रायगढ़: कोरोना और लॉकडाउन ना सिर्फ जिंदगियों को खतरे में डाल रहा है, बल्कि जीवनयापन को भी प्रभावित कर रहा है. लॉकडाउन के कारण बड़े उद्योगों की कमर तो टूटी ही है, छोटे उद्योगों के पैर भी लड़खड़ा गए हैं.
रोजी-रोटी छिनी, पुश्तैनी रोजगार पर भी खतरा
रायगढ़ शहर औद्योगिक हब के रूप में विकसित हो रहा है, लेकिन यहां रहने वाले लगभग डेढ़ सौ ऐसे बुनकर परिवार हैं, जिनके लिए लॉकडाउन किसी बुरे सपने की तरह साबित हो रहा है. पहले टेक्सटाइल मिलों के औद्योगिकीकरण ने बुनकरों से रोजगार छीना, तो अब लॉकडाउन इनके पुश्तैनी रोजगार पर खतरे की तरह मंडरा रहा है. लॉकडाउन के कारण कच्चा माल नहीं मिलने से हथकरघा बुनकरों का काम बंद होने की कगार पर पहुंच गया है. इन बुनकरों का हाल ये हो गया है कि बची हुई पूंजी के सहारे इनका जीवन चल रहा है.
150 बुनकर परिवारों की स्थिति दयनीय
रायगढ़ जिले में कोकून से साड़ी और कोसा सिल्क तैयार करने में लगभग 150 बुनकर परिवार लगे हुए हैं. इनका मुख्य व्यवसाय कपड़ा बनाना और बेचना होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से पिछले 40 दिनों से इनका काम-धंधा बंद पड़ा हुआ है. मजबूर बुनकरों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान मेहनताना तो मिल ही नहीं रहा है, साथ ही नए काम के लिए बाजार में कच्चा माल भी नहीं मिल रहा है, जिससे इनका पूरा काम ठप पड़ गया है.
परिवार चलाने की टेंशन
बुनकरों की मानें तो कोसा से कपड़ा बनाने का काम बेहद ही बारीकी से करना पड़ता है और ये उनका खानदानी पेशा है, इसी के भरोसे इनका परिवार चलता है, लेकिन बढ़ती महंगाई और लॉकडाउन में कच्चे माल की आपूर्ति बंद होने से इनका पारिवारिक रोजगार खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.