रायगढ़: सारंगढ़ के तहसील बरमकेला से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर के नावापाली गांव में किसान मुकेश चौधरी ग्रीन राइस की खेती कर रहे है. उनके ग्रीन राइस की काफी डिमांड भी हो रही है. महानगरों के साथ ही विदेशों में भी औषधि युक्त ग्रीन राइस की मांग होने लगी है.
दुबराज, मासुरी, एचएमटी, सफरी जैसे धान उगाने वाले किसान मुकेश चौधरी अब अलग-अलग रंगों के धान उगा रहे हैं. महानगरों के साथ विदेशी बाजारों की डिमांड को ध्यान में रखते हुए यहां ग्रीन राइस का उत्पादन किया जा रहा है. अब यहां के किसान उन्नत किस्म की खेती कर इसे बड़ा व्यवसाय बनाकर मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं.
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डाइबिटीज कंट्रोल में मदद करता हैं ग्रीन राइस
जो किसान धीरे-धीरे खेती से विमुख हो रहे थे, वे अब फिर से इसकी ओर लौटने लगे हैं. लेकिन अब वे बदले जमाने के मुताबिक खेती कर रहे हैं. वे अपने खेतों में धान की सामान्य किस्मों के साथ ग्रीन राइस के साथ सेंटेड राइस जैसी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. किसान मुकेश चौधरी का कहना है कि वे ग्रीन राइस पर फोकस कर रहे हैं. इस चावल को खाने से डाइबिटीज कंट्रोल में रहता हैं. इस चावल की कीमत लगभग 300 रुपये प्रति किलो बताया जा रहा है, जिसका चावल हरे रंग का होता है.
वैज्ञानिक खेती से ज्यादा हो रहा मुनाफा
पिछले कुछ सालों में खेती के ट्रेंड में काफी बदलाव आया है. यहां के किसान पारंपरिक खेती के साथ अब वैज्ञानिक खेती पर भी फोकस कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ के विकास में किसान और धान दोनों का अहम योगदान है. प्रदेश में लगभग 80 फीसदी किसान हैं. इनमें से अधिकांश किसानों की जिंदगी धान और उससे होने वाली आय पर ही निर्भर रहती है.