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SPECIAL: संकट में जीवनदायिनी केलो नदी का अस्तित्व, शहर की गंदगी के साथ कोविड बायोवेस्ट भी हो रहा डंप

महानदी की सहायक और रायगढ़ की जीवनदायिनी केलो नदी अब नाला बन चुकी है. शहरभर के गंदे पानी के साथ ही अब इसमें कोविड बायोवेस्ट भी डंप किया जा रहा है, जिससे इस नदी का अस्तित्व ही संकट में है.

kelo river turning into garbage heap in raigarh
केलो नदी
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Published : Sep 16, 2020, 2:38 PM IST

रायगढ़: शहर की जीवनदायिनी केलो नदी आज अपना अस्तित्व तलाश रही है. अपनी पहचान के संकट से जूझ रही है. आज ये कचरे के ढेर में तब्दील हो रही है. गंदगी इतना कि नदी का स्वरूप ही बदल गया है और अब ये किसी बड़े नाले के समान दिखने लगी है. कभी ये नदी रायगढ़ शहर के लिए पीने के पानी और दैनिक जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी.

महानदी की सहायक नदी

केलो नदी को महानदी की सहायक नदी के रूप में भी जाना जाता है. इसका उद्गम रायगढ़ जिले के घरघोड़ा ब्लॉक अंतर्गत लुढेंग की पहाड़ियों से हुआ है. लगभग 200 किलोमीटर की लंबाई वाली ये नदी ओडिशा के केगुदुम गांव में महानदी में मिल जाती है.

समाजसेवी और स्थानीय लोग लगातार नदी के उद्धार के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण केलो नदी शहर की नालियों से जुड़ गई है, जिससे शहर और फैक्ट्रियों का पूरा गंदा पानी सीधे नदी में ही छोड़ दिया जा रहा है.

संकट में जीवनदायिनी केलो नदी का अस्तित्व

पढ़ें: रायगढ़: प्रदूषित हो रही केलो नदी, अधर में लटका सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम

कोविड बायोवेस्ट भी केलो नदी में हो रहा डंप

शहर का बढ़ता बोझ और औद्योगिकीकरण केलो नदी के लिए अभिशाप तो था ही, अब केलो नदी के किनारे कोविड-19 महामारी के इलाज के लिए बनाए गए अस्पताल रही-सही कसर पूरी कर रहे हैं. अस्पताल से निकला बायो मेडिकल वेस्ट नदी किनारे ही फेंक दिया जा रहा है, जो काफी खतरनाक है. ये वेस्ट अगर नदी में चला जाता है, तो इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं. शहर के गंदे नाले से निकलने वाले पानी की सफाई के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन कचरे के निस्तारण के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है.

पढ़ें: फेल हुई करोड़ों की केलो परियोजना, केवल उद्योगपतियों को हो रहा लाभ

नदी के उद्धार को लेकर प्रशासन उदासीन

नगर निगम के जनप्रतिनिधि कहते हैं कि लगातार केलो के उत्थान के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी काम नहीं दिख रहा है. स्थानीय लोगों की मानें तो प्रशासन सीधे तौर पर नदी की अनदेखी कर रहा है, इसलिए आज केलो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. नगर निगम महापौर का कहना है कि नदी के साफ-सफाई और बेहतर पानी व्यवस्था के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं, जिससे नदी में गंदे पानी को सीधे नहीं छोड़ा जाएगा. इसके अलावा कोविड-19 अस्पताल के कचरे को लेकर निगम सभापति का कहना है कि पहले गलती हो रही थी, लेकिन अब सावधानी के साथ कचरे को डम्प किया जा रहा है.

गंदा नाला बनती जा रही केलो नदी

रायगढ़ शहर के नजदीक ही केलो डैम बनाया गया है. जहां केलो नदी के पानी को रोका जाता है और शहर के लिए वॉटर सप्लाई की जाती है. कई उद्योग भी इस नदी से अपनी जल आपूर्ति करते हैं. नदी ने लोगों के लिए सब कुछ दिया, लेकिन लोग लगातार इसका दोहान कर रहे हैं और यही वजह है कि नदी आज नाला बनती जा रही है और इसका पानी अब आचमन के लायक भी नहीं रहा.

रायगढ़: शहर की जीवनदायिनी केलो नदी आज अपना अस्तित्व तलाश रही है. अपनी पहचान के संकट से जूझ रही है. आज ये कचरे के ढेर में तब्दील हो रही है. गंदगी इतना कि नदी का स्वरूप ही बदल गया है और अब ये किसी बड़े नाले के समान दिखने लगी है. कभी ये नदी रायगढ़ शहर के लिए पीने के पानी और दैनिक जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी.

महानदी की सहायक नदी

केलो नदी को महानदी की सहायक नदी के रूप में भी जाना जाता है. इसका उद्गम रायगढ़ जिले के घरघोड़ा ब्लॉक अंतर्गत लुढेंग की पहाड़ियों से हुआ है. लगभग 200 किलोमीटर की लंबाई वाली ये नदी ओडिशा के केगुदुम गांव में महानदी में मिल जाती है.

समाजसेवी और स्थानीय लोग लगातार नदी के उद्धार के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण केलो नदी शहर की नालियों से जुड़ गई है, जिससे शहर और फैक्ट्रियों का पूरा गंदा पानी सीधे नदी में ही छोड़ दिया जा रहा है.

संकट में जीवनदायिनी केलो नदी का अस्तित्व

पढ़ें: रायगढ़: प्रदूषित हो रही केलो नदी, अधर में लटका सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम

कोविड बायोवेस्ट भी केलो नदी में हो रहा डंप

शहर का बढ़ता बोझ और औद्योगिकीकरण केलो नदी के लिए अभिशाप तो था ही, अब केलो नदी के किनारे कोविड-19 महामारी के इलाज के लिए बनाए गए अस्पताल रही-सही कसर पूरी कर रहे हैं. अस्पताल से निकला बायो मेडिकल वेस्ट नदी किनारे ही फेंक दिया जा रहा है, जो काफी खतरनाक है. ये वेस्ट अगर नदी में चला जाता है, तो इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं. शहर के गंदे नाले से निकलने वाले पानी की सफाई के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन कचरे के निस्तारण के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है.

पढ़ें: फेल हुई करोड़ों की केलो परियोजना, केवल उद्योगपतियों को हो रहा लाभ

नदी के उद्धार को लेकर प्रशासन उदासीन

नगर निगम के जनप्रतिनिधि कहते हैं कि लगातार केलो के उत्थान के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी काम नहीं दिख रहा है. स्थानीय लोगों की मानें तो प्रशासन सीधे तौर पर नदी की अनदेखी कर रहा है, इसलिए आज केलो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. नगर निगम महापौर का कहना है कि नदी के साफ-सफाई और बेहतर पानी व्यवस्था के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं, जिससे नदी में गंदे पानी को सीधे नहीं छोड़ा जाएगा. इसके अलावा कोविड-19 अस्पताल के कचरे को लेकर निगम सभापति का कहना है कि पहले गलती हो रही थी, लेकिन अब सावधानी के साथ कचरे को डम्प किया जा रहा है.

गंदा नाला बनती जा रही केलो नदी

रायगढ़ शहर के नजदीक ही केलो डैम बनाया गया है. जहां केलो नदी के पानी को रोका जाता है और शहर के लिए वॉटर सप्लाई की जाती है. कई उद्योग भी इस नदी से अपनी जल आपूर्ति करते हैं. नदी ने लोगों के लिए सब कुछ दिया, लेकिन लोग लगातार इसका दोहान कर रहे हैं और यही वजह है कि नदी आज नाला बनती जा रही है और इसका पानी अब आचमन के लायक भी नहीं रहा.

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