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महासमुंद: हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोला पर्व, बैलों को सजाकर लोगों ने की पूजा - mahasamund news

महासमुंद में भी कोरोना वायरस के बीच लोगों ने अपने घरों में पोला त्योहार मनाया और बैलों की पूजा की.

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पोरा तिहार
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Published : Aug 19, 2020, 10:20 AM IST

महासमुंद: छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति और त्योहारों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है पोला. कोरोना महामारी के बीच छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पोला महासमुंद जिले में मनाया गया. लोगों ने बाजार से मिट्टी के बैल, बर्तन खरीदकर घर में बने पकवानों को उसमें रखकर पूजा-अर्चना की, ताकि उनके घर में अन्न की कमी न हो. वहीं बच्चे मिट्टी के बैलों के साथ खूब खेलते नजर आए.

हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोरा तिहार

पोला का त्योहार मूलतः खेती-किसानी से जुड़ा हुआ त्योहार है. खेती का काम खत्म हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती हैं और धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है.

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हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोरा तिहार
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पूजा करती महिलाएं

पढ़ें- कसडोल में मनाया गया पोला त्योहार, कुंभकारों के चहरों पर दिखी मुस्कान


मिट्टी से बने बैलों और बर्तनों की करते हैं पूजा

आज के दिन लोग खेतों में नहीं जाते हैं. महिलाएं आज के दिन विशेष पकवान बनाती हैं- जैसे ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला. इन पकवानों को मिट्टी के बर्तनों, खिलौने में पूजा करते समय भरते हैं, ताकि घर में अन्न की कमी न हो. पुरुष अपने बैलों को सजाते हैं और पूजा करते हैं. बच्चे मिट्टी के बैलों को पूजते हैं और घर-घर लेकर जाते हैं, जहां उन्हें दक्षिणा मिलती है. बैलगाड़ी वाले अपने बैलों को सजाते हैं और दौड़ प्रतियोगिता कराते हैं.

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किसानों ने की गाय बैलों की पूजा
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बच्चों ने मिट्टी से बने बैलों की पूजा की

पोला पर्व का पौराणिक महत्व

पोला पर्व का पौराणिक महत्व भी है. बताया जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहते थे. कंस ने कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराया, लेकिन सभी नाकाम रहे. इन्हीं में एक राक्षस था पोलासुर, जिसका भगवान कृष्ण ने वध कर दिया था और इसी के बाद से भादो अमावस्या को पोला के नाम से जाना जाने लगा.

महासमुंद: छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति और त्योहारों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है पोला. कोरोना महामारी के बीच छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पोला महासमुंद जिले में मनाया गया. लोगों ने बाजार से मिट्टी के बैल, बर्तन खरीदकर घर में बने पकवानों को उसमें रखकर पूजा-अर्चना की, ताकि उनके घर में अन्न की कमी न हो. वहीं बच्चे मिट्टी के बैलों के साथ खूब खेलते नजर आए.

हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोरा तिहार

पोला का त्योहार मूलतः खेती-किसानी से जुड़ा हुआ त्योहार है. खेती का काम खत्म हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती हैं और धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है.

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हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोरा तिहार
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पूजा करती महिलाएं

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मिट्टी से बने बैलों और बर्तनों की करते हैं पूजा

आज के दिन लोग खेतों में नहीं जाते हैं. महिलाएं आज के दिन विशेष पकवान बनाती हैं- जैसे ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला. इन पकवानों को मिट्टी के बर्तनों, खिलौने में पूजा करते समय भरते हैं, ताकि घर में अन्न की कमी न हो. पुरुष अपने बैलों को सजाते हैं और पूजा करते हैं. बच्चे मिट्टी के बैलों को पूजते हैं और घर-घर लेकर जाते हैं, जहां उन्हें दक्षिणा मिलती है. बैलगाड़ी वाले अपने बैलों को सजाते हैं और दौड़ प्रतियोगिता कराते हैं.

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किसानों ने की गाय बैलों की पूजा
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बच्चों ने मिट्टी से बने बैलों की पूजा की

पोला पर्व का पौराणिक महत्व

पोला पर्व का पौराणिक महत्व भी है. बताया जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहते थे. कंस ने कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराया, लेकिन सभी नाकाम रहे. इन्हीं में एक राक्षस था पोलासुर, जिसका भगवान कृष्ण ने वध कर दिया था और इसी के बाद से भादो अमावस्या को पोला के नाम से जाना जाने लगा.

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