मुंगेली: छत्तीसगढ़ में धार्मिक मान्यताओं को काफी महत्व दिया जाता है. यहां कई देवी देवताओं की सदियों पुरानी प्रतिमाएं है. मल्हार, रतनपुर समेत कई गांव हैं जो बिलासपुर जिले में है. जहां देवी देवताओं की सदियों पुरानी प्रतिमाएं मिली है. बिलासपुर रायपुर हाईवे में मुंगेली जिले के मदकूद्वीप में भी खुदाई में ऐसी प्रतिमाएं मिली हैं जो 7वीं-8वीं शताब्दी की हैं. 8वी शताब्दी में निर्मित गणेश प्रतिमा खुदाई में मिली हैं. इस प्रतिमा की विशेषता ये है कि यह अष्टभुजी नृत्य मुद्रा में है. इसकी ख्याति इतनी है कि लोग इसे दूर दूर से देखने और पूजा करने के लिये आते हैं.
क्या है मदकूद्वीप की खासियत : मांडूक्य ऋषि की तपोभूमि में 11 स्पार्कलिंग मंदिर भी मिला है. इसलिए मदकूद्वीप तीर्थस्थल के रूप में भी जाना जाता है. मंदिर के पुजारी रामरूप दास ने बताया कि '' खुदाई के दौरान प्रतिमा में बन्दन और अन्य चीजें लगे होने से शुरुआत में प्रतिमा का चतुर्भुज ही नजर आई थी. लेकिन बाद में प्राण प्रतिष्ठा में प्रतिमा की सफाई के दौरान पता चला कि अष्टभुजी प्रतिमा है. यहां खुदाई में 11 स्पार्कलिंग भी मिला है. भारत के दक्षिण में 11 स्पार्कलिंग हैं, लेकिन उससे भी पुराना स्पार्कलिंग मदकूद्वीप में है. यहां का स्पार्कलिंग 11 सौ साल पुराना है. जिसमे देवी देवताओं की अलग-अलग मुद्रा और अलग-अलग दिशाओं में मुख है. इसलिए इनका अलग ही महत्व है.
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मनोकामनाओं की पूर्ति करता है प्रतिमा : अष्टभुजी गणेश प्रतिमा की ख्याति इतनी ज्यादा है कि लोग उनके चमत्कार और इनके दिव्य दर्शन की गाथा सुनकर परिवार सहित यहां दर्शन और पूजा करने आते हैं. भाटापारा के रहने वाले शिक्षक संतोष सिंह चौहान यहां परिवार सहित पहुंचे. उन्होंने बताया कि ''मदकूद्वीप में बने धार्मिक स्थल और यहां की प्रतिमा की मान्यता इतनी अधिक है.इसलिए पूरे परिवार सहित यहां दर्शन करने पहुंचे.''
कॉलेज में पढ़ाई कर रही छात्रा प्रिया पांडेय भी ने बताया कि '' वह मेले के विषय में सुनकर यहां आई थी. लेकिन जब उसे मंदिर के विषय में जानकारी लगी तो वे दर्शन करने पहुंची है. अष्टभुजी गणेश प्रतिमा पहली बार देखी है और यहां आने के बाद उसे एक अलग ही सुकून और अनुभव की प्राप्ति हुई.''
बिलासपुर की नीतू निर्मलकर ने बताया कि ''मदकूद्वीप के मंदिरों के दिव्य दर्शन के लिए वहां आती है. गणेश प्रतिमा के विषय में कहा कि वे यहां पहुंच कर पूजा करती है, और अपनी मनोकामना करती हैं. इस प्रतिमा के सामने मनोकामना करने से पूरी होती है, इसलिए वह यहां आई है. अपनी मनोकामना पूरी करने पूजा की है.''