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महासमुंद में उम्मीद जगी है, लोग कह रहे हैं- दिवाली, मिट्टी के दीयों वाली

दिवाली के आते ही लोग मिट्टी के दिये खरीदते दिखाई देने लगे है. इससे कुम्हारों में भी खास उत्साह है.

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Published : Oct 19, 2019, 3:30 PM IST

मिट्टी के दिये

महासमुंद: दिवाली का त्योहार आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं और उनका पूरा परिवार जुट जाता है दीये बनाने में. जहां एक तरफ उनकी मेहनत से हमारा घर जगमगाता है, वहीं दूसरी तरफ दीये और मिट्टी से बने बर्तन बेचकर कुम्हारों का घर चलता है.

मिट्टी के दिये


दीये बनाने करीब 50 परिवार कुम्हारपारा में रहते हैं, जो मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने का काम करते हैं. इन्होंने बताया कि पहले बाजार में दीये 80 रुपए सैकड़ा के हिसाब से बेच रहे हैं, जिससे उनके परिवार का पालन-पोषण होता है. दीये बनाने वालों ने बताया कि एक परिवार लगभग 40 से 50 हजार दीया बनाता है और परिवार चलाने लायक मुनाफा कमा लेता है. हैं कुम्हारों का कहना है कि हम लोगों का पूरा परिवार दिवाली के दिए पर ही निर्भर रहता है.

beautiful lamp made by potters in mahasamund
दिये बनाता कुम्हार

इस बार लोगों में थोड़ी जागरूकता देखने को मिली है. स्थानीय महिला मीता साहू ने कहा कि वो अपने घर के लिए मिट्टी के दीये लेती हैं. महिला ने दूसरों से भी मिट्टी की दीये खरीदने की अपील की है. मीता ने कहा कि इससे न सिर्फ कुम्हारों की मदद होगी बल्कि वे खुश भी होंगे. वहीं युवती वेद मति भरद्वाज ने बताया कि इससे पर्यावरण को साफ रखने में मदद मिलेगी. युवती ने कहा कि मिट्टी के दीये जलाने के बाद मिट्टी में मिल जाती है. प्रकृति लौटकर प्रकृति के पास चली जाती है.

beautiful lamp made by potters in mahasamund
कुम्हारों में खास उत्साह

प्लास्टिक और अन्य चीजों से बने दीये से नुकसान होता है. इस तरह से एक उम्मीद जगी है कि चाहे पर्यावरण संरक्षण हो या देसी चीजों के प्रति लौटने की रुचि, इसी बहाने कुम्हारों के फिर अच्छे दिन लौट आएंगे. ETV भारत आपसे फिर अपील करता है कि आप कुम्हारों से मिट्टी के दीये खरीदें, जिससे हमारे साथ-साथ उनकी दिवाली भी रोशन हो जाए.

महासमुंद: दिवाली का त्योहार आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं और उनका पूरा परिवार जुट जाता है दीये बनाने में. जहां एक तरफ उनकी मेहनत से हमारा घर जगमगाता है, वहीं दूसरी तरफ दीये और मिट्टी से बने बर्तन बेचकर कुम्हारों का घर चलता है.

मिट्टी के दिये


दीये बनाने करीब 50 परिवार कुम्हारपारा में रहते हैं, जो मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने का काम करते हैं. इन्होंने बताया कि पहले बाजार में दीये 80 रुपए सैकड़ा के हिसाब से बेच रहे हैं, जिससे उनके परिवार का पालन-पोषण होता है. दीये बनाने वालों ने बताया कि एक परिवार लगभग 40 से 50 हजार दीया बनाता है और परिवार चलाने लायक मुनाफा कमा लेता है. हैं कुम्हारों का कहना है कि हम लोगों का पूरा परिवार दिवाली के दिए पर ही निर्भर रहता है.

beautiful lamp made by potters in mahasamund
दिये बनाता कुम्हार

इस बार लोगों में थोड़ी जागरूकता देखने को मिली है. स्थानीय महिला मीता साहू ने कहा कि वो अपने घर के लिए मिट्टी के दीये लेती हैं. महिला ने दूसरों से भी मिट्टी की दीये खरीदने की अपील की है. मीता ने कहा कि इससे न सिर्फ कुम्हारों की मदद होगी बल्कि वे खुश भी होंगे. वहीं युवती वेद मति भरद्वाज ने बताया कि इससे पर्यावरण को साफ रखने में मदद मिलेगी. युवती ने कहा कि मिट्टी के दीये जलाने के बाद मिट्टी में मिल जाती है. प्रकृति लौटकर प्रकृति के पास चली जाती है.

beautiful lamp made by potters in mahasamund
कुम्हारों में खास उत्साह

प्लास्टिक और अन्य चीजों से बने दीये से नुकसान होता है. इस तरह से एक उम्मीद जगी है कि चाहे पर्यावरण संरक्षण हो या देसी चीजों के प्रति लौटने की रुचि, इसी बहाने कुम्हारों के फिर अच्छे दिन लौट आएंगे. ETV भारत आपसे फिर अपील करता है कि आप कुम्हारों से मिट्टी के दीये खरीदें, जिससे हमारे साथ-साथ उनकी दिवाली भी रोशन हो जाए.

Intro:एंकर - दिवाली का त्यौहार आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं और कुमार का पूरा परिवार दिया बनाने में जुड़ जाता है कुम्हार के बनाए दियो से जहां लोगों के घर जगमगाते हैं वही दिये मिले पैसों से कुम्हार के पूरे परिवार का भरण पोषण होता है ईटीवी भारत की टीम जब महासमुंद स्थित कुमार पारा खेत कुम्हार परिवार से मिली तो उन्होंने बताया कि महासमुंद नगर के कुमारपारा के कुम्हार व्यवसाय से जुड़े लगभग 50 परिवार यहां निवासरत है जिन का मुख्य व्यवसाय की मिट्टी के दीए खिलौने मूर्ति आदि बनाना है।





Body:वीओ 1 - कुम्हार व्यवसाय के लोगों ने बताया कि सबसे पहले मिट्टी लाते हैं फिर उससे गूथते तत्पश्चात गुथे मिट्टी को चार्ट पर रख कर दिया का आकार देते हैं उसके बाद दिए को पकाते हैं ओके हुए दिए को बाजार में ले जाकर ₹80 प्रति सैकड़ा के हिसाब से बेचते हैं और उससे मिले पैसों से उनके परिवार का भरण पोषण होता है एक परिवार लगभग 40 से 50 हजार दिया बनाता है और खर्च काटकर 25 से 30 हज़ार मुनाफा कमा लेता है कुमार परिवार इसके अलावा मूर्ति खिलौना अभी भी बनाते हैं कुम्हारों का कहना है कि हम लोगों का पूरा परिवार दिवाली के दिए पर ही निर्भर रहता है।


Conclusion:वीओ 2 - कुम्हारों के दीयों के बारे में जब हमने लोगों की राय जानी तो उनका कहना है कुम्हारों के दिए हर किसी को लेना चाहिए और हम तो लेते ही हैं और वह दिए भी 10,20 नहीं सौ लेना चाहिए क्योंकि मिट्टी के दिए पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते और साथ ही हमारे कुम्हार भाइयों की साल भर की रोजी-रोटी होती है इन दिनों से हमारे घर तो जगमगाते ही हैं साथ में कुम्हारों के घर भी जगमगाते हैं मिट्टी के दिए कुछ लोग लेकर उसमें डेकोरेशन कर चाइना के दीयों से कई गुना अच्छे बना लेते हैं लोगों में जागरूकता दिख रही है सभी लोगों का कहना है कि मिट्टी के दीए से दिवाली मनाए और खुद भी खुश हो और उन्हें भी खुश करें।

बाइट 1 - अजय प्रजापति कुम्हार पहचान नीले कलर का फुल सेट।

बाइट 2 - पार्वती प्रजापति कुम्हार पहचान लाल साड़ी सर में स्कार्फ बांधा हुआ।

बाइट 3 - मीता साहू नागरिक गुलाबी कलर का साड़ी क्रीम कलर का ब्लाउज।

बाइट 4 - वेद मति भरद्वाज लाल कलर का दुपट्टा और सफेद कलर का सूट।

हकीमुद्दीन नासिर रिपोर्टर ईटीवी भारत महासमुंद छत्तीसगढ़ मो. 9826555052
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