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छत्तीसगढ़ की 144 साल पुरानी धरोहर है बदहाल, न सिस्टम को परवाह और न सरकार रख रही ख्याल

महंत घासीदास संग्रहालय पिछले कई सालों से उपेक्षित है. 144 साल पुरानी इस इमारत की जिम्मेदारी न तो संस्कृति विभाग लेने को तैयार है और न ही प्रशासन का इसकी ओर कोई ध्यान जा रहा है.

महंत घासीदास संग्रहालय
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Published : May 18, 2019, 9:26 PM IST

रायपुर: राजधानी के बीचों-बीच मौजूद इस संग्रहालय का नाम तक वहां के लोग नहीं जानते. सन 1875 में राजा घासीदास ने यह संग्रहालय बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया.

महंत घासीदास संग्रहालय है बदहाल


1953 में किया गया था शिफ्ट
सन 1953 में यह संग्रहालय को संस्कृति विभाग में शिफ्ट कर दिया गया और तब से यह भवन खाली पड़ा हुआ है. विभाग के लोग इसे नजूल की जमीन बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं. दरअसल इस भवन को एक कंपनी को किराए में दिया गया है, जो यहां प्राइवेट इवेंट्स कराती है.


क्वीन विक्टोरिया के मुकुट की तरह है ढांचा
इमारत की खासियत यह है कि यह ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के मुकुट ( ताज ) के आकार का बना हुआ है. इस अष्टमुखी भवन के पीछे वाले हिस्से में बस्ती है. इमारत की दीवार अब बस्तीवालों के कपड़ा सुखाने और घर का सामान रखने की जगह बन गई है.


विभागों के अपने-अपने तर्क
संस्कृति विभाग के कमिश्नर अनिल साहू ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि 'यह भवन हमारे अंडर में नहीं है और इसे रिनोवेट करने का जिम्मा नगर निगम को दिया गया है, इसलिए वहीं बताएंगे'. नगर निगम इस विषय में बात करने को ही तैयार नहीं हो रहा है.


सरकार नहीं ले रही एक्शन
पुरातत्वविद अरुण शर्मा कहते हैं कि 'यह हमारी धरोहर है. इसे फोटो गैलेरी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कोई जिम्मेदार इस ओर काम क्यों नहीं कर रहा यह समझ में नहीं आ रहा है. नजूल की जमीन तो सरकार की ही है, तो सरकार इस पर क्यों एक्शन नहीं ले रही है'.


जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं
इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र का कहना है कि 'कोई इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है'. उन्होंने कहा कि 'हमने कई बार इस विषय में बात करने की कोशिश की लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही. देश में इस म्यूजियम का स्थान आठवां है और इसे ऐतिहासिक धरोहर बनाया जाना चाहिए'.

रायपुर: राजधानी के बीचों-बीच मौजूद इस संग्रहालय का नाम तक वहां के लोग नहीं जानते. सन 1875 में राजा घासीदास ने यह संग्रहालय बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया.

महंत घासीदास संग्रहालय है बदहाल


1953 में किया गया था शिफ्ट
सन 1953 में यह संग्रहालय को संस्कृति विभाग में शिफ्ट कर दिया गया और तब से यह भवन खाली पड़ा हुआ है. विभाग के लोग इसे नजूल की जमीन बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं. दरअसल इस भवन को एक कंपनी को किराए में दिया गया है, जो यहां प्राइवेट इवेंट्स कराती है.


क्वीन विक्टोरिया के मुकुट की तरह है ढांचा
इमारत की खासियत यह है कि यह ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के मुकुट ( ताज ) के आकार का बना हुआ है. इस अष्टमुखी भवन के पीछे वाले हिस्से में बस्ती है. इमारत की दीवार अब बस्तीवालों के कपड़ा सुखाने और घर का सामान रखने की जगह बन गई है.


विभागों के अपने-अपने तर्क
संस्कृति विभाग के कमिश्नर अनिल साहू ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि 'यह भवन हमारे अंडर में नहीं है और इसे रिनोवेट करने का जिम्मा नगर निगम को दिया गया है, इसलिए वहीं बताएंगे'. नगर निगम इस विषय में बात करने को ही तैयार नहीं हो रहा है.


सरकार नहीं ले रही एक्शन
पुरातत्वविद अरुण शर्मा कहते हैं कि 'यह हमारी धरोहर है. इसे फोटो गैलेरी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कोई जिम्मेदार इस ओर काम क्यों नहीं कर रहा यह समझ में नहीं आ रहा है. नजूल की जमीन तो सरकार की ही है, तो सरकार इस पर क्यों एक्शन नहीं ले रही है'.


जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं
इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र का कहना है कि 'कोई इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है'. उन्होंने कहा कि 'हमने कई बार इस विषय में बात करने की कोशिश की लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही. देश में इस म्यूजियम का स्थान आठवां है और इसे ऐतिहासिक धरोहर बनाया जाना चाहिए'.

Intro:150 सौ साल पुराना अष्टमुखी से संग्रहालय हो रहा उपेक्षित, संस्कृति विभाग नगर निगम पर तो निगम विभाग के मत्थे मढ़ रहा दोष


Body:रायपुर । सन 1875 बना महंत घासीदास संग्रहालय कई सालों से उपेक्षित हो रहा है । 150 पुरानी इस इमारत की जिम्मेदारी न तो संस्कृति विभाग लेने को तैयार है न ही प्रशासन का इसकी ओर ध्यान जा रहा है । राजधानी रायपुर के बीचोबीच स्थित इस संग्रहालय का नाम तक वहां के लोग नहीं जानते । सन 1875 में राजा घासीदास ने यह संग्रहालय बनवाया था । उन्हीं के नाम पर इस संग्रहालय का नाम पड़ा । सन 1953 में वह संग्रहालय संस्कृति विभाग में शिफ्ट हो गया । तब से यह भवन खाली पड़ा हुआ है । विभाग के लोग इसे नजूल की जमीन बता कर पल्ला झाड़ ले रहे हैं । यह भवन एक कंपनी को किराए में दी गई है । वह यहां पर कुछ प्राइवेट इवेंट्स करवाती है ।

इमारत की खासियत है कि यह रानी विक्टोरिया के मुकुट ( ताज ) के आकार में बना हुआ है । इस अष्टमुखी भवन के पीछे वाले हिस्से में बस्ती है । इमारत की दीवार अब बस्ती वालों के कपड़ा सुखाने, सीढ़ी रखने की जगह बन गई है ।

संस्कृति विभाग कमिश्नर अनिल साहू ने इटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि यह भवन हमारे अंडर नहीं है । इसे रिनोवेट करने का जिम्मा नगर निगम को दिया गया है । वहीं बताएंगे । नगर निगम इस विषय मे बात करने को ही तैयार नहीं हो रहा है ।

पुरातत्वविद अरुण शर्मा कहते हैं कि यह हमारी धरोहर है । इसे फ़ोटो गैलेरी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है । कोई जिम्मेदार व्यक्ति इसपर काम क्यों नहीं कर रही । नजूल की जमीन तो सरकार की ही है । तो सरकार इस पर क्यों एक्शन नही ले रही है ।

इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र का कहना है कि कोई इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है । हमने कई बार इस विषय मे बात करने की कोशिश की लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है । देश मे इस म्यूजियम का स्थान आठवां है इसे ऐतिहासिक धरोहर बनाया जाना चाहिए ।

बाइट - संस्कृति विभाग कमिश्नर अनिल साहू

बाइट - इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र

बाइट - पुरातत्वविद अरुण शर्मा


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