रायपुर : होलिका पर्व को भांग स्नान के रूप में भी जाना जाता है. होली के दिन से ही होलाष्टक का काल समाप्त हो जाता है. इसलिए इसे होलाष्टक समाप्ति भी कहते हैं. संवत्सर 2079 शक 1944 बसंत ऋतु को होलिका दहन किया जाएगा. यह होलिका दहन अपने आप में एक विशिष्ट पर्व माना गया है. यह यज्ञ का ही प्रतिरूप है, इसमें भी अग्नि का दहन लकड़ियों और जड़ी बूटियों के माध्यम से होलिका दहन किया जाता है. इसे हवनावाली वाली भी कहते हैं.
कब है होली का मुहूर्त :ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "यह भेषज्य यज्ञ का एक प्रकार है. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम के समय 6:24 से लेकर रात्रि 8:00 बज कर 51 मिनट के बीच होलिका दहन किया जाएगा. यह मुहूर्त कन्या लग्न में पड़ रहा है. इस समय मंगल वृषभ राशि में विद्यमान रहेंगे. लग्न के स्वामी अपने मित्र की राशि में विराजमान रहेंगे. शुक्र उच्च के रहेंगे शनि और गुरु ग्रह होलिका दहन के समय क्रमश शश और हंस योग का निर्माण करेंगे.
क्या है होली का पौराणिक महत्व : पंडित के मुताबिक ''होलिका दहन का पर्व प्रहलाद की कथा है. प्रहलाद श्री हरि विष्णु का अनन्य भक्त रहा. उनके पिता हिरण्यकश्यप उसे दबाव पूर्वक अपनी स्वयं की भक्ति के लिए प्रेरित करते थे, और प्रह्लाद को दबाव डालकर उसे विष्णु भक्ति के मार्ग से हटाना चाहते थे. परंतु प्रहलाद ने कभी भी विष्णु भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा. भक्त प्रहलाद श्री हरि विष्णु के एक महान भक्त रहे. छल और कपट के साथ प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका के साथ अग्निकुंड में झोंक देता है. तब प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान श्री हरी विष्णु होलिका को दहन करके भक्त प्रहलाद को सकुशल बचा लेते हैं. तब से यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत अनीति पर नीति की जीत और अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है."
एकता का संदेश देता है होली : ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "सनातन काल से ही होलिका का पर्व देश को प्रेरित करता है. यह पर्व कुटुंबीजनों के साथ स्नेह, प्रेम, आनंद, हर्ष और खुशियां बांटने का पर्व है. आज के शुभ दिन सभी दोस्त और दुश्मन एक होकर पूरे भाई चारे के साथ एक दूसरे को गले लगाते हैं. पुरानी शत्रुता और दुश्मनी को भुलाकर यह पर्व एकत्र होने का संदेश देता है.''
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पंडित के मुताबिक ''पूरे भारतवर्ष में यह पर्व अनंत उत्साह के साथ मनाया जाता है इस पर्व में सभी एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर आनंद के रस में सराबोर हो जाते हैं. होलिका दहन के पूर्व होली की पूजा की जाती है. होलिका को चंदन, बंदन, अबीर, गुलाल, रोली आदि लगाया जाता है, इसके साथ ही होलिका को चारों ओर से मौली धागा के माध्यम से जोड़ा जाता है. होलिका में गोबर के कंडे बताशा, लाई, पैरा, चना बूट डालने का विधान भी है.''