रायगढ़: साल 2011-12 से रायगढ़ जिले में लारा स्थित एनटीपीसी प्लांट ने भूमि अधिग्रहण कर पैर जमाना शुरू किया था. तब से लेकर अबतक स्थानीय किसानों की परेशानी थमने का नाम नहीं ले रही है. 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए बने इस प्लांट में अभी 800 मेगावाट का एक प्लांट चल रहा है. जबकि दूसरा बनकर तैयार हुआ है, जिसे शासन ने अप्रूवल नहीं दिया है. इस प्लांट के लिए 9 गांव के 2449 किसानों से जमीन ली गई थी. 2449 किसानों को बोनस देना था, जिसमें से 1810 किसानों को बोनस मिल चुका है जबकि 639 किसान अभी भी बचे हुए हैं.
सबसे बड़ी समस्या है भू-विस्थापन के बाद मुआवजा और बोनस की राशि का न मिल पाना. साथ ही जिन किसानों की जमीन गई है उनके घर के शिक्षित पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया था, लेकिन आज तक युवाओं को नियमित रोजगार नहीं मिल पाया है.
मुआवजा, रोजगार और बोनस देने के नाम पर ली गई थी जमीन
रायगढ़ जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर लारा में एनटीपीसी प्लांट लगाया गया है. साल 2011-12 में यहां पर प्लांट लगना शुरू हुआ. जिसके लिए आसपास के 9 गांव से किसानों की जमीनों को अधिग्रहित किया गया था. इसमें खाताधारक किसान, भूमिहीन किसान और वन भूमि से रोजगार प्राप्त करने वाले किसानों को मुआवजा, बोनस और पात्र व्यक्तियों को रोजगार देने की बात कही गई थी. उद्योग लगे लगभग 8 साल बीत जाने के बाद भी सैकड़ों किसान अब रोजगार भूमि का मुआवजा और बोनस का इंतजार कर रहे हैं. किसान अपने हक के लिए एनटीपीसी और रायगढ़ जिला प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं.
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आंदोलन करने पर जेल में डाल दिया गया था
भू-विस्थापित किसानों का कहना है कि वे अपने हक की लड़ाई के लिए अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे थे. लेकिन उद्योग प्रशासन ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया. रायगढ़ पुलिस के सहारे कई दिनों तक थाने में लाकर बिठा दिया गया. जिसके बाद उनका हौसला टूट गया और वे आंदोलन छोड़ कर भगवान भरोसे बैठ गए हैं.
रोजगार की मांग को लेकर युवा दे रहे अनिश्चितकालीन धरना
स्थानीय पढ़े-लिखे युवाओं को अपनी जमीन जाने का उतना गम नहीं है. जितना उनके साथ हुए छलावे का है. युवाओं का कहना है कि जब उनके गांव की जमीन पर उद्योग लगने की बात हुई थी तब मन में खुशी थी कि घर के पास ही रोजगार मिलेगा, बाहर जाना नहीं पड़ेगा. लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि अपने हक की लड़ाई के लिए उन्हें कंपनी के सामने धरने पर बैठना पड़ रहा है. बीते कई महीने से वे अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं और अपनी पात्रता के अनुसार प्लांट में रोजगार की मांग कर रहे हैं.
प्रबंधन ने कुछ भी कहने से किया इनकार
उद्योग प्रबंधन ने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. उनका कहना है कि राज्य शासन के द्वारा भू-अधिग्रहण कर एनटीपीसी के साथ एमओयू साइन किया गया है. राज्य शासन और एनटीपीसी शीर्ष प्रशासन के निर्देश के बाद ही रोजगार, मुआवजा और बोनस मिल सकता है. अबतक लगभग 400 से ज्यादा युवाओं को अस्थाई नौकरी दी गई है, लेकिन स्थाई नौकरी के विषय में कुछ कह नहीं चाहते.
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मुआवजा मिला लेकिन बोनस के लिए काट रहे चक्कर
कुछ किसानों ने बताया कि उनको मुआवजा तो मिल गया है, लेकिन बोनस नहीं मिला है. इसलिए वे दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. उद्योग निर्माण से पहले अपने पूर्वजों की जमीन अपने और अपनी संतानों के नाम हिस्सा बंटवारा करने पर सभी अपनी जमीन के स्वतंत्र मालिक हो गए थे, लेकिन उद्योग प्रशासन स्वतंत्र मालिकों को बोनस न देकर पूर्व में जिनके नाम से जमीन थी, केवल उन्हीं को बोनस दे रही है.
भूमिहीन और तेंदूपत्ता इकट्ठा करने वालो के साथ भेदभाव
भूमिहीन किसानों और तेंदूपत्ता इकट्ठा करने वाले किसान अपने साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगा रहे हैं. भूमिहीन और तेंदूपत्ता इकट्ठा करने वाले किसानों को मुआवजा के तौर पर 95 हजार रुपए प्रति किसान की दर से देना था, लेकिन दर्जनों ऐसे किसान हैं जिनको एक बार भी राशि नहीं मिली है. अब वे स्थानीय रोजगार से हाथ धो बैठे हैं तो मुआवजा के लिए कोई पूछ परख करने वाला नहीं है. किसानों का कहना है कि आंदोलन करने पर उनकी आवाज दबा दी जाती है.
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'मुआवजे के लिए तैयार की जा रही किसानों की सूची'
रायगढ़ SDM का कहना है कि भू-विस्थापित किसानों को मुआवजा दिया जा रहा है. लगभग सभी किसानों को मुआवजा मिल चुका है. जिन लोगों को नहीं मिला है, उनकी सूची तैयार की जा रही है. बोनस को लेकर समस्या आ रही है, क्योंकि उद्योग लगने की जानकारी के बाद से बहुत सारे किसानों ने अपने भूमि का बंटवारा कर दिया था. जिससे बोनस के हिस्सेदार अधिक हो गए थे. लिहाजा अब ऐसे लोगों की छंटनी की जा रही है जिन्होंने अनियमित तौर पर भू-बंटवारा किया था. जांच की वजह से बोनस देने पर रोक लगा दी गई है. आंकड़े तैयार किए जा रहे हैं, जिसके आधार पर बचा हुआ मुआवजा दिया जाएगा.