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SPECIAL: रोम-रोम में बसे राम, राम हैं रामनामी समाज की पहचान

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरा देश उत्साहित है. ऐसे में राम के सबसे बड़े भक्त माने जाने वाले छत्तीसगढ़ रामनामी समाज के लोग भी काफी खुश हैं. हालांकि रामनामी लोग मंदिरों और मूर्तियों को नहीं मानते, लेकिन फिर भी समाज के लोगों ने खुशी जाहिर की है. रामनामी समाज के लोगों में बचपन से ही श्री राम के प्रति अटूट श्रद्धा है, जिसकी वजह से ही उन्होंने पूरे बदन पर राम का नाम अंकित करा लिया. वह कहते हैं कि राम सबमें बसते हैं. धीरे-धीरे ये वर्ग विलुप्त होने के कगार पर है.

ramnami community chhattisgarh
छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज
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Published : Aug 5, 2020, 4:55 PM IST

रायगढ़ : हमारा देश मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का देश है. यहां लोगों में भगवान राम के प्रति गहरी आस्था है. कुछ रामभक्त ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी राम के नाम कर दी. उनकी एक-एक सांस भी भगवान राम को समर्पित है. छत्तीसगढ़ के रायगढ जिले में आने वाले सारंगढ़ में एक ऐसा वर्ग है, जिसे रामनामी समाज के नाम से जाना जाता है. रामनामी समाज के लोग दिन-रात भगवान श्री राम को पूजते हैं. श्री राम रामनामी समाज के लोगों के दिल-मन के साथ ही इनके शरीर के हर अंग में बसते हैं. राम का नाम ही इस समाज के लोगों की पहचान है. पूरे शरीर में राम लिखाकर ये राममय रहते हैं, लेकिन अब वक्त के साथ धीरे-धीरे ये रामभक्त अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरा देश उत्साहित है. ऐसे में राम के सबसे बड़े भक्त माने जाने वाले रामनामी समाज के लोग भी काफी खुश हैं. हालांकि रामनामी लोग मंदिरों और मूर्तियों को नहीं मानते, लेकिन फिर भी समाज के लोगों ने खुशी जाहिर की है. रामनामी समाज के लोगों में बचपन से ही श्री राम के प्रति अटूट श्रद्धा है, जिसकी वजह से ही उन्होंने पूरे बदन पर राम का नाम अंकित करा लिया. वह कहते हैं कि राम सबमें बसते हैं. धीरे-धीरे ये वर्ग विलुप्त होने के कगार पर है.

raigarh ramnami story
कपड़ों में भी लिखा होता है राम का नाम

रामनामी लोगों के पूरे शरीर पर लिखा हुआ है राम का नाम

रामनामी वे लोग हैं, जिन्होंने सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी हिस्सों में राम के नाम का गोदना(टैटू) बना रखा है. देखने से ये ऐसा प्रतित होता है, जैसे राम के नाम का परमानेंट चोला ही इन्होंने ओढ़ लिया हो. रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. रामनामी राम-राम लिखे हुए कपड़ों का धारण करते हैं और मोर के पंखों से बने मुकुट पहनते हैं.

ramnami samaj chhattisgarh
सैकड़ों सालों से चली आ रही है परंपरा

'हर जगह बसते हैं राम'

ऐसा कहा जाता है कि करीब सैकड़ों साल पहले किसी गांव में हिंदुओं की ऊंची जाति के लोगों ने इस समाज के लोगों को मंदिर में घुसने से मना कर दिया था, जिसके विरोध स्वरूप इन लोगों ने चेहरे समेत पूरे शरीर पर राम के नाम का गोदना(टैटू) कराना शुरू किया. रामनामी समाज को रमरमिहा के नाम से भी जाना जाता है. जानकारी के मुताबिक रामनामी समाज मंदिरों और मुर्तियों पर विश्वास नहीं रखता. रामनामी लोगों का मानना है कि भगवान राम हर जगह बसते हैं.

ramnami community chhattisgarh
मोर पंख से बना मुकुट पहनते हैं रामनामी

सारंगढ़ में रहने वाले रामनामी समाज की गणेशमती ने बताया कि उनके माता-पिता भी राम की भक्ति से जुड़े हुए थे, लिहाजा समय के साथ उनके अंदर भी भगवान राम को लेकर आस्था जगी. जिसके बाद गणेशमती ने भी अपने पूरे शरीर पर राम का नाम लिखा लिया.

पुराना है रामनामी का इतिहास

रामनामी समाज के प्रदेश प्रवक्ता मुनु पंडित बताते हैं कि 1885 में बाबा परशुराम ने अपने पूरे शरीर में राम का नाम लिखवाया था. तब उनकी उम्र 53 साल थी. बाबा परशुराम की राम भक्ति को देखकर उनकी धर्मपत्नी गंगाबाई ने भी अपने पूरे शरीर में राम-राम लिखवा लिया. इनके भक्ति और भजन प्रभाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में 200 से ज्यादा गांव में लोगों ने इसी तरह भगवान राम का नाम अपनी देह पर लिखाया था. वे बताते हैं कि उस वक्त करीब 10 हजार लोगों ने राम का नाम अपने शरीर पर लिखा लिया था. उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1911 में जांजगीर-चांपा के पिरदा गांव में भगवान राम के भजन मेला की शुरुआत की गई. जिसके बाद से रामनामी समाज की तरफ से हर साल जनवरी के महीने में भजन मेला का आयोजन किया जाता है. मेले में सभी रामभक्त शामिल होकर भगवान राम की भक्ति करते हैं.

पढ़ें- रामनामी मेला: एक ऐसा समाज जिनके लिए राम नाम ही दुनिया

मुनु पंडित बताते हैं कि सिर्फ एक जाति के लोग ही नहीं बल्कि कई जाति के लोगों ने रामनामी को अपनाया है. उन्होंने बताया कि चंद्राकर, साहू, सारथी, यादव और वैश्य समाज सहित चौहान समाज ने भी राम का नाम अपने शरीर पर लिखवाया था.

बता दें कि छत्तीसगढ़ के कई जिलों में रामनामी समाज के लोग निवासरत हैं. भगवान राम के नाम को लोगों तक पहुंचाने के लिए ये समाज हमेशा आगे रहा है. राम के नाम को ही सब कुछ मानने वाला यह समाज अपने आप में अनूठा है. हर साल 3 दिनों तक चलने वाले रामनामी भजन मेले में दूर-दूर से रामनामी लोग शामिल होते हैं और भगवान राम की भक्ति करते हैं .

रायगढ़ : हमारा देश मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का देश है. यहां लोगों में भगवान राम के प्रति गहरी आस्था है. कुछ रामभक्त ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी राम के नाम कर दी. उनकी एक-एक सांस भी भगवान राम को समर्पित है. छत्तीसगढ़ के रायगढ जिले में आने वाले सारंगढ़ में एक ऐसा वर्ग है, जिसे रामनामी समाज के नाम से जाना जाता है. रामनामी समाज के लोग दिन-रात भगवान श्री राम को पूजते हैं. श्री राम रामनामी समाज के लोगों के दिल-मन के साथ ही इनके शरीर के हर अंग में बसते हैं. राम का नाम ही इस समाज के लोगों की पहचान है. पूरे शरीर में राम लिखाकर ये राममय रहते हैं, लेकिन अब वक्त के साथ धीरे-धीरे ये रामभक्त अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरा देश उत्साहित है. ऐसे में राम के सबसे बड़े भक्त माने जाने वाले रामनामी समाज के लोग भी काफी खुश हैं. हालांकि रामनामी लोग मंदिरों और मूर्तियों को नहीं मानते, लेकिन फिर भी समाज के लोगों ने खुशी जाहिर की है. रामनामी समाज के लोगों में बचपन से ही श्री राम के प्रति अटूट श्रद्धा है, जिसकी वजह से ही उन्होंने पूरे बदन पर राम का नाम अंकित करा लिया. वह कहते हैं कि राम सबमें बसते हैं. धीरे-धीरे ये वर्ग विलुप्त होने के कगार पर है.

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कपड़ों में भी लिखा होता है राम का नाम

रामनामी लोगों के पूरे शरीर पर लिखा हुआ है राम का नाम

रामनामी वे लोग हैं, जिन्होंने सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी हिस्सों में राम के नाम का गोदना(टैटू) बना रखा है. देखने से ये ऐसा प्रतित होता है, जैसे राम के नाम का परमानेंट चोला ही इन्होंने ओढ़ लिया हो. रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. रामनामी राम-राम लिखे हुए कपड़ों का धारण करते हैं और मोर के पंखों से बने मुकुट पहनते हैं.

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सैकड़ों सालों से चली आ रही है परंपरा

'हर जगह बसते हैं राम'

ऐसा कहा जाता है कि करीब सैकड़ों साल पहले किसी गांव में हिंदुओं की ऊंची जाति के लोगों ने इस समाज के लोगों को मंदिर में घुसने से मना कर दिया था, जिसके विरोध स्वरूप इन लोगों ने चेहरे समेत पूरे शरीर पर राम के नाम का गोदना(टैटू) कराना शुरू किया. रामनामी समाज को रमरमिहा के नाम से भी जाना जाता है. जानकारी के मुताबिक रामनामी समाज मंदिरों और मुर्तियों पर विश्वास नहीं रखता. रामनामी लोगों का मानना है कि भगवान राम हर जगह बसते हैं.

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मोर पंख से बना मुकुट पहनते हैं रामनामी

सारंगढ़ में रहने वाले रामनामी समाज की गणेशमती ने बताया कि उनके माता-पिता भी राम की भक्ति से जुड़े हुए थे, लिहाजा समय के साथ उनके अंदर भी भगवान राम को लेकर आस्था जगी. जिसके बाद गणेशमती ने भी अपने पूरे शरीर पर राम का नाम लिखा लिया.

पुराना है रामनामी का इतिहास

रामनामी समाज के प्रदेश प्रवक्ता मुनु पंडित बताते हैं कि 1885 में बाबा परशुराम ने अपने पूरे शरीर में राम का नाम लिखवाया था. तब उनकी उम्र 53 साल थी. बाबा परशुराम की राम भक्ति को देखकर उनकी धर्मपत्नी गंगाबाई ने भी अपने पूरे शरीर में राम-राम लिखवा लिया. इनके भक्ति और भजन प्रभाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में 200 से ज्यादा गांव में लोगों ने इसी तरह भगवान राम का नाम अपनी देह पर लिखाया था. वे बताते हैं कि उस वक्त करीब 10 हजार लोगों ने राम का नाम अपने शरीर पर लिखा लिया था. उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1911 में जांजगीर-चांपा के पिरदा गांव में भगवान राम के भजन मेला की शुरुआत की गई. जिसके बाद से रामनामी समाज की तरफ से हर साल जनवरी के महीने में भजन मेला का आयोजन किया जाता है. मेले में सभी रामभक्त शामिल होकर भगवान राम की भक्ति करते हैं.

पढ़ें- रामनामी मेला: एक ऐसा समाज जिनके लिए राम नाम ही दुनिया

मुनु पंडित बताते हैं कि सिर्फ एक जाति के लोग ही नहीं बल्कि कई जाति के लोगों ने रामनामी को अपनाया है. उन्होंने बताया कि चंद्राकर, साहू, सारथी, यादव और वैश्य समाज सहित चौहान समाज ने भी राम का नाम अपने शरीर पर लिखवाया था.

बता दें कि छत्तीसगढ़ के कई जिलों में रामनामी समाज के लोग निवासरत हैं. भगवान राम के नाम को लोगों तक पहुंचाने के लिए ये समाज हमेशा आगे रहा है. राम के नाम को ही सब कुछ मानने वाला यह समाज अपने आप में अनूठा है. हर साल 3 दिनों तक चलने वाले रामनामी भजन मेले में दूर-दूर से रामनामी लोग शामिल होते हैं और भगवान राम की भक्ति करते हैं .

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