रायगढ़: बरमकेला ब्लॉक के गोबरसिंहा गांव के ग्रामीणों ने लचर व्यवस्था पर अपना विरोध प्रकट करने के लिए हजारों लीटर दूध तलाब में बहा दिया. किसानों का आरोप है कि दुग्ध संग्रहण समिति में उनके दूध की खरीदी नहीं हो रही है. लिहाजा दूध को तलाब में बहाने को वो मजबूर हैं. यह साक्षात उदाहरण है कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस ने लोगों के जीवन को कैसे अस्त-व्यस्त कर दिया है.
ग्राम पंचायत गोबरसिंहा में 28 मई को दो कोरोना संक्रमितों की पुष्टि हुई थी. जिसमें से एक ग्रामीण दिल्ली और एक ग्रामीण उड़ीसा से लौटा था. जैसे ही दोनों लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया. जिसके बाद से ग्रामीणों की जिंदगी बदल गई. 28 मई के बाद से ग्रामीणों का एक बूंद भी दूध नहीं बिक सका है. उनका कहना है कि दूध जरूरी सेवा होने के बावजूद भी गांव से दूध की बिक्री नहीं हो पा रही है. न ही दुग्ध समिति से दूध बाहर जा पा रहा है. जिस वजह से ग्रामीण तालाब में दूध बहाने को मजबूर हैं. लिहाजा ग्रामीणों में हताशा है. साथ ही शासन-प्रशासन के प्रति आक्रोश व्याप्त है.
मरीज स्वस्थ, लेकिन गांव अब भी सील
कोरोना संक्रमित हुए दोनों मरीज अब स्वस्थ हो चुके हैं. गांव के अपने घर में वापस लौट चुके हैं. फिलहाल दोनों को होम आइसोलेशन में रखा गया है. 14 दिनों के लिए मरीजों को होम आइसोलेशन के साथ गांव को दोबारा 14 दिन के लिए कंटेनमेंट जोन बना दिया गया है. ऐसे में गांव को 28 दिनों के लिए कंटेनमेंट जोन बना दिया गया. लिहाजा गांव में कोई बाहर से नहीं आ सकता है साथ ही गांव से कोई बाहर नहीं जा सकता है.
हजारों लीटर दूध का उत्पादन
गोबरसिंहा गांव में बड़ी मात्रा में दूध का उत्पादन होता है. ऐसे में ग्रामीण दूध संग्रहण समिति में बेचते हैं. गोबरसिंहा में ही लगभग 5 सौ ग्रामीण हैं, जो रोज लगभग 20 से 25 लीटर दूध का उत्पादन करते हैं. गोबरसिंहा गांव के आश्रित ग्रामों के लगभग 1 हजार ग्रामीण भी अपना दूध यहां बेचते थे. हजारों लीटर दूध नहीं बिक रहा है. ग्रामीण इससे परेशान हैं. लिहाजा अपने दूध को विरोध स्वरूप गांव के तालाब में बहा रहे हैं.
पढ़ें: 3 दिन बाद भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया घायल गजराज, इलाज में जुटा प्रशासन
मवेशियों के लिए चारा तक नहीं
ग्रामीणों ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से ही परेशानी झेल रहे थे. गांव में कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने के बाद से तो हालात खराब हो चुके हैं. मवेशियों को खिलाने के लिए पौष्टिक चारा तक उपल्बध नहीं हो पा रहा है. न ही दूध बिक रहा है, न ही चारा खरीद पा रहे हैं. भूख के कारण मवेशी गंभीर बीमारी के शिकार होते जा रहे हैं.
शासन-प्रशासन से गुहार
ग्रामीण लगातार कई दिनों से अपना दूध बेच नहीं पा रहे हैं. ऐसे में ग्रामीण प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. उनका कहना है कि हर रोज आस-पास के गांव को मिलाकर हजारों लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है. सरकार ने इसे जरूरी सेवा की श्रेणी में रखा है. फिर भी दूध बेच नहीं पा रहे हैं. सरकार उनकी गुहार सुने और उनकी परेशानी को जल्द से जल्द दूर करते हुए, दूध खरीदने के साथ ही मवेशियों के चारे की व्यव्स्था भी करे.