रायपुर: भवन बनाते समय जमीन की खुदाई करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना मानी गई है. जब कभी भी भवन बनाने का कार्य शुरु होता है, तो जमीन ईशान दिशा से खोदना चाहिए. ईशान दिशा को ही उत्तर-पूर्वी कोना कहा जाता है. यह दिशा देव भूमि, ईश्वर भूमि, शुद्ध भूमि और देवताओं की दिशा के रूप में जानी जाती है. इस क्षेत्र विशेष में खुदाई करने पर भवन का वास्तु सकारात्मक और ऊर्जा देने वाला होता है. ऐसे वास्तु में धनात्मक और समन्वयवादी ऊर्जा का निर्माण होता रहता है. इसके पश्चात उत्तर दिशा की ओर खुदाई की जानी (excavation of building should be done from this direction ) चाहिए.
उत्तर दिशा के स्वामी बुध ग्रह माने गए हैं. यह लक्ष्मी कुबेर की भी दिशा मानी गई है. यहां से धन, संपदा, द्रव्य आदि का निर्धारण किया जाता है. इसके पश्चात सूर्य की दिशा पूर्व दिशा में खुदाई की जानी चाहिए. पूर्व दिशा के स्वामी जगत नियंता आदित्य माने गए हैं. यह क्षेत्र खाली रखना बहुत शुभ माना गया है. तीसरे क्रम में इस क्षेत्र को खुदाई के लिए प्राथमिकता दी गई है.
सूर्य सौरमंडल का राजा होने के साथ ही ग्रहों का अधिपति है: इस विषय में वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा कहते हैं कि सूर्य सौरमंडल का राजा होता है. ग्रहों का अधिपति होता है. सभी ग्रह सूर्य के ही इर्द-गिर्द परिक्रमा करते हैं. अतः यह ऊर्जा को प्राप्त करने का बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है. इसी तरह वायव्य कोण, जो कि उत्तर-पश्चिम का हिस्सा माना गया है. यहां वायु का प्रभाव रहता है. यह क्षेत्र गतिशीलता तेज गति और विकास को निर्धारित करता है. इस स्थान में भी पूर्व के बाद खुदाई की जानी चाहिए. वायव्य से ही लगा हुआ क्षेत्र पश्चिम दिशा कहलाती है. इसके स्वामी शनि महाराज माने गए हैं.
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दक्षिण-पूर्वी हिस्सा में खुदाई करने पर संतुलन बना रहता है: इस क्षेत्र में भारी भरकम वृक्ष और लोहे के सामान के साथ ही बड़े सामानों को रखा जा सकता है. इसके पश्चात आग्नेय कोण में खुदाई की जानी चाहिए. यह दक्षिण पूर्वी हिस्सा कहलाता है. यहां पर रसोईघर पाकशाला विद्युत गृह आदि का निर्माण किया जाता है. इस क्षेत्र में खुदाई करने पर ऊर्जा का नियंत्रण संतुलन और संरक्षण उचित रूप में रहता है. इसके पश्चात दक्षिण दिशा में खुदाई की जाती है. इसके स्वामी मंगल माने गए हैं. यहां पर भी बड़ी खुदाई की जा सकती है. सबसे अंत में गुरुत्व की दृष्टि से सबसे भारी विराट और विशाल आकृति के साथ जिस दिशा में ऊंचाई को अत्यधिक महत्व दिया जाता है. इस क्षेत्र में नैरेत्र यानी दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में सबसे अंत में खुदाई की जाती है. यह क्षेत्र ऊंचा भारी और गुरुत्व का केंद्र होता है. यहां पर भवन स्वामी को रहने की व्यवस्था की जाती है. अथवा भवन स्वामी के ऑफिस के रूप में नैरेत्र कोण सबसे उपयुक्त माना गया है. खुदाई में सबसे अंतिम स्थान पर इस जोन को रखा गया है.