रायपुर: छत्तीसगढ़ वन विभाग के पूरे सिस्टम को डिजिटलाइज करने और वन विभाग अमले के काम में कसावट लाने के लिए शासन-प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है. प्रदेश के सभी वनकर्मियों के काम-काज पर नजर रखने के लिए विभाग ने एक मोबाइल एप्लीकेशन तैयार किया है. जिसका नाम CG अरण्य एप है. लेकिन लगातार इस निगरानी एप को लेकर वनकर्मियों का विरोध जारी है. छत्तीसगढ़ वन कर्मचारी संघ के आह्वान पर प्रदेशभर के 80 हजार कर्मचारियों ने इस एप का विरोध किया है. राजधानी रायपुर से लेकर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में वन कर्मचारियों ने प्रदर्शन करते हुए इस एप्लीकेशन को डिलीट कर दिया है.
राज्य के 40 फीसदी से ज्यादा भू-भाग का हिस्सा फॉरेस्ट रेंज में आता है. कई सालों से एक ही ढर्रे पर काम कर रहे फॉरेस्ट विभाग को तकनीक से जोड़ते हुए वनकर्मियों को ऑनलाइन डिजिटल सिस्टम से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. पूरे प्रदेश में दूरस्थ और वनांचलों में जाकर काम करने वाले वनकर्मियों को इस एप के जरिए डिजिटल तरीके से एक प्लेटफॉर्म पर जोड़ा जा रहा है. इस एप के ट्रायल के तौर पर राज्यभर के वनकर्मियों को इस एप में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए निर्देशित किया गया है. हर घंटे वनकर्मियों को अपनी फोटो खींचकर एप में अपलोड करनी होती है, जिससे उनका लोकेशन और वर्किंग एरिया ट्रेस होता है. इस एप को लेकर प्रदेशभर के वनकर्मी नाराज हैं.
'वनकर्मियों के मानव अधिकार और निजता का हनन'
छत्तीसगढ़ वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सतीश मिश्रा ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि अब सरकार वन कर्मचारियों को भी वन भैसों की तरह रेडियो कॉलर लगाने जा रही है. सरकार की ओर से वन विभाग के लिए जिस तरह का एप बनाया जा रहा है, जिसमें हर 3 घंटे में कर्मचारियों को अपनी सेल्फी और लोकेशन देनी है. उनका कहना है कि यह एप कर्मचारी विरोधी है. कर्मचारी भी एक मानव है और उसे भी दैनिक कामों के लिए समय की आवश्यकता होती है. सतीश मिश्रा ने कहा कि वन कर्मचारी 24 घंटे वन और वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए काम करते हैं, साथ ही शासन की तमाम योजनाओं का भी निर्वहन करते हैं. ये एप वन कर्मचारियों के मानव अधिकार और निजता का हनन है. इस एप को यदि वापस नहीं लिया गया, तो प्रदेशभर के वन कर्मचारी न्यायपालिका की शरण में जाएंगे.
वनकर्मियों का लोकेशन ट्रेस करने से हो सकता है दुरुपयोग
वन कर्मचारी संघ के उपप्रांताध्यक्ष दीपक तिवारी कहते हैं कि प्रदेशभर के दूरस्थ, वनांचल और नक्सली इलाकों में भी वनकर्मी दिन-रात मुस्तैद होकर अपनी ड्यूटी का निर्वहन करते हैं. जंगलों में अवैध कटाई और वन्यजीवों का शिकार रोकने के लिए वनकर्मी लगातार काम करते हैं. ऐसे में वनकर्मियों के लोकेशन ट्रेस होने से इसका दुरुपयोग भी हो सकता है. दीपक तिवारी का कहना है कि आने वाले समय में वनकर्मियों पर किसी तरह की कोई बड़ी घटना होती है, तो इसका जवाबदार कौन होगा. वैसे भी इससे पहले कई बार वनकर्मियों को नक्सलियों ने और जंगल तस्कर अपना निशाना बना चुके हैं.
इस मुद्दे पर महिला वनकर्मचारियों ने भी कहा है कि इस तरह के एप से महिला वनकर्मियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. कोरोना काल में भी वनकर्मी ड्यूटी पर रहे, लेकिन कोई पूछने और देखने तक भी नहीं आया. अधिकांश कर्मचारी कम शिक्षित होने के कारण एंड्राइड मोबाइल चलाने में सक्षम नहीं है, ऐसे में इस एप के जरिए उनकी निगरानी में उनका मनोबल गिरेगा.
कोर्ट का रूख करेंगे वनकर्मी!
प्रदेशभर के 80 हजार वनकर्मियों ने इस एप को अपने मोबाइल फोन से अनइंस्टॉल कर दिया है. हर 3 घंटे पर अपनी रिपोर्ट देने के नियम को मानवाधिकार के खिलाफ बताकर वनकर्मी अब कोर्ट जाकर अपने हक की लड़ाई करने की बात कह रहे हैं. ऐसे में वन कर्मचारियों की निगरानी के लिए बनाए गए इस डिजिटल एप को इंप्लीमेंट करना वन विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
'इमरजेंसी हालात पर भी सीधे मिलेगी मदद'
- फारेस्ट विभाग के बड़े अधिकारियों का तर्क है कि इस डिजिटल टेक्नोलॉजी से हम प्रदेश के field-level के स्टाफ से लेकर अधिकारियों तक को एक साथ जोड़ रहे हैं.
- इससे हर कर्मचारी सीधे तौर पर मुख्यालय से जुड़ जाएगा.
- प्रदेश स्तर की पूरी मॉनिटरिंग एक साथ मुख्यालय से हो सकती है.
- किसी भी तरह की कोई इमरजेंसी और मुसीबत में भी वन कर्मचारी सीधे हेड मुख्यालय में संपर्क कर सकता है.
- खासकर प्रदेश के दूरस्थ इलाकों में जंगलों में अवैध कटाई, चोरी, वन्य जीवों का शिकार और वन कर्मियों पर हमले जैसे कई इमरजेंसी हालात होते हैं. इन तमाम हालातों पर सीधे वे अपनी तमाम इंफॉर्मेशन हेड ऑफिस से साझा कर सकते हैं, जिससे उनको सीधे मदद मिल सकती है.
- इस एप पर तमाम लोगों को जोड़ने के लिए मुख्यालय में एक हेड कंट्रोल रूम भी बनाया जा रहा है, ताकि किसी भी तरह की कोई परेशानी होने पर वन कर्मी सीधे कंट्रोल रूम में बात करके अपनी शंका दूर कर सकें.
- अरण्य एप को लेकर किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो इसके लिए विभाग की ओर से ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी जाएगी.
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आए दिन प्रदेश के दूरस्थ इलाकों में जंगलों में अवैध कटाई, वन्यजीवों का शिकार और वन कर्मियों पर हमले जैसे घटनाएं लगातार होती रहती है. साथ ही वन्य जीवों का शिकार और लगातार वन्यजीवों के अवशेष भी शिकारियों के साथ मिलते रहते हैं. ऐसी घटनाओं में काफी समय बाद ही पता चल पाता है. लेकिन अब डिजिटल मॉनिटरिंग से ऐसी घटनाओं को रोकने या तत्काल पकड़ने में काफी बड़ी मदद मिल सकती है.