रायपुर: अक्षय तृतीया के पर्व को वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के अवसर पर मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन दान पुण्य, पितृ कर्म, व्यापार, ज्ञान प्राप्त करें, तो इस दिन आपको सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है, जो अक्षय होती है. इसलिए भी इसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है. अक्षय तृतीया के पर्व के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए ईटीवी भारत की टीम ने ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी से चर्चा की.
अक्षय तृतीया का इतिहास: ज्योतिष एवं वास्तुविद बताते हैं कि "अक्षय तृतीया को अक्षय तृतीया इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन महाभारत काल में दुशासन ने द्रोपदी का चीर हरण किया था. उस दिन अक्षय तृतीया की तिथि थी. उस दिन श्री कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाने उसे अक्षय दिया था. अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर ने अक्षय पात्र की प्राप्ति की थी. धर्मराज ने अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु की पूजा कर कुशावती के राजा बने थे."
कमाया हुआ धन भी हो जाता है अक्षय: अक्षय तृतीया के दिन किसी को कोई चीज दान किया जाता है, वह अक्षय कहलाता है. ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन कमाया हुआ धन भी अक्षय हो जाता है. इस दिन किया गया पुरुषार्थ अक्षय कहलाता है. सब प्रकार की समृद्धि इस दिन अक्षय हो जाती है."
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अबुझ मुहूर्त क्या है? : अक्षय तृतीया को ही अबुझ मुहूर्त के तौर पर जाना जाता है. इस दिन बिना मुहूर्त देखे शादी विवाह आदि किये जाते हैं. इस समय कई तरह की चीजों की खरीदी भी की जाती है, जो अक्षय रहती है.
अक्षय तृतीया को क्यों माना जाता है शुभ: अक्षय तृतीया पर तिल, नमक, लोहा, सोना, सप्तधान्य, गौ जैसी चीजें दान करने से ऋण से मुक्ति मिलती है. साथ ही पितरों का तर्पण भी होता है. जमीन जायदाद, सोना, चांदी जैसी चीजें खरीदने के लिए अक्षय तृतीया के दिन को शुभ माना गया है. अक्षय तृतीया को रोग के निदान के लिए भी शुभ माना गया है. साथ ही नए प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए इस मुहूर्त को शुभ माना गया है.