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मुंगेली: इस राखी के बिना अधूरा है रक्षाबंधन का त्योहार - कोसा के धागे पर कपास के रुई को पिरोकर बनता है

पटवा समाज के द्वारा बनाये गए राखी के बिना यहां रक्षा बंधन का त्योहार अधूरा माना जाता है. इस राखी को सबसे पहले भगवान को चढ़ाया जाता है. इस राखी को कोसा के धागे पर कपास के रुई को पिरोकर बनाया जाता है.

भगवान को अर्पित किया जाता है देव राखी
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Published : Aug 14, 2019, 10:06 PM IST

Updated : Aug 14, 2019, 11:18 PM IST

मुंगेली: राखी का त्योहार हो और रंग-बिरंगी राखियों के बारे में बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. भले ही आज के दौर में महंगी राखियों ने बाजार पर अपना कब्जा जमा रखा हो, लेकिन एक ऐसी पारंपरिक राखी भी है. जो आज भी अपनी अहमियत बनाए हुए है.

पटवा राखी के नाम से मशहूर ये राखी

राखी का त्योहार रक्षाबंधन पर बाजार पूरी तरह से गुलजार नजर आ रहा है. दुकानों में एक से बढ़कर एक राखियां देखने को मिल रही हैं, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी राखी भी है, जो सैकड़ों वर्षों की परंपरा को अपने रंग समेटे हुए है. पटवा समाज के लोगों द्वारा बनाई जाने वाली यह राखी पटवा राखी के नाम से मशहूर है. महंगी राखियों के बीच भी इसके खरीदारों की कोई कमी नहीं है. इस राखी को कोसा के धागे पर कपास के रुई को पिरोकर बनाया जाता है. इसकी लोकप्रियता और मांग को देखते हुए पटवा समाज के लोग महीनों पहले से इस राखी की तैयारियों में जुट जाते हैं.

पढ़े: नदिया किनारे-किसके सहारे : ETV भारत की मुहिम से जुड़े NSS के छात्र, किया पौधरोपण

पटवा राखी को देव राखी भी कहते हैं
सबसे प्राचीन और शुद्ध राखियों में शुमार इस राखी को आज भी सबसे पहले भगवान को अर्पित किया जाता है. वहीं कारोबारियों के बीच भी इसकी खासी अहमियत है. जबकि पटवा राखी को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. कहीं पर इसे पटवा राखी तो कहीं ताकपाठ और कहीं पर इसे देव राखी भी कहा जाता है. आधुनिक दौर में जहां महंगी और फैंसी राखियों ने बाजार में अपना कब्जा जमा रखा है. वहां पटवा राखी की मांग एवं उपयोगिता वर्षों से बनी हुई है.

मुंगेली: राखी का त्योहार हो और रंग-बिरंगी राखियों के बारे में बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. भले ही आज के दौर में महंगी राखियों ने बाजार पर अपना कब्जा जमा रखा हो, लेकिन एक ऐसी पारंपरिक राखी भी है. जो आज भी अपनी अहमियत बनाए हुए है.

पटवा राखी के नाम से मशहूर ये राखी

राखी का त्योहार रक्षाबंधन पर बाजार पूरी तरह से गुलजार नजर आ रहा है. दुकानों में एक से बढ़कर एक राखियां देखने को मिल रही हैं, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी राखी भी है, जो सैकड़ों वर्षों की परंपरा को अपने रंग समेटे हुए है. पटवा समाज के लोगों द्वारा बनाई जाने वाली यह राखी पटवा राखी के नाम से मशहूर है. महंगी राखियों के बीच भी इसके खरीदारों की कोई कमी नहीं है. इस राखी को कोसा के धागे पर कपास के रुई को पिरोकर बनाया जाता है. इसकी लोकप्रियता और मांग को देखते हुए पटवा समाज के लोग महीनों पहले से इस राखी की तैयारियों में जुट जाते हैं.

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पटवा राखी को देव राखी भी कहते हैं
सबसे प्राचीन और शुद्ध राखियों में शुमार इस राखी को आज भी सबसे पहले भगवान को अर्पित किया जाता है. वहीं कारोबारियों के बीच भी इसकी खासी अहमियत है. जबकि पटवा राखी को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. कहीं पर इसे पटवा राखी तो कहीं ताकपाठ और कहीं पर इसे देव राखी भी कहा जाता है. आधुनिक दौर में जहां महंगी और फैंसी राखियों ने बाजार में अपना कब्जा जमा रखा है. वहां पटवा राखी की मांग एवं उपयोगिता वर्षों से बनी हुई है.

Intro:मुंगेली- राखी का त्यौहार हो और तरह-तरह की राखियों के बारे में बातें ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता. भले ही आज के दौर में महंगी राखियों ने बाजार में अपना कब्जा जमा रखा हो लेकिन ऐसे में एक ऐसी पारंपरिक राखी भी है. जो आज भी अपनी अहमियत बनाए हुए हैं.


Body:राखी के त्यौहार में बाजार पूरी तरह से गुलज़ार नजर आ रहा है. दुकानों में एक से बढ़कर एक राखियां देखने को मिल रही है. लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी राखी भी है जो सैकड़ों सालों से परंपरा के रंग समेटे अपनी अहमियत बनाए हुए हैं. पटवा समाज के द्वारा बनाई जाने वाली यह राखी पटवा राखी के नाम से मशहूर है और महंगी राखियों के बीच के खरीददारों और कद्र दानों की कोई कमी नहीं है. इस राखी को कोसा के धागे पर कपास के रुई को पिरोकर बनाया जाता है. इसकी लोकप्रियता और मांग को देखते हुए पटवा समाज के लोग महीनों पहले से ही इस राखी की तैयारियों में जुट जाते हैं।

सबसे शुध्द राखी के अनेक नाम
सबसे प्राचीन और शुद्ध राखियों में शुमार इस राखी को आज भी सबसे पहले भगवान को अर्पित किया जाता है. वहीं कारोबारियों के बीच भी इसकी खासी अहमियत है जबकि पटवा राखी को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. कहीं पर इसे पटवा राखी तो कहीं ताकपाठ एवं कहीं पर इसे देव राखी भी कहा जाता है।


Conclusion:कद्रदानों की नही कमी
आधुनिक दौर में जहां महंगी और फैंसी राखियों ने बाजार में अपना कब्जा जमा रखा है. वहां पटवा राखी की मांग एवं उपयोगिता बरसों बरस से बनी हुई है और आज भी इसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं है।
बाइट-1-शिव मौर्य (राखी दुकान संचालक),,(पीछे राखी)
बाइट-2-भूपेंद्र वैष्णव (जानकर),,,(सोफे पर बैठे हुए)

रिपोर्ट- शशांक दुबे,ईटीवी भारत मुंगेली
Last Updated : Aug 14, 2019, 11:18 PM IST
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