रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना विलुप्ति की कगार पर है. इसे बचाने की लगातार प्रशासन की ओर से पहल की जा रही है. दरअसल, गहरे काले रंग की ये पहाड़ी मैना जंगल में रहना पसंद करती है. सीएम बघेल ने शुक्रवार को ट्वीट कर इसकी तस्वीर साझा की. बताया कि ये हू-ब-हू इंसानों की बोली बोलती है. दरअसल इसानों की बोली को कॉपी करने की कला ने ही इस पक्षी को पिंजड़े का पक्षी बना दिया है. इस पक्षी का स्वभाव शर्मिला बताया जाता है. कहीं न कहीं इसके विलुप्ति का कारण जंगलों की कटाई को भी माना जा रहा है.
बस्तर में है पहाड़ी मैना का ठिकाना: गहरे काले रंग की इस पक्षी के नारंगी रंग की चोंच है. पीले रंग के इसके पैर है. अगर आपको इस पक्षी को देखना है तो बस्तर का घना जंगल इसका पक्षी का ठिकाना है. बस्तर के घने जंगलों का रुख कर आप इस पक्षी को देख सकते हैं. कभी कांगेर घाटी का घना जंगल पहाड़ी मैना का सबसे पसंदीदा ठिकाना हुआ करता था. साल 1938 में छत्तीसगढ़ के कांगेर घाटी के इलाके को पहाड़ी मैना के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था. उस समय छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में नहीं आया था.
इन क्षेत्रों में है पहाड़ी मैना: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, जगदलपुर, कांगेरघाटी, गुप्तेश्वर, तिरिया, पुल्चा, कुटरु के क्षेत्रों में पहाड़ी मैना होने का दावा किया जाता है. वन विभाग इन क्षेत्रों के आदिवासियों को जागरुक करने का प्रयास कर रही है. इसके अलावा शिकारियों की पहचान करने के लिए सूचना तंत्र को मजबूत किया जा रहा है. इन क्षेत्रों में पहाड़ी मैना के पसंद के पेड़ को लगाया जा रहा है.
राजकीय पक्षी का दर्जा: साल 2002 में इस पक्षी को छत्तीसगढ़ सरकार ने राजकीय पक्षी का दर्जा दिया था. सालों बीत जाने के बावजूद भी इस पक्षी के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. जानकारों की मानें तो लगातार साल दर साल इसकी संख्या कम होती जा रही है. यही कारण है कि शासन प्रशासन की ओर से इसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है.
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आखिर क्यों कम हो रही पहाड़ी मैना की आबादी: इस पहाड़ी मैना की आबादी को लेकर राज्य सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है. लेकिन कहा जा रहा है कि यह पक्षी अब उतनी संख्या में नहीं दिखती. पिछली बार साल 2017 में इनकी गणना हुई थी. गणना में इनके 100 जोड़े दिखे थे. इसके बाद से इस पक्षी की संख्या का पता नहीं चला है. यह तय है कि संख्या और भी कम हुई है. करीब 20 साल पहले एक झुंड में 200 से 300 पक्षी दिखते थे, लेकिन अब पांच से छह पक्षी एक झुंड में देखे जा रहे हैं.
संरक्षण केंद्र में प्रजनन का प्रयास: राज्य सरकार ने इनकी घटती संख्या को देखते हुए जगदलपुर के संरक्षण केंद्र के पिंजड़े में प्रजनन संख्या बढ़ाने की पहल की थी. हालांकि इससे भी कोई खास लाभ नहीं मिला. सरकार ने पहले इसे अपना राज्य-पक्षी घोषित किया. फिर इसके संरक्षित प्रजनन के लिए जगदलपुर के वन विद्यालय में एक बड़ा पिंजरा बनवाकर उसमें मैना के चंद जोड़ों को रखा गया.
नर या मादा, संशय बरकरार: जानकारों की मानें तो अब तक ये तय नहीं हो पाया है कि बस्तर की पहाड़ी मैना नर है या मादा. इसके नर या मादा होने की पुष्टि न होने के कारण ही प्रजनन का प्रयास असफल होना बताया जा रहा है. इस पर कई बार रिसर्च किया गया. हालांकि इसका कोई खास लाभ नहीं मिला है.