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SPECIAL: जादू जैसी है ये लड़की, आपको कर देगी हैरान - बरमकेला में रहने वाली प्रकृति पटेल

मिड ब्रेन एक्टिवेशन तकनीक की मदद से रायगढ़ के बरमकेला में रहने वाली प्रकृति पटेल क्षेत्र के लोगों के लिए आकर्षण बनी हुई है. साइंस और तकनीक की मदद से वह असामान्य सी लगने वाली चीजें कर लेती है. जैसे आंखों पर पट्टी बांधकर किताबें पढ़ लेना, रंग-बिरंगे गेंदों को देखे बिना उनका रंग बता देना, मोबाइल को बिना देखे सही नंबर निकालकर कॉल लगा लेना. सामान्य लोगों के लिए यह सब करना कठिन होगा, लेकिन प्रकृति के लिए बेहद आसान ही आसान है. ETV भारत आपको इस नन्ही मिरेकल गर्ल से मिला रहा है.

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रायगढ़ की प्रकृति पटेल
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Published : Oct 8, 2020, 7:43 PM IST

रायगढ़: जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बरमकेला में रहने वाली 10 साल की प्रकृति पटेल कौतूहल का विषय बनी हुई है. दरअसल कम उम्र में मिडब्रेन एक्टिवेशन में महारथ हासिल करने वाली प्रकृति लोगों के लिए किसी जादूगर से कम नहीं है. साइंस और तकनीक की मदद से वह असामान्य सी लगने वाली चीजें कर लेती हैं. जैसे आंखों पर पट्टी बांधकर किताबें पढ़ लेना, रंग-बिरंगे गेंदों को देखे बिना उनका रंग बता देना, मोबाइल को बिना देखे सही नंबर निकालकर कॉल लगा लेना. सामान्य लोगों के लिए यह सब करना कठिन होगा, लेकिन प्रकृति के लिए बेहद आसान ही आसान है.

रायगढ़ की प्रकृति पटेल है मिरेकल गर्ल

प्रकृति के माता-पिता शिक्षक हैं और उनके नाना भी टीचर थे, जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं. प्रकृति बरमकेला के सेंट जेवियर स्कूल में कक्षा पांचवीं की छात्रा है. स्कूल में मिडब्रेन एक्टिवेशन के लिए निजी संस्था से आए कुछ लोगों ने ब्रेन टेस्ट लिया, जिसमें पास होकर प्रकृति ने 1 महीने के 4 रविवार ट्रेनिंग ली.

कम उम्र में बेहतर करने लगी प्रकृति

ट्रेनिंग के दौरान उन्हें मेडिटेशन, हिंदी में प्रैक्टिकल और ब्रेन एक्सरसाइज कराया जाता था. इस पूरी प्रक्रिया को मिड ब्रेन एक्टिवेशन कहते हैं. इससे मस्तिष्क का वह भाग भी सक्रिय हो जाता है, जिसकी सहायता से बंद आंखों से भी चीजों को उसके रंग, हाव-भाव और उसके गंध और स्पर्श से ही बिना देखे भी वास्तव में समझा जा सकता है. प्रकृति ने अपनी ट्रेनिंग में बखूबी से समझा और उन्होंने योग्यता हासिल कर ली. कम उम्र में प्रकृति की इस उपलब्धि से उनके घर वाले काफी खुश हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति पढ़ाई में भी अबतक टॉपर रही है.

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बंद आंखों से बता देती है सामानों का रंग और रूप

योगाभ्यास और मेडिटेशन करती है प्रकृति

शिक्षकों के परिवार में पली-बढ़ी प्रकृति को मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए कोई ज्यादा मानसिक रूप से परेशानी नहीं हुई. योग अभ्यास और ब्रेन एक्सरसाइज की मदद से मिड ब्रेन को एक्टिवेट किया जा सकता है. प्रकृति सामान्य बच्चों की तरह ही पढ़ने खेलने और मस्ती करने में रुचि दिखाती है. साथ ही अतिरिक्त समय देकर योगाभ्यास और मेडिटेशन करती है. यही वजह है कि लगातार इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करने से प्रकृति के दिमाग की एकाग्रता बढ़ी है.

मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए स्कूल में हुई थी परीक्षा

उनके पिता बताते हैं कि स्कूल में मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए परीक्षा हुई, जिसमें प्रकृति पास हुई तो 4 सप्ताह के हर रविवार को 6 घंटे के विशेष क्लास में प्रकृति ने हिस्सा लिया. वहां पर उसे ब्रेन एक्सरसाइज और अन्य क्रियाकलाप सिखाए जाते थे. नतीजा यह निकला कि प्रकृति आंख बंद करके रंगों को पहचान लेती है, किताबें पढ़ सकती है और मोबाइल का उपयोग कर सकती है. प्रकृति ने बताया कि रंग, अक्षर को सूंघ कर उसके बारे में बता सकती है. वह रोजाना 20 से 25 मिनट मेडिटेशन करती हैं और सिखाई गई एक्सरसाइज को करती है.

क्या होता है मिड ब्रेन एक्टीवेशन

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माता-पिता के साथ प्रकृति पटेल

मिड ब्रेन एक्टीवेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें बच्चों के दिमाग की क्षमताओं के विकास की गति और दायरा बढ़ाया जा सकता है. यह प्रक्रिया पूरी तरह साइंस बेस्ड है. बस कुछ घंटे की ब्रेन स्टॉर्मिंग एक्सरसाइज बच्चे की क्षमताएं बढ़ा देती हैं.

दरअसल, दिमाग का बायां और दायां हिस्सा अलग-अलग काम करते हैं. बायां हिस्सा लॉजिकल और दायां हिस्सा क्रिएटिव होता है. जो एक्सरसाइज ब्रेन स्टॉर्मिंग के लिए करवाई जाती हैं, वह इन दोनों हिस्सों को जोड़ने का काम करती हैं. इसीलिए इस प्रक्रिया का नाम मिड ब्रेन एक्टिवेशन रखा गया है. इससे दोनों हिस्से के ब्रेन बराबर रूप में सक्रिय हो जाते हैं और दाएं हिस्से की सक्रियता का फायदा बच्चे को मिलता है. प्रकृति ने भी कम उम्र में इसे अपने जीवन में शामिल कर लिया है और बढ़ती उम्र के साथ वह तकनीक से और अपग्रेड होती जाएगी.

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बरमकेला ब्लॉक की रहने वाली है प्रकृति पटेल

पढ़ें- बिलासपुर: अकेले बुजुर्गों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं वृद्धाश्रम के संचालक, नहीं होने देते कोई कमी

अनुशासन और अभ्यास की जरूरत

मिड ब्रेन एक्टिवेशन के लिए 4 से 15 साल तक के बच्चे सबसे अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि इस उम्र तक दिमाग सबसे ज्यादा तेजी से सीखता है. इसके ऊपर की उम्र वाले भी इसे सीख सकते हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए और ज्यादा अनुशासन और अभ्यास की जरूरत पड़ती है. इसके लिए योग, मेडिटेशन, संगीत, नृत्य, रिलैक्सेशन और बिहेवियरल साइंस को मिला कर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम तैयार किया जाता है. इस प्रोग्राम के जरिए बच्चों की एकाग्रता और दूसरी क्षमताओं को बढ़ाया जाता है.

रायगढ़: जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बरमकेला में रहने वाली 10 साल की प्रकृति पटेल कौतूहल का विषय बनी हुई है. दरअसल कम उम्र में मिडब्रेन एक्टिवेशन में महारथ हासिल करने वाली प्रकृति लोगों के लिए किसी जादूगर से कम नहीं है. साइंस और तकनीक की मदद से वह असामान्य सी लगने वाली चीजें कर लेती हैं. जैसे आंखों पर पट्टी बांधकर किताबें पढ़ लेना, रंग-बिरंगे गेंदों को देखे बिना उनका रंग बता देना, मोबाइल को बिना देखे सही नंबर निकालकर कॉल लगा लेना. सामान्य लोगों के लिए यह सब करना कठिन होगा, लेकिन प्रकृति के लिए बेहद आसान ही आसान है.

रायगढ़ की प्रकृति पटेल है मिरेकल गर्ल

प्रकृति के माता-पिता शिक्षक हैं और उनके नाना भी टीचर थे, जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं. प्रकृति बरमकेला के सेंट जेवियर स्कूल में कक्षा पांचवीं की छात्रा है. स्कूल में मिडब्रेन एक्टिवेशन के लिए निजी संस्था से आए कुछ लोगों ने ब्रेन टेस्ट लिया, जिसमें पास होकर प्रकृति ने 1 महीने के 4 रविवार ट्रेनिंग ली.

कम उम्र में बेहतर करने लगी प्रकृति

ट्रेनिंग के दौरान उन्हें मेडिटेशन, हिंदी में प्रैक्टिकल और ब्रेन एक्सरसाइज कराया जाता था. इस पूरी प्रक्रिया को मिड ब्रेन एक्टिवेशन कहते हैं. इससे मस्तिष्क का वह भाग भी सक्रिय हो जाता है, जिसकी सहायता से बंद आंखों से भी चीजों को उसके रंग, हाव-भाव और उसके गंध और स्पर्श से ही बिना देखे भी वास्तव में समझा जा सकता है. प्रकृति ने अपनी ट्रेनिंग में बखूबी से समझा और उन्होंने योग्यता हासिल कर ली. कम उम्र में प्रकृति की इस उपलब्धि से उनके घर वाले काफी खुश हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति पढ़ाई में भी अबतक टॉपर रही है.

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बंद आंखों से बता देती है सामानों का रंग और रूप

योगाभ्यास और मेडिटेशन करती है प्रकृति

शिक्षकों के परिवार में पली-बढ़ी प्रकृति को मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए कोई ज्यादा मानसिक रूप से परेशानी नहीं हुई. योग अभ्यास और ब्रेन एक्सरसाइज की मदद से मिड ब्रेन को एक्टिवेट किया जा सकता है. प्रकृति सामान्य बच्चों की तरह ही पढ़ने खेलने और मस्ती करने में रुचि दिखाती है. साथ ही अतिरिक्त समय देकर योगाभ्यास और मेडिटेशन करती है. यही वजह है कि लगातार इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करने से प्रकृति के दिमाग की एकाग्रता बढ़ी है.

मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए स्कूल में हुई थी परीक्षा

उनके पिता बताते हैं कि स्कूल में मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के लिए परीक्षा हुई, जिसमें प्रकृति पास हुई तो 4 सप्ताह के हर रविवार को 6 घंटे के विशेष क्लास में प्रकृति ने हिस्सा लिया. वहां पर उसे ब्रेन एक्सरसाइज और अन्य क्रियाकलाप सिखाए जाते थे. नतीजा यह निकला कि प्रकृति आंख बंद करके रंगों को पहचान लेती है, किताबें पढ़ सकती है और मोबाइल का उपयोग कर सकती है. प्रकृति ने बताया कि रंग, अक्षर को सूंघ कर उसके बारे में बता सकती है. वह रोजाना 20 से 25 मिनट मेडिटेशन करती हैं और सिखाई गई एक्सरसाइज को करती है.

क्या होता है मिड ब्रेन एक्टीवेशन

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माता-पिता के साथ प्रकृति पटेल

मिड ब्रेन एक्टीवेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें बच्चों के दिमाग की क्षमताओं के विकास की गति और दायरा बढ़ाया जा सकता है. यह प्रक्रिया पूरी तरह साइंस बेस्ड है. बस कुछ घंटे की ब्रेन स्टॉर्मिंग एक्सरसाइज बच्चे की क्षमताएं बढ़ा देती हैं.

दरअसल, दिमाग का बायां और दायां हिस्सा अलग-अलग काम करते हैं. बायां हिस्सा लॉजिकल और दायां हिस्सा क्रिएटिव होता है. जो एक्सरसाइज ब्रेन स्टॉर्मिंग के लिए करवाई जाती हैं, वह इन दोनों हिस्सों को जोड़ने का काम करती हैं. इसीलिए इस प्रक्रिया का नाम मिड ब्रेन एक्टिवेशन रखा गया है. इससे दोनों हिस्से के ब्रेन बराबर रूप में सक्रिय हो जाते हैं और दाएं हिस्से की सक्रियता का फायदा बच्चे को मिलता है. प्रकृति ने भी कम उम्र में इसे अपने जीवन में शामिल कर लिया है और बढ़ती उम्र के साथ वह तकनीक से और अपग्रेड होती जाएगी.

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पढ़ें- बिलासपुर: अकेले बुजुर्गों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं वृद्धाश्रम के संचालक, नहीं होने देते कोई कमी

अनुशासन और अभ्यास की जरूरत

मिड ब्रेन एक्टिवेशन के लिए 4 से 15 साल तक के बच्चे सबसे अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि इस उम्र तक दिमाग सबसे ज्यादा तेजी से सीखता है. इसके ऊपर की उम्र वाले भी इसे सीख सकते हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए और ज्यादा अनुशासन और अभ्यास की जरूरत पड़ती है. इसके लिए योग, मेडिटेशन, संगीत, नृत्य, रिलैक्सेशन और बिहेवियरल साइंस को मिला कर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम तैयार किया जाता है. इस प्रोग्राम के जरिए बच्चों की एकाग्रता और दूसरी क्षमताओं को बढ़ाया जाता है.

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