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BSP रावघाट माइंस प्रभावित ग्रामीणों ने प्रबंधन पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप, लौह अयस्क ले जा रहे दो टिपर कराए खाली - रावघाट के ग्रामीणों ने दो टिपर कराए खाली

BSP Raoghat mines news: बीएसपी रावघाट माइंस प्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने लौह अयस्क भरकर जा रहे वाहनों को खाली कराया है.ग्रामीणों ने मूलभूत सुविधाओं की मांग की है.

प्रबंधन पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप
BSP Raoghat mines news
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Published : Mar 16, 2022, 4:36 PM IST

नारायणपुर: रावघाट माइंस परियोजना लौह अयस्क की आपूर्ति के मद्देनजर शुरु की गई थी. यहां अंजरेल की पहाड़ियों से खनन के बाद बीएसपी खनन का काम करती है. खोड़गांव के ग्रामीणों ने चोरी छिपे हो रहे खनन को लेकर आपत्ति जताई है. ग्रामीणों ने लौह अयस्क लेकर जा रहे 2 टिपर वाहनों से लौह अयस्क को खाली कराया है. वहीं जब मामला पुलिस के पास पहुंचा तो उन्होंने वाहनों को वापस कैंप पहुंचवा दिया, ताकि किसी भी तरह की विवाद जैसे हालात ना बनें. ग्रामीणों का कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र ने इलाके में विकास करने की बात कही थी. लेकिन अब तक कोई विकास का काम नहीं किया. जिसके विरोध में ग्रामीणों ने लौहअयस्क भरकर ले जा रहे वाहनों को खाली कराया.अब ग्रामीण जनसुनवाई की मांग पर अड़े हैं.

लौह अयस्क के लिए गोद लिये थे 22 गांव

नारायणपुर जिले के खोडगांव से रावघाट माइंस का लौह अयस्क खनन करके भिलाई इस्पात सयंत्र ले जाने से पहले साल 2007 में कांकेर और नारायणपुर जिले के 22 गांवों को गोद लेकर इलाके के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने के सपने दिखाये थे. लेकिन सपने सिर्फ सपने बनकर रह गए. स्वास्थ्य ,शिक्षा ,सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को परेशान होना पड़ रहा है.रावघाट की अंजरेल की पहाड़ियों से मिलने वाले वनोपज से ग्रामीण अपना जीवनयापन पीढ़ियों से करते आये हैं. पेड़ और पहाड़ की ये पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन इन पहाड़ियों से खनन कार्य होने से इनके देवी देवताओं के पूजा पाठ और वनोपज के संसाधन पर बड़ा असर पड़ा है. ग्रामीणों के पास रोजगार का कोई साधन नही होने के कारण जल जंगल जमीन पर ये सभी आश्रित रहते है. जिससे इनका जीवन यापन होता है.अब जब एक तरफ जंगल कट रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ठगे गए ग्रामीणों को भविष्य की चिंता सता रही है.


ये भी पढ़ें - नारायणपुर में रावघाट परियोजना का ग्रामीणों ने किया विरोध, प्रोजेक्ट को बंद कराने की मांग


कैसी हैं अंजरेल के गांवों की हालत ?

ग्रामीणों की मानें तो उनके जंगल को खनन के नाम पर छलनी किया जा रहा है.प्रबंधन ने खनन से पहले गांवों को गोद लेकर विकसित करने का वादा किया था.लेकिन खुदाई के बाद भी काम नहीं हुए.अब धीरे-धीरे करके खनन का काम जोर पकड़ रहा है.लेकिन जो ग्रामीण जंगल से रोजी रोटी कमाते थे.उनसे उनका जंगल ही छीन लिया गया.इन पहाड़ियों से हजारों परिवारों का घर चलता है.लेकिन भिलाई इस्पात संयंत्र अपने फायदे के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है.लाखों पेड़ विकास की बलि चढ़ गए.लेकिन उनकी जगह पर नए पेड़ नहीं लगाए गए. अंजरेल की पहाड़ियों से बहने वाला पानी अबूझमाड़ से लेकर नारायणपुर तक बहता है.लेकिन खनन होने लगेगा तो पानी दूषित होगा. ये बड़े बड़े नुकसान इलाके को होंगे.ग्रामीणों का कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र ने इलाके में विकास करने की बात कही थी. लेकिन अब तक कोई विकास का कार्य नहीं हुआ. हालात पहले से खराब हो गए हैं.किसी भी ग्रामीण को नौकरी नहीं मिली है जिसके विरोध में लौह अयस्क भरके जा रही वाहनों को रोककर खाली कराया गया है.

नारायणपुर: रावघाट माइंस परियोजना लौह अयस्क की आपूर्ति के मद्देनजर शुरु की गई थी. यहां अंजरेल की पहाड़ियों से खनन के बाद बीएसपी खनन का काम करती है. खोड़गांव के ग्रामीणों ने चोरी छिपे हो रहे खनन को लेकर आपत्ति जताई है. ग्रामीणों ने लौह अयस्क लेकर जा रहे 2 टिपर वाहनों से लौह अयस्क को खाली कराया है. वहीं जब मामला पुलिस के पास पहुंचा तो उन्होंने वाहनों को वापस कैंप पहुंचवा दिया, ताकि किसी भी तरह की विवाद जैसे हालात ना बनें. ग्रामीणों का कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र ने इलाके में विकास करने की बात कही थी. लेकिन अब तक कोई विकास का काम नहीं किया. जिसके विरोध में ग्रामीणों ने लौहअयस्क भरकर ले जा रहे वाहनों को खाली कराया.अब ग्रामीण जनसुनवाई की मांग पर अड़े हैं.

लौह अयस्क के लिए गोद लिये थे 22 गांव

नारायणपुर जिले के खोडगांव से रावघाट माइंस का लौह अयस्क खनन करके भिलाई इस्पात सयंत्र ले जाने से पहले साल 2007 में कांकेर और नारायणपुर जिले के 22 गांवों को गोद लेकर इलाके के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने के सपने दिखाये थे. लेकिन सपने सिर्फ सपने बनकर रह गए. स्वास्थ्य ,शिक्षा ,सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को परेशान होना पड़ रहा है.रावघाट की अंजरेल की पहाड़ियों से मिलने वाले वनोपज से ग्रामीण अपना जीवनयापन पीढ़ियों से करते आये हैं. पेड़ और पहाड़ की ये पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन इन पहाड़ियों से खनन कार्य होने से इनके देवी देवताओं के पूजा पाठ और वनोपज के संसाधन पर बड़ा असर पड़ा है. ग्रामीणों के पास रोजगार का कोई साधन नही होने के कारण जल जंगल जमीन पर ये सभी आश्रित रहते है. जिससे इनका जीवन यापन होता है.अब जब एक तरफ जंगल कट रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ठगे गए ग्रामीणों को भविष्य की चिंता सता रही है.


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कैसी हैं अंजरेल के गांवों की हालत ?

ग्रामीणों की मानें तो उनके जंगल को खनन के नाम पर छलनी किया जा रहा है.प्रबंधन ने खनन से पहले गांवों को गोद लेकर विकसित करने का वादा किया था.लेकिन खुदाई के बाद भी काम नहीं हुए.अब धीरे-धीरे करके खनन का काम जोर पकड़ रहा है.लेकिन जो ग्रामीण जंगल से रोजी रोटी कमाते थे.उनसे उनका जंगल ही छीन लिया गया.इन पहाड़ियों से हजारों परिवारों का घर चलता है.लेकिन भिलाई इस्पात संयंत्र अपने फायदे के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है.लाखों पेड़ विकास की बलि चढ़ गए.लेकिन उनकी जगह पर नए पेड़ नहीं लगाए गए. अंजरेल की पहाड़ियों से बहने वाला पानी अबूझमाड़ से लेकर नारायणपुर तक बहता है.लेकिन खनन होने लगेगा तो पानी दूषित होगा. ये बड़े बड़े नुकसान इलाके को होंगे.ग्रामीणों का कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र ने इलाके में विकास करने की बात कही थी. लेकिन अब तक कोई विकास का कार्य नहीं हुआ. हालात पहले से खराब हो गए हैं.किसी भी ग्रामीण को नौकरी नहीं मिली है जिसके विरोध में लौह अयस्क भरके जा रही वाहनों को रोककर खाली कराया गया है.

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