीड़ित: मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुणांशु परियल के अनुसार "यह बीमारी केवल लोअर मिडल क्लास महिलाओं को नहीं होती बल्कि अपर हायर क्लास की महिलाएं भी इसकी शिकार बनती हैं. लेकिन वह अक्सर सामाजिक भय के कारण अपनी इन समस्या को सामने नहीं ला पाते हैं. उन्हें लगता है कि लोगों के सामने यदि उनकी समस्या आएगी तो उनकी बदनामी होगी. लोग उन पर हसेंगे.अपर मिडिल क्लास महिलाओं को लगता है कि उनके पार्टनर की नौकरी भी इस वजह से खतरे में जा सकती है तो अपने आसपास रहने वाले लोगों के बारे में सोचते हुए अक्सर महिलाएं इस बीमारी से जूझती रहती हैं. लेकिन धीरे-धीरे जब भी बहुत ज्यादा डिप्रेशन में जाने लगती हैं तो कभी-कभी ऐसे हालात भी बनते हैं कि वह सुसाइड कर लेते हैं. हमारे पास डेली 20 से 25 महिलाएं इसी तरह की बीमारी से परेशान होकर आती हैं."

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कितना लंबा चलेगा इलाज, मरीज की हालत पर है निर्भर: डॉक्टर अरुणांशु परियल के मुताबिक "यदि किसी महिला को काउंसलिंग की जरूरत होती तो हम उसे वह भी देते हैं और दवाइयों का भी 6 महीने का कोर्स चलाया जाता है. दवाइयों का कोर्स कितने महीने या कितने साल तक चलेगा यह महिला की दिमागी स्थिति के ऊपर निर्भर करता है. ऐसी महिलाओं को अकेले नहीं रहना चाहिए. इन्हें अक्सर अपनी मन की बातें किसी भरोसेमंद व्यक्ति के साथ शेयर करना चाहिए. यदि यह बातें अपने मन और दिमाग में रखेंगी तो अंदर ही अंदर उन्हें और भी परेशान होना पड़ेगा. इस तरह की बीमारियों से निकलने में अपनों का साथ और प्यार भी महत्वपूर्ण जगह रखता है."

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