धमतरी: धमतरी शहर से 5 किलोमीटर दूर भटगांव है. इस गांव में आजाद हिन्द फौज के सिपाही मनराखन लाल देवांगन रहते हैं. मनराखन लाल वैसे तो एक किसान के बेटे थे. लेकिन 1942 में वो दोस्तों के साथ रायपुर घूमने गए. जहां आजाद हिंद फौज में सबको भर्ती होने की अपील की जा रही थी. अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की लालसा में उन्होंने फौजी बनने का निर्णय लिया और फॉर्म भर दिया. बाद में उनकी कद, काठी, आंखों की विधिवत जांच की गई. फिजिकली फिट होने पर. उस दौर के चौथी पास मनराखन को आजाद हिंद फौज में भर्ती कर लिया गया. पुणे में उन्हें हथियार चलाने और तमाम फौजी ट्रेनिंग मिली. मनराखन लाल की याददाश्त अभी भी दुरुस्त है.
जानिए आजाद हिन्द फौज के सिपाही की कहानी: आजाद हिन्द फौज के सिपाही मनराखन लाल बताते है कि "ट्रेनिंग के बाद उन्हें 397 कंपनी में बतौर सिपाही रखा गया. देश के कई हिस्सों में तैनाती रही. बाद में उनको कंपनी नम्बर 520 में ट्रांसफर दिया गया. इसके बाद उनकी कंपनी को देश की पूर्वी सीमा में भेजा गया. असम, मणिपुर, बर्मा रंगून में तैनाती रही. जापानी फौज के साथ मिल कर उन्होंने जंग भी लड़ीं. उस जंग में मनराखन ने 25 दुश्मन फौजियों को मारा भी. इस तरह के कई किस्से आज भी उन्हें याद है. मनराखन लाल से आजाद हिंद फौज ने 5 साल का बांड भरवाया था. 1947 में फिरोजपुर जो आज मौजूदा पाकिस्तान में है. वहां से उन्होंने रिटायरमेंट लिया.
18 रुपये मिलता था वेतन: मनराखन लाल ने बताया कि "आजाद हिंद फौज में उन्हें 18 रुपये वेतन मिलता था.रिटायरमेंट के समय उन्हें 1000 रुपये दिए गए थे. उन्हें कभी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सीधे मिलने का मौका नहीं मिला. लेकिन, सेना के मुखिया के तौर पर उनका भाषण जरूर सुना है.मनराखन लाल 1947 मेंं अपने गांव लौट गए और खेती बााड़ी करने लग गए.
उनके 5 बेटे दो बेटियां और 9 नाती हैं. 5 में से 3 बेटे अब इस दुनिया मे नहीं हैं. जीवित दो में एक 72 साल के बेटे को लकवा है. लेकिन 21 मार्च 1918 में जन्मे. खुद मनराखन लाल की उम्र आज 107 साल की हो चुकी है. उम्र का शतक जमा चुका ये नेताजी के सिपाही. आज भी स्वस्थ हैं. वे बिना चश्मे के अखबार पढ़ लेते हैं. कोई बीमारी नहीं है. वो बताते हैं कि आज तक उन्हें एक बार भी बुखार तक नहीं आया."
पूरा परिवार करता है गर्व: गांव के जानकर बताते हैं कि, "जब मनराखन लाल फौज से वापस गांव आये तब लोग उन्हें फौज से भागा हुआ भगोड़ा कह कर तंज कसते थे. कोई मनराखन की बताई हकीकत पर भरोसा नहीं करता था. लेकिन 2012 में जब कुछ पढ़े लिखे लोगों ने उनके रिटायरमेंट के दस्तावेज की जांच कर संबंधित संस्थाओं से संपर्क किया. तब उन्हें सरकार ने पेंशन देना शुरू किया. 2012 से 2019 तक उन्हें 3 हजार पेंशन मिलता था. जो अब बढ़ कर 7 हजार किया गया है. अब तक गुमनामी में जीते रहे मनराखन लाल को 2012 के बाद लोगों ने स्वीकार किया. आज उनका हर कोई सम्मान करता है. आज उनका परिवार भी खुद पर गर्व करता है कि वो आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे हैं."