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प्रदोष व्रत 2021: भगवान शिव करते हैं हर मनोकामनाएं पूरी, जानें पूजन विधि

सावन का प्रदोष व्रत इस साल 5 अगस्त 2021 को है. गुरूवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना और व्रत रखने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में खुशहाली आती है.

Pradosh Vrat 2021
प्रदोष व्रत 2021
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Published : Aug 4, 2021, 7:01 PM IST

Updated : Aug 4, 2021, 11:00 PM IST

रायपुर: प्रदोष व्रत पंचांग के अनुसार इस बार 5 अगस्त को पड़ रहा है. प्रदोष व्रत की पूजा से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत रखने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होता है.

प्रदोष व्रत की जानें पूजन विधि

सावन प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. यह गुरु प्रदोष व्रत या आद्रा प्रदोष व्रत भी कहलाता है. इस वर्ष 5 अगस्त को यह प्रदोष व्रत शिव भक्तों के द्वारा मनाया जाएगा. इस दिन हर्षण और काण योग बन रहे हैं. चंद्रमा इस दिन मिथुन राशि में विराजमान रहेगा. मिथुन राशि भोलेनाथ के पुत्र गणेश जी को विशेष प्रिय हैं.

माघ शुक्ल का प्रदोष व्रत आज, जानें पूजन विधि

प्रदोष व्रत रखने से होगी सभी मनोकामनाएं पूरी

प्रदोष व्रत करने से भगवान रुद्र से आरोग्य, आयुष्य और शरीर के समस्त विकारों से मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है. सावन का प्रदोष व्रत निराहार रुप से करने पर शिव भक्तों की समस्त मनोकामनाएं सहज ही पूर्ण होती है.

प्रदोष व्रत संधि काल के समय गोधूलि बेला में संध्या के समय मनाया जाता है. सूर्यास्त से लगभग 72 मिनट पूर्व और 72 मिनट बाद प्रदोष काल माना गया है. प्रदोष काल संध्या 5:23 से शाम 7:47 बजे तक रहेगा. प्रदोष व्रत को करना 1000 गायों के दान के बराबर माना गया है. इस व्रत को निराहार करना चाहिए. भगवान शिव को घी का दीपक जलाकर आरती कर फलाहार ग्रहण करने का विधान है.

क्यों खास है श्रावन का प्रदोष व्रत ?

भगवान चंद्र देव ने भी इस व्रत को किया था. जिसके फलस्वरूप वे रोगों से मुक्त हुए थे. इस व्रत को करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं. संध्या के मंत्रों के साथ, इस व्रत को करना चाहिए. सावन के प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है. गुरुवार के दिन प्रदोष होने से यह और भी विशिष्ट माना जाता है. इस दिन आद्रा नक्षत्र विराजमान रहेगा.

अतः यह अहोरात्र भी कहलाता है. इस दिन धान्य छेदन यंत्र शस्त्र घटन का भी शुभ मुहूर्त है. मान्यता है कि भगवान शिव रजत भवन में इस दिन आनंद के साथ नृत्य करते हैं. इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भवानी शंकर रूद्र शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.

इस व्रत को करने से मिलता है विशेष फल

प्रदोष व्रत शिव पार्वती की विशेष संध्याकाल कहलाती है. इस समय प्रकृति हर्षित होती है. शिव,शिवा के रूप में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है और सावन के महीने में प्रदोष व्रत का महत्व और बढ़ जाता है. माताएं, बहने, कन्याएं और शिव भक्त प्रदोष काल में शिवजी की आराधना कर विशेष फल प्राप्त करते हैं. यह समय संधि काल कहलाता है और संपूर्ण प्रकृति इस समय अत्यधिक सक्रिय और प्रभावशील रहती है.

रायपुर: प्रदोष व्रत पंचांग के अनुसार इस बार 5 अगस्त को पड़ रहा है. प्रदोष व्रत की पूजा से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत रखने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होता है.

प्रदोष व्रत की जानें पूजन विधि

सावन प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. यह गुरु प्रदोष व्रत या आद्रा प्रदोष व्रत भी कहलाता है. इस वर्ष 5 अगस्त को यह प्रदोष व्रत शिव भक्तों के द्वारा मनाया जाएगा. इस दिन हर्षण और काण योग बन रहे हैं. चंद्रमा इस दिन मिथुन राशि में विराजमान रहेगा. मिथुन राशि भोलेनाथ के पुत्र गणेश जी को विशेष प्रिय हैं.

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प्रदोष व्रत रखने से होगी सभी मनोकामनाएं पूरी

प्रदोष व्रत करने से भगवान रुद्र से आरोग्य, आयुष्य और शरीर के समस्त विकारों से मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है. सावन का प्रदोष व्रत निराहार रुप से करने पर शिव भक्तों की समस्त मनोकामनाएं सहज ही पूर्ण होती है.

प्रदोष व्रत संधि काल के समय गोधूलि बेला में संध्या के समय मनाया जाता है. सूर्यास्त से लगभग 72 मिनट पूर्व और 72 मिनट बाद प्रदोष काल माना गया है. प्रदोष काल संध्या 5:23 से शाम 7:47 बजे तक रहेगा. प्रदोष व्रत को करना 1000 गायों के दान के बराबर माना गया है. इस व्रत को निराहार करना चाहिए. भगवान शिव को घी का दीपक जलाकर आरती कर फलाहार ग्रहण करने का विधान है.

क्यों खास है श्रावन का प्रदोष व्रत ?

भगवान चंद्र देव ने भी इस व्रत को किया था. जिसके फलस्वरूप वे रोगों से मुक्त हुए थे. इस व्रत को करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं. संध्या के मंत्रों के साथ, इस व्रत को करना चाहिए. सावन के प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है. गुरुवार के दिन प्रदोष होने से यह और भी विशिष्ट माना जाता है. इस दिन आद्रा नक्षत्र विराजमान रहेगा.

अतः यह अहोरात्र भी कहलाता है. इस दिन धान्य छेदन यंत्र शस्त्र घटन का भी शुभ मुहूर्त है. मान्यता है कि भगवान शिव रजत भवन में इस दिन आनंद के साथ नृत्य करते हैं. इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भवानी शंकर रूद्र शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.

इस व्रत को करने से मिलता है विशेष फल

प्रदोष व्रत शिव पार्वती की विशेष संध्याकाल कहलाती है. इस समय प्रकृति हर्षित होती है. शिव,शिवा के रूप में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है और सावन के महीने में प्रदोष व्रत का महत्व और बढ़ जाता है. माताएं, बहने, कन्याएं और शिव भक्त प्रदोष काल में शिवजी की आराधना कर विशेष फल प्राप्त करते हैं. यह समय संधि काल कहलाता है और संपूर्ण प्रकृति इस समय अत्यधिक सक्रिय और प्रभावशील रहती है.

Last Updated : Aug 4, 2021, 11:00 PM IST
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