दरअसल, साल 2014 में रायगढ़ में पदस्थापना के दौरान करसोलिया पर टेंडर घोटाले के आरोप लगे थे. आरोपी 22 लाख रुपए के एक टेंडर का नंबर बदलकर फर्जी तरीके से निर्माण करा रहा था. मामला उजागर होने के बाद इसकी जांच की गई, तब पता चला कि ईई ने 12845 नंबर से टेंडर अंकित किया था, लेकिन 20 जुलाई 2014 को एक अखबार में जारी 22 लाख के टेंडर में वह नंबर ही नहीं था.
जांच में पता चला कि टेंडर फर्जी तरीके से छुपाया गया था और इसमें ठेकेदार की भी मिलीभगत है. पूरे मामले में अपर सत्र न्यायाधीश गीता नेवारे की कोर्ट में सुनवाई चल रही थी.
जल प्रदाय योजना के तहत लगभग 22 लाख रुपए का टेंडर जारी करने के लिए रायपुर जनसंपर्क कार्यालय भेजना था, लेकिन अपने पसंद के ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से ईई ने जनसंपर्क कार्यालय में टेंडर भेजा ही नहीं. जनसंपर्क अधिकारी की फर्जी मुहर लगाकर और फर्जी कागजात की कटिंग देकर सुधीर पटेल को दे दिया.
दोनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 120 बी, 420, 467 468, 471 के तहत दो-दो साल की सजा सुनाई है. मामले में विभाग के बाबू सुखलाल साहू के ऊपर भी केस चल रहा था. इसमें उसे दोषमुक्त कर दिया गया है.