Basant Panchami 2023 : हिंदू परंपराओं और शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी (Rishi panchami 2023) के नाम से भी उल्लेखित किया गया है. माघ माह की शुक्ल पंचमी को मनाए जाने वाले इस महत्वपूर्ण त्योहार बसंत पंचमी को और भी कई नामों से जाना जाता है. जिसमें श्री पंचमी, ऋषि पंचमी, वागीश्वरी जयंती, मदनोत्सव और सरस्वती पूजा (saraswati puja) उत्सव शामिल है. बसंत पंचमी 2023 के दिन ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती की उपासना की जाती है. मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की प्रदाता कहा गया है.वहीं इनकी उत्पत्ति के दौरान इनके हाथों में वीणा थी. इस वजह से इन्हें संगीत की देवी भी कहा गया है. इस बात का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है. ऋग्वेद में लिखा है कि ‘प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।’ अर्थात् ''ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं.''
2023 में सरस्वती पूजा कब है : विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा (Saraswati Puja) के लिए उनकी स्तुति या वंदना करना बहुत लाभकारी होता है. जो सरस्वती स्तोत्रम का एक अंश है. इस सरस्वती स्तुति का पाठ बसंत पंचमी 2023 (basant panchami 2023) के पावन दिन पर सरस्वती पूजा के दौरान किए जाने से आपको विशेष लाभ मिलेगा.
बसंत पंचमी 2023 (Basant Panchami 2023) | जनवरी 25, 2023, दिन - शनिवार |
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बसंत पंचमी सरस्वती पूजा (saraswati puja muhurt) मुहूर्त | सुबह 07:12 से दोपहर 12:34 बजे तक |
अवधि | 5 घंटे 21 मिनट |
बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण | 12:34 PM |
पंचमी तिथि प्रारम्भ | 25 जनवरी, 2023 अपराह्न 12:34 बजे |
पंचमी तिथि समाप्त | 26 जनवरी, 2023 को 10:28 AM बजे |
कैसे करें बसंत पंचमी में सरस्वती पूजा :भारत में बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, खासकर बिहार में सरस्वती पूजा का बहुत महत्व रखती है.इस दिन मां सरस्वती की आराधना स्कूलों में भी की जाती है.आईए आपको बताते हैं कि इस दिन कैसे सरस्वती की पूजा करें.
- माता सरस्वती के उपासकों को बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए.
- तेल में बेसन लगाकर उसका शरीर पर उबटन करने के बाद स्नान करना चाहिए। इसके बाद पीले वस्त्र धारण कर माता सरस्वती के पूजन की तैयारी करना चाहिए
- इसके बाद पूजा स्थान पर उत्तम वेदी वस्त्र बिछाकर उस पर चावल से अष्टदल (चौक) बनाएं। इसके आगे भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर सकते है
- अष्टदल के पृष्ठभाग में जौ व गेहूं की बाली के पूंज (बसंत पूंज) को जल से भरे कलश के साथ स्थापित करें
- बसंत पंचमी (Basant Panchami) में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश की पूजा करें
- बसंत पूंज से रति और कामदेव की पूजा करें और हवन करें। हवन करने के पश्चात केसर या हल्दी के मिश्रण की आहुतियां दें
- इस दिन पर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का भी विशेष विधान है। इसलिए भगवान विष्णु की पूजा करें
- इन सारी प्रक्रियाओं गणेश स्थापना सूर्य, विष्णु, रति, कामदेव और महादेव की पूजा करने के बाद देवी सरस्वती का पूजन करें
- सबसे पहले अष्टदल पर माता सरस्वती की प्रतिमा को स्थापित कीजिए
- इसके बाद माता को पीले रंग के वस्त्र के साथ हल्दी, चंदन, रोली, पीली मिठाई, पीले फूल, अक्षत और केसर अर्पित करें
- इसके अलावा बसंत पंचमी (Basant Panchami 2023) के दिन वाद्य यंत्र और किताबों की भी पूजा करनी चाहिए इससे माता सरस्वती खुश होती है, और आशीर्वाद प्रदान करती है
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा : हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की, तो उन्हें अपने सर्जन से संतुष्टी नहीं मिली. उन्हें कुछ कमी लगने लगी, जिसकी वजह से हर तरफ मौन छाया हुआ था. इसके बाद उन्होंने श्रीहरि विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा. इसके बाद पृथ्वी पर हर तरफ हरियाली छा गई, वृक्ष और पौधे लग गए. इसी के बीच एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई.वह एक चतुर्भूजी सुंदर स्त्री थी. उनके एक हाथ में वीणा, तो दूसरा हाथ वरमुद्रा में था। बाकी दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी.यह देखकर ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया. ब्रह्मा जी के अनुरोध पर माता सरस्वती ने मधुर वीणा बजाई, जिससे संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी की प्राप्ती हुई.साथ ही अथाह जल में कोलाहल उठा, पवन चलने लगी. यह सब देखकर भगवान ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा. यह बसंत पंचमी (Basant Panchami) की ही पावन तिथि थी.इसी कारण इसे देवी सरस्वती के प्रकटोत्सव के रूप मे जाना जाता है.उनके हाथ में पुस्तक और वीणा होने के कारण वह बुद्धि और संगीत की देवी कहलाई.Legend of Basant Panchami