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'छत्तीसगढ़ के गांधी': जिसने अपनी सारी जिंदगी आदिवासियों के नाम कर दी

शिक्षक दिवस अभी ही बीता है और अगले महीने हम राष्ट्रपिता की 150 जयंती मनाने वाले हैं. ऐसे में बेहद जरूरी है कि हम आपको छत्तीसगढ़ के गांधी से मिलवाएं, जिन्होंने अपने जिंदगी के 35 साल से छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने में लगा दिए.

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Published : Sep 6, 2019, 7:55 PM IST

Updated : Sep 7, 2019, 4:31 AM IST

प्रोफेसर पीडी खेरा

मुंगेली: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे ये गुरुजी 35 साल से छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं.

एक ऐसा शिक्षक जिसने वो किया जो हर कोई नहीं कर सकता

पढ़ें: VIDEO: कड़कनाथ के लिए काल बना तेंदुआ, अब खुली वन विभाग की नींद

लोरमी में मैकल पर्वत श्रृंखला पर मौजूद अचानकमार टाइगर रिजर्व के इस जंगल को टाइगर के अलावा अगर किसी और वजह से जाना जाता है तो वो हैं दिल्ली वाले साहब. अचानकमार टाइगर रिज़र्व के अंदर बसे वनग्राम लमनी में रहते हैं प्रोफेसर प्रभुदत्त खेड़ा, जिन्हें इन इलाके में दिल्ली वाले साहब के नाम से जाना जाता है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में दे चुके हैं सेवा
93 साल के प्रोफेसर पीडी खेरा लोरमी के अचानकमार टाइगर अंदरूनी इलाकों में मौजूद वनग्रामों में लगभग 35 साल से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. प्रोफेसर खेरा दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेवा देने के बाद रिटायर हो चुके हैं और करीब 3 दशकों से भी ज्यादा वक्त से वनग्राम में रहकर आदिवासियों के शैक्षणिक और सामाजिक उन्नति के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

बच्चों को सताती है याद
दिल्ली वाले साहब के नाम से मशहूर समाजसेवी प्रोफेसर खेरा वनग्राम छपरवा में अभ्यारण शिक्षण समिति के नाम से स्कूल चलाते हैं, जिनमें आसपास के 8-10 गांव के आदिवासी बच्चे शिक्षा लेने आते हैं. खेरा सर बीते कुछ महीनों से बीमार चल रहे हैं. जिनका इलाज बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में चल रहा है. ऐसे में उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी खूब याद सताती है.

आदिवासियों के उत्थान के लिए किया काम
बताया जाता है कि करीब 40 साल पहले प्रोफेसर खेड़ा दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को टूर पर लेकर अमरकंटक आए थे. इस दौरान रास्ते से गुजरते वक्त उन्होंने यहां रह रहे आदिवासियों के बीच भी कुछ वक्त बिताया. इस दौरान उन्होंने देखा कि किस तरह से अशिक्षा और गरीबी के की वजह से आदिवासियों को आज भी कठिनाइयों के बीच जंगल में जीना पड़ रहा है.

आदिवासियों की करने लगे सेवा
इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि, बची हुई जिंदगी वो इन्हीं आदिवासियों के उत्थान के साथ ही उन्हें शिक्षित कर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए लगाएंगे. रिटायर होते ही वो लोरमी के जंगल आ गए और यहां रहकर आदिवासियों की सेवा करने लगे.

खादी को दिया बढ़ावा
सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे बताते हैं कि प्रोफेसर खेरा गांधीवादी विचारक हैं. उनका खुद का जीवन भी महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित है. प्रोफेसर खेरा न सिर्फ खादी का वस्त्र पहनते हैं बल्कि इस उम्र में भी वह अपना भोजन खुद बनाते हैं. उन्होंने जीवन जीने के लिए कभी किसी का सहारा नहीं लिया.

मिल चुका है कार्यान्जलि पुरस्कार
दो अक्टूबर 2018 को गांधी जयंती के अवसर पर प्रोफेसर पीडी खेरा को रायपुर में कार्यान्जलि पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वहीं तत्कालीन प्रदेश सरकार ने उनके स्कूल को शासकीय स्कूल का दर्जा भी दे दिया. भले ही प्रोफ़ेसर खेड़ा बढ़ती उम्र के चलते स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण आज अस्पताल में इलाज करा रहे हैं.

तबीयत ठीक रहने पर बच्चों से आते हैं मिलने
थोड़ा भी आराम मिलने वे भागे-भागे अपने वनवासी बच्चों से मिलने यहां पहुंच जाते हैं. यह वनवासियों के साथ उनका प्यार और लगाव ही है जो उन्हें इतने कठिन दौर में भी खींचे ले आता है. ईटीवी भारत छत्तीसगढ़ के इस महान विभूति और वनवासियों के दिल्ली वाले साहब के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता है.

मुंगेली: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे ये गुरुजी 35 साल से छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं.

एक ऐसा शिक्षक जिसने वो किया जो हर कोई नहीं कर सकता

पढ़ें: VIDEO: कड़कनाथ के लिए काल बना तेंदुआ, अब खुली वन विभाग की नींद

लोरमी में मैकल पर्वत श्रृंखला पर मौजूद अचानकमार टाइगर रिजर्व के इस जंगल को टाइगर के अलावा अगर किसी और वजह से जाना जाता है तो वो हैं दिल्ली वाले साहब. अचानकमार टाइगर रिज़र्व के अंदर बसे वनग्राम लमनी में रहते हैं प्रोफेसर प्रभुदत्त खेड़ा, जिन्हें इन इलाके में दिल्ली वाले साहब के नाम से जाना जाता है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में दे चुके हैं सेवा
93 साल के प्रोफेसर पीडी खेरा लोरमी के अचानकमार टाइगर अंदरूनी इलाकों में मौजूद वनग्रामों में लगभग 35 साल से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. प्रोफेसर खेरा दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेवा देने के बाद रिटायर हो चुके हैं और करीब 3 दशकों से भी ज्यादा वक्त से वनग्राम में रहकर आदिवासियों के शैक्षणिक और सामाजिक उन्नति के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

बच्चों को सताती है याद
दिल्ली वाले साहब के नाम से मशहूर समाजसेवी प्रोफेसर खेरा वनग्राम छपरवा में अभ्यारण शिक्षण समिति के नाम से स्कूल चलाते हैं, जिनमें आसपास के 8-10 गांव के आदिवासी बच्चे शिक्षा लेने आते हैं. खेरा सर बीते कुछ महीनों से बीमार चल रहे हैं. जिनका इलाज बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में चल रहा है. ऐसे में उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी खूब याद सताती है.

आदिवासियों के उत्थान के लिए किया काम
बताया जाता है कि करीब 40 साल पहले प्रोफेसर खेड़ा दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को टूर पर लेकर अमरकंटक आए थे. इस दौरान रास्ते से गुजरते वक्त उन्होंने यहां रह रहे आदिवासियों के बीच भी कुछ वक्त बिताया. इस दौरान उन्होंने देखा कि किस तरह से अशिक्षा और गरीबी के की वजह से आदिवासियों को आज भी कठिनाइयों के बीच जंगल में जीना पड़ रहा है.

आदिवासियों की करने लगे सेवा
इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि, बची हुई जिंदगी वो इन्हीं आदिवासियों के उत्थान के साथ ही उन्हें शिक्षित कर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए लगाएंगे. रिटायर होते ही वो लोरमी के जंगल आ गए और यहां रहकर आदिवासियों की सेवा करने लगे.

खादी को दिया बढ़ावा
सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे बताते हैं कि प्रोफेसर खेरा गांधीवादी विचारक हैं. उनका खुद का जीवन भी महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित है. प्रोफेसर खेरा न सिर्फ खादी का वस्त्र पहनते हैं बल्कि इस उम्र में भी वह अपना भोजन खुद बनाते हैं. उन्होंने जीवन जीने के लिए कभी किसी का सहारा नहीं लिया.

मिल चुका है कार्यान्जलि पुरस्कार
दो अक्टूबर 2018 को गांधी जयंती के अवसर पर प्रोफेसर पीडी खेरा को रायपुर में कार्यान्जलि पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वहीं तत्कालीन प्रदेश सरकार ने उनके स्कूल को शासकीय स्कूल का दर्जा भी दे दिया. भले ही प्रोफ़ेसर खेड़ा बढ़ती उम्र के चलते स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण आज अस्पताल में इलाज करा रहे हैं.

तबीयत ठीक रहने पर बच्चों से आते हैं मिलने
थोड़ा भी आराम मिलने वे भागे-भागे अपने वनवासी बच्चों से मिलने यहां पहुंच जाते हैं. यह वनवासियों के साथ उनका प्यार और लगाव ही है जो उन्हें इतने कठिन दौर में भी खींचे ले आता है. ईटीवी भारत छत्तीसगढ़ के इस महान विभूति और वनवासियों के दिल्ली वाले साहब के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता है.

Intro:मुंगेली: आज शिक्षक दिवस है. ऐसे में हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ के एक ऐसे महान शिक्षक के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन जंगल में रहने वाले आदिवासी और वनवासियों के जीवन सुधारने में लगा दिया. कभी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे इस शिक्षक ने 35 वर्षों से छत्तीसगढ़ के जंगल में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं. कौन है ये शिक्षक और क्यों इन्हें लोग छत्तीसगढ़ के महात्मा गांधी के नाम से बुलाते हैं देखिए इस खास रिपोर्ट में.....


Body:मैकल पर्वत श्रृंखला पर बसा लोरमी का अचानकमार टाइगर रिजर्व का जंगल. ये इलाका टाइगर के अलावा किसी और वजह से जाना जाता है तो वह है दिल्ली वाले साहब के नाम से,,, जी हां मुंगेली जिले के लोरमी इलाके के अचानकमार टाइगर रिज़र्व के अंदर बसे वनग्राम लमनी में रहते हैं दिल्ली वाले साहब याने की प्रोफ़ेसर प्रभुदत्त खेरा,,, 93 वर्ष के प्रोफ़ेसर पीडी खेरा लोरमी के अचानकमार टाइगर के अंदर स्थित वनग्रामों में लगभग 35 वर्षों से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. प्रोफ़ेसर खेरा दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर हुए हैं और लगभग 3 दशकों से भी ज्यादा वक्त से वनग्राम में रहकर आदिवासियों के शैक्षणिक और सामाजिक उन्नति के लिए लगातार काम कर रहे हैं। दिल्ली वाले साहब के नाम से मशहूर समाजसेवी प्रोफ़ेसर खेरा वनग्राम छपरवा में अभ्यारण शिक्षण समिति के नाम से स्कूल का भी संचालन करते हैं। जिनमें आसपास के 8-10 गांव के आदिवासी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. खेरा सर बीते कुछ महीनों से बीमार चल रहे हैं. जिनका इलाज बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में चल रहा है. ऐसे में उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने सर को इस अवसर पर बहुत याद कर रहे हैं.
बाइट-1-आशीष गोस्वामी(छात्र),,,(सिर पर टोपी)
बाइट-2-संजना चौहान (छात्रा)
बाइट-3-योगेश जायसवाल (शिक्षक,अभ्यारण्य शिक्षण समिति छपरवा)
बताया जाता है कि लगभग 40 वर्ष पहले प्रोफ़ेसर खेरा दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को टूर पर लेकर अमरकंटक आए थे. इस दौरान रास्ते से गुजरते वक्त उन्होंने यहां रह रहे आदिवासियों के बीच भी कुछ समय बिताया. इस दौरान उन्होंने देखा कि किस तरह से अशिक्षा और गरीबी के चलते आदिवासियों को आज भी कठिनाइयों के बीच जंगल में जीना पड़ रहा है। ऐसे में उन्होंने निश्चय किया कि बाकी का जीवन वह इन्हीं आदिवासियों के उत्थान के लिए उन्हें शिक्षित कर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए लगाएंगे. इसके बाद वह रिटायर होते ही 35 वर्ष पूर्व लोरमी के जंगल आ गए.सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे बताते है कि प्रोफेसर खेरा गांधीवादी विचारक हैं. उनका खुद का जीवन भी महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित है. प्रोफेसर खेरा न सिर्फ खादी का वस्त्र पहनते हैं बल्कि इस उम्र में भी वह अपना भोजन खुद बनाते हैं. उन्होंने जीवन जीने के लिए कभी किसी का सहारा नहीं लिया.
बाइट-4-कमल दुबे (सीनियर जर्नलिस्ट),,,,(बैठे हुए)


Conclusion:प्रोफेसर पीडी खेरा को 2 अक्टूबर 2018 को गांधी जी की जयंती के अवसर पर कार्यान्जलि पुरस्कार से रायपुर में सम्मानित भी किया गया. वहीं तत्कालीन प्रदेश सरकार ने उनके स्कूल को शासकीय स्कूल का दर्जा देते हुए शासकीयकरण कर दिया. भले ही प्रोफ़ेसर खेरा बढ़ती उम्र के चलते स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण आज अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. लेकिन थोड़ा भी आराम मिलने पर वह भागे-भागे अपने वनवासी बच्चों से मिलने इस हालत में भी पहुंच जाते हैं. यह वनवासियों के साथ उनका प्यार और लगाव ही है जो उन्हें इतने कठिन दौर में भी खींचे ले आता है. ईटीवी भारत छत्तीसगढ़ के इस महान विभूति और वनवासियों के दिल्ली वाले साहब के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता है,,,,,शशांक दुबे,ईटीवी भारत मुंगेली

नोट- इस ख़बर में सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे जी की बाइट और प्रोफेसर खेरा सर के शाट्स WRAP से भेजे गए है। आवश्यक फुटेज इस्तेमाल कर लेंवे।
Last Updated : Sep 7, 2019, 4:31 AM IST
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