रायगढ़: ईद उल अजहा का त्योहार गुरुवार को रायगढ़ में उल्लास के साथ मनाया गया. शहर की दो मस्जिद और दो ईदगाहों में ईद उल अजहा की नमाज अदा की गई. इससे पहले पेश इमाम ने ईद उल अजहा की फजीलत बयान की. साथ ही हजरत इब्राहिम की तरह ईमान को मजबूत करने की बात कही. कुर्बानी के बाद शहर की गलियो में साफ सफाई और पास पड़ोस के लोगों का ख्याल रखने को कहा गया. एक मोमिन के आमाल से किसी को तकलीफ न होने पाए, इस बात की भी हिदायत दी. नमाज के बाद मुल्क की खुशहाली और तरक्की के लिए दुआएं मांगी गईं.
जानिए क्यों दी जाती है कुर्बानी: हजरत इब्राहिम अपनी इकलौती संतान से बेहद प्रेम करते थे. एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा. अब चूंकि पूरे विश्व में हजरत इब्राहिम को सबसे अधिक लगाव और प्रेम अपने पुत्र से ही था. उन्होंने निश्चय किया कि वह अल्लाह के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देंगे. जब कुर्बानी का समय आया, तो उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली, ताकि बेटे के जिबा करते समय वो हिचकें नहीं. जैसे ही हजरत इब्राहिम छूरी (चाकू) चलाने लगे और उन्होंने अल्लाह का नाम लिया. इसी बीच छूरी चलाने के दौरान एक फरिश्ते ने आकर छूरी के आगे हजरत इस्माइल के बदले जन्नत से लाकर दुंबे (भेंड़ की नस्ल का जानवर) को रख दिया और इस तरह हजरत इस्माईल की जगह दुंबे की कुर्बानी हो गई. खुदा की ओर से ली जा रही आजमाइश में हजरत इब्राहिम सफल हो गए. तभी से कुर्बानी के लिए चौपाया जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.
कैसे मनाई जाती है बकरीद: बकरीद के त्योहार का इस्लाम धर्म में विशेष महत्व है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, हर साल रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद इस्लामिक कैलेंडर के जिल हिज्जा महीने के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है. बकरीद के इस पर्व पर खुदा की इबादत के बाद चौपाया जानवरों की बलि दी जाती है. जानवरों की बलि के बाद उस गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. पहला हिस्सा गरीबों को दे दिया जाता है, जबकि दूसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के बीच बांटा जाता है. गोश्त का आखिरी हिस्सा अपने लिए रखा जाता है.
सेहतमंद चौपाया जानवरों की देते हैं कुर्बानी: इस्लाम धर्म में मान्यता है कि बकरीद में कुर्बानी के लिए उन जानवरों को चुना जाता है, जो तंदुरुस्त हो अर्थात जो पूरी तरह स्वस्थ होते हैं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कुर्बानी के लिए किसी बीमार जानवर का इस्तेमाल करने से अल्लाह राजी नहीं होता.
फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है बकरीद: ये तो हम सभी जानते हैं कि बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं. वहीं मुस्लिम समाज में बकरे को पाला जाता है. अपनी हैसियत के अनुसार उसकी देख रेख की जाती हैं. जब वो बड़ा हो जाता हैं, उसे बकरीद के दिन अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं, जिसे फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता है.