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नवरात्र विशेषः यहां निसंतानों को मिलती है संतान, जानिए खल्लारी मंदिर का इतिहास

छत्तीसगढ़ में ऐसे कई ऐतिहासिक और प्राचीन स्थान है जिनका वर्णन रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है. ये स्थान प्राचीन काल में खलवाटिका के नाम से जाना जाता था, खल वाटिका है.

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Published : Oct 4, 2019, 12:06 AM IST

Updated : Oct 4, 2019, 7:47 AM IST

खल्लारी माता

महासमुंद: नवरात्र में हम आपको छत्तीसगढ़ के देवी मंदिरों के रूबरू करवा रहे हैं. इन मंदिरों का अपना इतिहास और उससे जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं हैं. इसी कड़ी आज हम आपको महासंमुद लिए चलते हैं. महासमुंद से 24 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों पर मां खल्लारी का दरबार है.

खल्लारी माता का इतिहास

यहां पर श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए दूर-दूर से माता के दर्शन के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है जो दंपति संतान सुख से वंचित है वह संतान प्राप्ति मनोकामना के साथ यहां आते हैं. वे यहां दर्शन कर दीप भी प्रज्जवलित करते हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से भी यहां लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. करीब 30 से 35 हजार लोग यहां दूसरे राज्यों से आते हैं.

चौथी शताब्दी में हुआ था आगमन
छत्तीसगढ़ में ऐसे कई ऐतिहासिक और प्राचीन स्थान है जिनका वर्णन रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है. ये स्थान प्राचीन काल में खलवाटिका के नाम से जाना जाता था, खल वाटिका है. राजा ब्रम्हदेव की राजधानी थी. बताया जाता है कि राजा ब्रह्मदेव के शासनकाल में चौथी शताब्दी में 1415 में देवपाल नाम के मोची ने माता का मंदिर बनवाया था.

वहीं एक अन्य मान्यता के मुताबिक मंदिर के पुजारी अरुण तिवारी का कहना है माता का आगमन यहां पर चौथी शताब्दी में माना जाता है.

माता के स्थापना की कहानी
उनका कहना है कि प्राचीन काल में माता महासमुंद के डेंचा गांव से निवास करती थी और वहां से खल्लारी में लगने वाले बाजार में कन्या का रूप धारण करके आती थी. माता का रूप लावणी देखकर एक बंजारा मोहित हो गया और वह माता को प्राप्त करने के लिए उनका पीछा करने लगा. बंजारे से बचने के लिए माता पहाड़ी पर आ गई, लेकिन बंजारा वहां भी पहुंच गया. तब माता ने बंजारे को श्राप देकर पाषाण में परिवर्तित कर दिया. खुद स्वयं वहां विराजमान हो गई. इसके बाद माता खल्लारी ने तारकर्ली के राजा ब्रह्मदेव को सपने में वहीं पर मंदिर बनाने को कहा.

मनोकामना होती है पूरी
नवरात्र के नौ दिनों में इस मंदिर में श्रद्धा और भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ता है. अपनी मनोकामना लिए भक्य यहां लंबी कतारें लगा कर मां का दर्शन करते हैं.

महासमुंद: नवरात्र में हम आपको छत्तीसगढ़ के देवी मंदिरों के रूबरू करवा रहे हैं. इन मंदिरों का अपना इतिहास और उससे जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं हैं. इसी कड़ी आज हम आपको महासंमुद लिए चलते हैं. महासमुंद से 24 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों पर मां खल्लारी का दरबार है.

खल्लारी माता का इतिहास

यहां पर श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए दूर-दूर से माता के दर्शन के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है जो दंपति संतान सुख से वंचित है वह संतान प्राप्ति मनोकामना के साथ यहां आते हैं. वे यहां दर्शन कर दीप भी प्रज्जवलित करते हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से भी यहां लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. करीब 30 से 35 हजार लोग यहां दूसरे राज्यों से आते हैं.

चौथी शताब्दी में हुआ था आगमन
छत्तीसगढ़ में ऐसे कई ऐतिहासिक और प्राचीन स्थान है जिनका वर्णन रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है. ये स्थान प्राचीन काल में खलवाटिका के नाम से जाना जाता था, खल वाटिका है. राजा ब्रम्हदेव की राजधानी थी. बताया जाता है कि राजा ब्रह्मदेव के शासनकाल में चौथी शताब्दी में 1415 में देवपाल नाम के मोची ने माता का मंदिर बनवाया था.

वहीं एक अन्य मान्यता के मुताबिक मंदिर के पुजारी अरुण तिवारी का कहना है माता का आगमन यहां पर चौथी शताब्दी में माना जाता है.

माता के स्थापना की कहानी
उनका कहना है कि प्राचीन काल में माता महासमुंद के डेंचा गांव से निवास करती थी और वहां से खल्लारी में लगने वाले बाजार में कन्या का रूप धारण करके आती थी. माता का रूप लावणी देखकर एक बंजारा मोहित हो गया और वह माता को प्राप्त करने के लिए उनका पीछा करने लगा. बंजारे से बचने के लिए माता पहाड़ी पर आ गई, लेकिन बंजारा वहां भी पहुंच गया. तब माता ने बंजारे को श्राप देकर पाषाण में परिवर्तित कर दिया. खुद स्वयं वहां विराजमान हो गई. इसके बाद माता खल्लारी ने तारकर्ली के राजा ब्रह्मदेव को सपने में वहीं पर मंदिर बनाने को कहा.

मनोकामना होती है पूरी
नवरात्र के नौ दिनों में इस मंदिर में श्रद्धा और भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ता है. अपनी मनोकामना लिए भक्य यहां लंबी कतारें लगा कर मां का दर्शन करते हैं.

Intro:एंकर - महासमुंद से 24 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों पर मां खल्लारी विराजमान है मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से शहर लगा सकते हैं कि यहां पर श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए दूर-दूर से माता के दर्शन को आते हैं ऐसा माना जाता है जो दंपती संतान सुख से वंचित है वह संतान प्राप्ति मनोकामना के लिए ना सिर्फ माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं बल्कि यहां पर मनोकामना ज्योति भी प्रचलित कर जाते हैं खल्लारी मंदिर में प्रति वर्ष शारदीय नवरात्रि और कंवर के नवरात्रि में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है मंदिर के पुजारी अरुण तिवारी का कहना है नवरात्रि के दिनों में मंदिर में माता के दर्शन के लिए आसपास के भक्तों के साथ ही दूसरे राज्यों के लगभग 30 से 35000 श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं छत्तीसगढ़ में ऐसे बहुत से ऐतिहासिक और प्राचीन स्थान है जिनका वर्णन रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है ऐसा ही एक स्थान है जिसे प्राचीन काल मे खलवाटिका के नाम से जाना जाता था खल वाटिका हैंहयवंशी राजा ब्रम्हदेव की राजधानी थी जिनका उल्लेख रायपुर और खल्लारी में मिले शिलालेख से मिलता है राजा ब्रह्मदेव शासनकाल में चौधरी शताब्दी में 1415 ईस्वी में देवपाल नाम के मोची ने माता का मंदिर बनवाया था वही इतिहास में वर्जित ये स्थान अपनी वैभवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है लेकिन इसके साथ ही दुर्गम पहाड़ी में माता खल्लारी के मंदिर स्थापना के बारे में कई तरह के और लोकमत सुनने को मिलते हैं मंदिर के पुजारी अरुण तिवारी का कहना है माता का आगमन यहां पर चौधरी शताब्दी में माना जाता है उनका कहना है कि प्राचीन काल में माता महासमुंद के डेंचा गांव से निवास करती थी और वहां से खलारी में लगने वाले बाजार में शोलवी की 16 वी कन्या का रूप धारण करके आती थी माता का रूप लावणी देखकर एक बंजारा मोहित हो गया और वह माता के प्राप्त करने के लिए उनका पीछा करने लगा बंजारों से बचने के लिए माता पहाड़ी पर आ गई लेकिन बंजारा वहां भी आ गया तब माता ने बंजारे को श्राप देकर पाषाण में परिवर्तित कर दिया और स्वयं वहां विराज जीत हो गई इसके बाद माता खल्लारी ने तारकर्ली का राजा ब्रह्मदेव को सपने में वहीं पर मंदिर बनाने को कहा |कहते हैं लोगों का कहना है कि प्राचीन काल में माता की कनिष्ठ उंगली कीर्तन दिखाई देता था लेकिन समय के साथ लोगों की अधिक आवाजाही के कारण माता पूरी तरह पाषाण में बदल गई प्राचीन समय में से लेकर अब तक यानी शताब्दियों से नवरात्रि के समय यहां पर विशेष पूजा-अर्चना होती आ रही है।


Body:बाइट 1 - लक्ष्मी ध्रुव श्रद्धालु भिलाई से आई पहचान क्रीम कलर का सूट।

बाइट 2 - चित्रलेखा बाई साहू बोइरगांव से आई पहचान गुलाबी कलर का साड़ी गले में मंगलसूत्र कत्थे में सफेद बिंदी वाला ब्लाउस।

बाइट 3 - आराध्य मंगला रायपुर से आई पहचान क्रीम कलर का सूट और सर मैं सिंदूर।

बाइट 4 - अरुण तिवारी पंडित खलारी मंदिर पहचान डार्क पीले कलर का कुर्ता और कत्थे कलर का शॉल लपेटा हुआ।

हकीमुद्दीन नासिर etv भारत महासमुंद छत्तीसगढ़ मो 9826555052


Conclusion:
Last Updated : Oct 4, 2019, 7:47 AM IST
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