रायगढ़: छत्तीसगढ़ में धान सिर्फ खाने के लिए बल्कि कला को प्रदर्शित करने का जरिया भी है. धान से निकलने वाले पैरा से सुंदर आर्ट बनाई जा रही है. दिवाली को देखते हुए हस्तशिल्पकारी, लघु उद्योगों और स्व सहायता समूह की महिलाओं को स्थानीय जिला प्रशासन कलेक्टर परिसर में बाजार लगाने की सुविधा दे रहा है. परिसर में 2 दिनों के लिए कोरबा और जांजगीर चांपा से आए पैरा और बंबू आर्ट के शिल्पकारों ने स्टॉल लगाया है. लोगों को इनका बनाया सामान काफी पसंद आ रहा है और खरीदारी भी अच्छी हो रही है. इससे पहले ये लोग राजनांदगांव, रायपुर, कोरबा और अन्य राज्यों में भी स्टॉल लगाकर के प्रदर्शनी और बिक्री कर चुके हैं.
पैरा को धान की पलारी भी कहते हैं. जब धान पक जाता है तो उसके दाने को पौधे से अलग कर लिया जाता है. इसके बाद पौधे का बचा हुआ हिस्सा ही पैरा कहलाता है. छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है. यहां हर घर में पैरा आसानी से मिल जाता है. कलाकार पैरा की ऊपरी परत को निकाल कर कर उसके भीतर के मुलायम परत से पेंटिंग के ऊपर कवर चढ़ा देते हैं.
कलर के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. पैरा में कई तरह के रंग होते हैं. आर्टिस्ट ने बताया कि एक छोटी पोट्रेट 300 से 400 रुपए में बिकती है. कोई अलग से फोटो बनवाना चाहे तो उसकी अलग से कीमत ली जाती है. इससे अच्छा रोजगार मिल रहा है. इसके साथ ही वे कई लोगों को काम भी दे रहे हैं.
पढ़ें- छत्तीसगढ़ की महिलाओं के लिए वरदान बनी 'बस्तरिया बूटी,' देखें खास रिपोर्ट
क्या होता है बंबू आर्ट ?
बंबू या बांस के उपयोग से दैनिक जीवन में उपयोगी सामान बनाए जाते हैं. कभी बांस के सहारे रंग-बिरंगे और आकर्षक वस्तुएं बनती थी. लेकिन समय के साथ ही यह विलुप्त होने लगी हैं. लेकिन अब बंबू आर्टिस्ट इस कला को फिर से संजो रहे हैं. इसमें बांस के सहारे सुंदर मनमोहक आकृतियां बनाते हैं. दैनिक उपयोगी समान ही नहीं बच्चों के खिलौने, कुर्सी, टेबल लैंप जैसे कई चीजें बांस से बनाई जाती हैं, जो देखने में काफी आकर्षक लगता है. बंबू आर्टिस्ट बताते हैं कि शासन से उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और उन्होंने भी जी तोड़ मेहनत की. आज वे अपने साथ 17 से भी ज्यादा समूहों की महिला और लोगों को रोजगार दे रहे हैं. जो हर महीने 20 से 25 हजार रुपए कमा रही हैं.