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हर हर महादेव: यहां शिवलिंग से आती है महक, गंधेश्वर के नाम से पूजे जाते हैं शम्भू

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Published : Feb 18, 2020, 5:03 AM IST

महासमुंद में भगवान शंकर को गंधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. महानदी के पावन तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर के रूप में की जाती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था.

story of gandheshwar mahadev temple from mahasamund
गंधेश्वर महादेव के नाम से पूजे जाते हैं शम्भू

महासमुंद: महाशिवरात्रि पर ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ के शिव मंदिरों के दर्शन करा रहा है. प्रदेश में शिव की नगरी माने जाने वाल सिरपुर को छत्तीसगढ़ का वैद्यनाथ धान भी माना जाता है. सोमवार हो या सावन का महीना यहां भक्तों की भारी भीड़ भोलनाथ के दर्शन के लिए उमड़ती है. महाशिवरात्रि पर भी भक्तों का मेला यहां लगता है.

यहां शिवलिंग से आती है महक

इस भगवान शंकर को गंधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. महानदी के पावन तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर के रूप में की जाती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. इसके बारे में एक देव कथा है कि वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे.

ऐसी है कहानी

कथा के मुताबिक एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं. इस पर बाणासुर ने कहा कि भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं. उसने भोलनाथ से पूछा कि जब वो प्रगट होंगे तो उन्हें पहचाना कैसे जाए. इस पर शम्भू ने कहा कि, जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो. तब से सिरपुर में शिव जी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है.

मान्यता है कि अभी भी गर्भगृह में शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गंध आती है, इसलिए ही यहां भगवान शिव को गंधेश्वर के रूप में पूजते हैं. गन्धेश्वर मंदिर काफी पुराना मंदिर है. यहां बड़ी संख्या में भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और झोली भरकर जाते हैं.

महासमुंद: महाशिवरात्रि पर ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ के शिव मंदिरों के दर्शन करा रहा है. प्रदेश में शिव की नगरी माने जाने वाल सिरपुर को छत्तीसगढ़ का वैद्यनाथ धान भी माना जाता है. सोमवार हो या सावन का महीना यहां भक्तों की भारी भीड़ भोलनाथ के दर्शन के लिए उमड़ती है. महाशिवरात्रि पर भी भक्तों का मेला यहां लगता है.

यहां शिवलिंग से आती है महक

इस भगवान शंकर को गंधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. महानदी के पावन तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर के रूप में की जाती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. इसके बारे में एक देव कथा है कि वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे.

ऐसी है कहानी

कथा के मुताबिक एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं. इस पर बाणासुर ने कहा कि भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं. उसने भोलनाथ से पूछा कि जब वो प्रगट होंगे तो उन्हें पहचाना कैसे जाए. इस पर शम्भू ने कहा कि, जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो. तब से सिरपुर में शिव जी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है.

मान्यता है कि अभी भी गर्भगृह में शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गंध आती है, इसलिए ही यहां भगवान शिव को गंधेश्वर के रूप में पूजते हैं. गन्धेश्वर मंदिर काफी पुराना मंदिर है. यहां बड़ी संख्या में भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और झोली भरकर जाते हैं.

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