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अपने नौ रूपों में लंगूर के साथ विराजी हैं पहाड़ो वाली मां, ज्योत जलाने वाले भक्त की पूरी होती है हर मुराद

लोरमी नगर के बीच में स्थित विशाल पहाड़ पर विराजी मां महामाया को श्रद्धालु 'पहाड़ों वाली मां' के नाम से भी पुकारते हैं. पहाड़ों वाली मां लोरमी नगर में मां महामाया के रूप में विराजी हैं.

365 दिन जलती है अखंड ज्योत
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Published : Apr 13, 2019, 10:43 PM IST

मुंगेली: लोरमी नगर के बीचो-बीच विराजी मां महामाया जहां केवल नवरात्रि पर ही नहीं बल्कि साल भर जगमगाती है मां की अखंड ज्योति. मां के सामने जो जिस मनोकामना को लेकर ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करवाता है मां उनकी हर मुरादें पूरी करती है. नगर के बीच पहाड़ों पर विराजी मां महामाया के इस मंदिर को पहाड़ों वाली मां के नाम से भी जाना जाता है.

मां महामाया

365 दिन जलती है अखंड ज्योत
कहते हैं पहाड़ों वाली मां के दरबार में जिसने भी मन्नत मांग कर ज्योत जलाई, मां ने उसकी हर मुराद पूरी की. लोरमी नगर के बीच में स्थित विशाल पहाड़ पर विराजी मां महामाया को श्रद्धालु 'पहाड़ों वाली मां' के नाम से भी पुकारते हैं. पहाड़ों वाली मां लोरमी नगर में मां महामाया के रूप में विराजी हैं. मां के इस धाम में साल के 365 दिन अखंड ज्योत जलती है. कहते हैं मां अपने भक्तों की हर मनोकामनां पूरी करती हैं. नवरात्रि पर मां के मंदिर का हर कोना माता रानी की ज्योति से जगमगा उठता है. जानकार बताते हैं पूरे भारत में मां का यह एकमात्र मंदिर है, जहां माता रानी अपने पूरे नौ रूपों के साथ विराजमान हैं. मां के साथ इस मंदिर में भगवान हनुमान भी लंगूर के रूप में प्रकट हैं. इतिहासकार बताते हैं, मंदिर में मां की मूर्तियां करीब 300 साल से भी पहले से विराजमान है.

लोधी वंश से है मंदिर का ताल्लुक
जानकार बताते हैं कि, इस मंदिर का ताल्लुक मंडला के रामगढ़ रियासत काल के लोधी वंश से रहा है. कहते हैं, मंदिर के पास कौहा का एक विशालकाय वृक्ष था. जहां पर लोधी वंश के राजाओं का किला था. तब यह जगह चारों तरफ से जंगलों से घिरी हुई थी और कुछ गिने-चुने घरों से बनी एक छोटी सी बस्ती अपने शैशवकाल में थी. जो कि धीरे-धीरे बढ़ रही थी. कुछ समय बाद लोधी वंश के शासक अपने नागा गुरु महंत मौजा दास को लेकर लोरमी दान कर वापस रामगढ़ मंडला चले गए. जिसके बाद नागा गुरु मौजा दास ने महंत लक्ष्मी दास को ताल्लुकेदार बनाकर गद्दी पर बैठाया. इसी दौरान महंत लक्ष्मी दास के शासन काल के समय लोरमी में रहने वाले एक चंदेल कृषक को एक रात मां महामाया स्वप्न में दिखीं और बताया कि, पहाड़ों के ऊपर बांस के घने जंगलों के बीच में वो आसीन हैं. इसके बाद चंदेल कृषक ने उस जगह एक छोटा चबूतरा बना कर उसके ऊपर एक मंदिर का निर्माण कराया. कहते हैं, मंदिर में नवरात्रि पर ज्योति कलश जलाने का रिवाज भी उसी दौर से चला आ रहा है. चंदेल कृषक अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले ही लोगों से इच्छा जाहिर कर अपनी पूरी संपत्ति मंदिर को दान करते हुए अपना समाधि स्थल मंदिर के नजदीक बनाए जाने की बात कही थी. जिसपर चंदेल भक्तों ने उनकी मंशा के अनुरूप उनकी मृत्यु के बाद चंदेल कृषक का समाधि स्थल मंदिर के दक्षिण दिशा में बनवाया गया. जो आज भी वहीं स्थित है.

देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु
मंदिर में स्थापित माता की स्वयंभू प्रतिमा चमत्कारी मानी जाती है. यही वजह है कि, माता के दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेश से भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. नवरात्र का 9 दिन यहां पूरा भक्तिमय माहौल रहता है. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को माता रानी के अलावा भगवान हनुमान, गणेश, शंकर और भैरव बाबा के भी दर्शन होते हैं.

मुंगेली: लोरमी नगर के बीचो-बीच विराजी मां महामाया जहां केवल नवरात्रि पर ही नहीं बल्कि साल भर जगमगाती है मां की अखंड ज्योति. मां के सामने जो जिस मनोकामना को लेकर ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करवाता है मां उनकी हर मुरादें पूरी करती है. नगर के बीच पहाड़ों पर विराजी मां महामाया के इस मंदिर को पहाड़ों वाली मां के नाम से भी जाना जाता है.

मां महामाया

365 दिन जलती है अखंड ज्योत
कहते हैं पहाड़ों वाली मां के दरबार में जिसने भी मन्नत मांग कर ज्योत जलाई, मां ने उसकी हर मुराद पूरी की. लोरमी नगर के बीच में स्थित विशाल पहाड़ पर विराजी मां महामाया को श्रद्धालु 'पहाड़ों वाली मां' के नाम से भी पुकारते हैं. पहाड़ों वाली मां लोरमी नगर में मां महामाया के रूप में विराजी हैं. मां के इस धाम में साल के 365 दिन अखंड ज्योत जलती है. कहते हैं मां अपने भक्तों की हर मनोकामनां पूरी करती हैं. नवरात्रि पर मां के मंदिर का हर कोना माता रानी की ज्योति से जगमगा उठता है. जानकार बताते हैं पूरे भारत में मां का यह एकमात्र मंदिर है, जहां माता रानी अपने पूरे नौ रूपों के साथ विराजमान हैं. मां के साथ इस मंदिर में भगवान हनुमान भी लंगूर के रूप में प्रकट हैं. इतिहासकार बताते हैं, मंदिर में मां की मूर्तियां करीब 300 साल से भी पहले से विराजमान है.

लोधी वंश से है मंदिर का ताल्लुक
जानकार बताते हैं कि, इस मंदिर का ताल्लुक मंडला के रामगढ़ रियासत काल के लोधी वंश से रहा है. कहते हैं, मंदिर के पास कौहा का एक विशालकाय वृक्ष था. जहां पर लोधी वंश के राजाओं का किला था. तब यह जगह चारों तरफ से जंगलों से घिरी हुई थी और कुछ गिने-चुने घरों से बनी एक छोटी सी बस्ती अपने शैशवकाल में थी. जो कि धीरे-धीरे बढ़ रही थी. कुछ समय बाद लोधी वंश के शासक अपने नागा गुरु महंत मौजा दास को लेकर लोरमी दान कर वापस रामगढ़ मंडला चले गए. जिसके बाद नागा गुरु मौजा दास ने महंत लक्ष्मी दास को ताल्लुकेदार बनाकर गद्दी पर बैठाया. इसी दौरान महंत लक्ष्मी दास के शासन काल के समय लोरमी में रहने वाले एक चंदेल कृषक को एक रात मां महामाया स्वप्न में दिखीं और बताया कि, पहाड़ों के ऊपर बांस के घने जंगलों के बीच में वो आसीन हैं. इसके बाद चंदेल कृषक ने उस जगह एक छोटा चबूतरा बना कर उसके ऊपर एक मंदिर का निर्माण कराया. कहते हैं, मंदिर में नवरात्रि पर ज्योति कलश जलाने का रिवाज भी उसी दौर से चला आ रहा है. चंदेल कृषक अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले ही लोगों से इच्छा जाहिर कर अपनी पूरी संपत्ति मंदिर को दान करते हुए अपना समाधि स्थल मंदिर के नजदीक बनाए जाने की बात कही थी. जिसपर चंदेल भक्तों ने उनकी मंशा के अनुरूप उनकी मृत्यु के बाद चंदेल कृषक का समाधि स्थल मंदिर के दक्षिण दिशा में बनवाया गया. जो आज भी वहीं स्थित है.

देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु
मंदिर में स्थापित माता की स्वयंभू प्रतिमा चमत्कारी मानी जाती है. यही वजह है कि, माता के दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेश से भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. नवरात्र का 9 दिन यहां पूरा भक्तिमय माहौल रहता है. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को माता रानी के अलावा भगवान हनुमान, गणेश, शंकर और भैरव बाबा के भी दर्शन होते हैं.

Intro:special: नौ रूपों और लंगूर के साथ विराजी है पहाड़ो वाली माँ, भक्तों की हर मुरादें होती हैं पूरी


Body:मुंगेली: लोरमी नगर के बीचों-बीच विराजी है मां महामाया जहां पर केवल नवरात्र में ही नहीं बल्कि साल भर जगमगाती है मां की अखंड ज्योतियां,, मां के सामने जो जिस मनोकामना को लेकर ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करवाता है मां उनकी हर मुरादें पूरी करती है. नगर के बीच पहाड़ों पर विराजी मां महामाया के इस मंदिर को पहाड़ों वाली मां के नाम से भी जाना जाता है. कैसा है लोरमी की पहाड़ों वाली मां का दरबार और कैसे लाखों भक्तों की आस्था पर अपनी कृपा बरसा रही है मां देखिए इस खास रिपोर्ट में.
पहाड़ों वाली मां का दरबार,,,, दरबार में जगमगाती अखंड ज्योतियां,,,, जिसने जिस मन्नत को लेकर इस मां के दरबार में ज्योति जलवाई. उसकी मनोकामना जरूर पूरी करती है लोरमी नगर में विराजित मां महामाया. ये धाम इसलिए भी विशिष्ट माना जाता है क्योंकि यहां साल के पूरे 365 दिन जलती है माता की अखंड ज्योतियां. नवरात्र में मंदिर का हर कोना माता रानी की ज्योतियों से जगमगा उठता है. यह पूरे भारतवर्ष में माता का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां माता रानी अपने पूरे नौ रूपों के साथ में जमीन के अंदर से प्रकट हुई है. माता के नौ रूपों के साथ इस मंदिर में भगवान हनुमान भी लंगूर के रूप में प्रकट हुए हैं. इतिहास के जानकारों के मुताबिक यहां स्थित मूर्तियां लगभग 300 वर्ष पुरानी है यही वजह है कि लाखों लोग हर वर्ष यहां माता रानी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
बाइट-1- अमित त्रिपाठी(इतिहास के जानकार)...(नीले रंग का कुर्ता पहने हुए)

लोरमी नगर के बीच में स्थित विशाल पहाड़ पर विराजी मां महामाया को श्रद्धालु पहाड़ों वाली मां के नाम से भी जानते हैं. लाखों लोगों की आस्था के केंद्र इस मंदिर के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है. जानकारी के मुताबिक मंडला के रामगढ़ रियासत काल द्वारा शासित लोरमी ताल्लुक में ताल्लुकेदार लोधी वंश के राजा थे. मंदिर के नजदीक ही एक कौहा का विशालकाय वृक्ष था. जहां पर लोधी वंश के राजाओं का किला था. तब यह जगह चारों तरफ से जंगलों से घिरी हुई थी. और कुछ गिने-चुने घरों से बनी एक छोटी सी बस्ती अपने शैशवकाल में थी, जो कि धीरे-धीरे बढ़ रही थी. कुछ समय पश्चात लोधी वंश के शासक अपने नागा गुरु महंत मौजा दास को लेकर ताल्लुक दान कर वापिस रामगढ़ मंडला चले गए. जिसके बाद नागा गुरु मौजा दास ने महंत लक्ष्मी दास को ताल्लुकेदार बनाकर गद्दी पर बैठाया. इसी दौरान महंत लक्ष्मी दास के शासन काल के समय लोरमी में रहने वाले एक चंदेल कृषक को एक रात मां महामाया ने स्वप्न में दर्शन दिया और बताया कि पहाड़ों के ऊपर बांस के घने जंगलों के बीच में वो आसीन हैं. जिसके बाद चंदेल कृषक ने उस जगह पर छोटा चबूतरा बना कर उसके ऊपर एक कबेलुनुमा मकान बनाया,,, और नवरात्रि पर वहां ज्योति कलश प्रचलित करने लगा. चंदेल कृषक नेअपनी मृत्यु के कुछ समय पहले ही लोगों से इच्छा जाहिर कर अपनी पूरी संपत्ति जमीन जायदाद मंदिर में दान करते हुए अपना समाधि स्थल मंदिर के नजदीकी बनाए जाने की बात कही. चंदेल भक्तों के मंशा के अनुरूप ही उसकी मृत्यु उपरांत उसका समाधि स्थल मंदिर के दक्षिण दिशा में बनवाया गया जो कि आज भी दिखाई देता है. वहीं क्या आम और क्या खास सब माता के दरबार में दौड़े चले आते हैं।
बाइट-2-अखिलेश त्रिपाठी (सदस्य,माँ महामाया ट्रस्ट समिति लोरमी),,,,(गले मे नीला गमछा)
बाइट-3-शम्भू तिवारी (पुजारी,महामाया मंदिर),,,(गले मे पीला गमछा)

मंदिर में स्थापित माता की स्वयंभू प्रतिमा चमत्कारी मानी जाती है. यही वजह है कि माता के दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेश से भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. नवरात्र का 9 दिन यहां पूरा भक्तिमय माहौल रहता है और भक्त माता रानी के भक्ति में पूरी तरह डूबे नजर आते हैं. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को माता रानी के अलावा भगवान हनुमान, गणेश,शंकर भगवान और भैरव बाबा के भी दर्शन होते हैं,,शशांक दुबे,ईटीवी भारत मुंगेली



Conclusion:रिपोर्ट-शशांक दुबे ईटीवी भारत मुंगेली
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