महासमुंद: कोरोना काल में शासन-प्रशासन का ऑनलाइन बच्चों की पढ़ाई कराने का सपना महासमुंद में फ्लॉप होता नजर आ रहा है. जिले के कई निजी स्कूल जिन्हें छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त है, पाठ्यपुस्तक निगम की तरफ से अब तक किताबें नहीं मिली हैं. सवाल ये है कि बच्चे आखिर बिना पुस्तक के कैसे पढ़ें. ETV भारत ने इसे लेकर इन निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों से बात की और पाया कि छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हो रही है.
परेशानी ये भी रही कि किसी भी बच्चे के पास अगले क्लास की किताबें ही नहीं हैं, जिसकी मदद से वे पढ़ सकें. लेकिन 2020 के आधे शिक्षण सत्र के निकल जाने के बाद भी उन्हें किताबें नहीं मिली हैं. बच्चों के माता-पिता उनके भविष्य को लेकर चिंतित हैं, तो इधर शिक्षा विभाग के आला अधिकारी अपना ही राग अलाप रहे हैं.
7 महीने बाद भी बच्चों को नहीं मिली पुस्तकें
प्रदेश में कोरोना संकट काल का करीब 7 महीना बीत चुका है. इस दौरान बच्चों की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित रही. राज्य सरकार ने बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी न हो, इसके लिए पढ़ई तुंहर दुआर योजना की शुरुआत की. जिसके तहत बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है. लेकिन कई बच्चे ऐसे हैं, जो इतने महीनों तक भी पढ़ाई से वंचित रहे. किसी के पास फोन है, तो नेट कनेक्टिविटी नहीं और नेटवर्क है तो स्मार्ट फोन नहीं.
'ऑनलाइन क्लास से बच्चे परेशान'
महासमुंद में करीब 255 निजी स्कूल हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम किताबें देता है. इन 255 स्कूलों में करीब 50 हजार बच्चे पढ़ाई करते हैं. अब तक की बात करें तो सिर्फ 20 से 22 हजार बच्चों को ही किताबें मिल पाई हैं. बचे हुए हजारों बच्चों को इतने महीने बीत जाने के बाद भी पुस्तक नहीं मिली है. इन तमाम स्कूलों में पढ़ने वाले कुछ बच्चों ने बताया कि ज्यादातर उन्हें ऑनलाइन क्लास में उन्हें कुछ समझ नहीं आता. पुस्तक नहीं होने से उन्हें नए क्लास का सिलेबस भी नहीं समझ आ रहा है. ऐसी स्थिति में बच्चे कहते हैं कि उन्हें फेल होने का डर है.
बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं माता-पिता
बच्चों के माता-पिता का कहना है कि किसी के पास स्मार्ट फोन नहीं है और अगर है तो नेटवर्क की वजह से बच्चे ऑनलाइन क्लास अटेंड नहीं कर पाते. बच्चे जब क्लास अटेंड करते हैं, तो भी उन्हें बिना किताब के कुछ समझ नहीं आता. 7 महीने बीत जाने के बाद भी नई किताबें नहीं दी गई हैं, जिसकी वजह से बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. अभिभावकों ने बताया कि स्कूल में फीस देने का दबाव भी बनाया जा रहा है. फीस नहीं देने पर कई बच्चों के ऑनलाइन क्लास भी बंद कर दिए गए हैं.
अक्टूबर तक पुस्तक वितरण करने का दावा
इस पूरे मामले में शिक्षा विभाग के सहायक संचालक का कहना है कि पढ़ाई तो हो रही है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से स्कूलों में पुस्तक वितरण करने में देरी आई. बचे हुए स्कूलों में पुस्तक वितरण का काम भी अक्टूबर महीने तक पूरा कर लिया जाएगा.
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शासन ने इस बार निजी स्कूलों को पुस्तक वितरण प्रणाली में जोड़ा है. पहले शिक्षा विभाग ही पुस्तक वितरण करता था. लेकिन इस बार निजी स्कूलों को जिला शिक्षा अधिकारी से वचन पत्र सत्यापित कराकर रायपुर डिपो से पुस्तकें लाकर वितरण करना है.
बहरहाल इस पूरी प्रक्रिया के बीच सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की पढ़ाई का हो रहा है. किताबें नहीं होने से पढ़ने में कठिनाई आ रही है. बच्चों के शिक्षा की वर्तमान स्थिति ने शिक्षा विभाग के साथ ही निजी स्कूल प्रबंधनों की पोल खोलकर रख दी है. अब देखना होगा की बच्चों को कब तक पुस्तकें मिलेंगी और फिर से वे वापस अपनी पढ़ाई बेहतर तरीके से शुरू कर पाएंगे.