कोरिया/मनेंद्रगढ़: छत्तीसगढ़ में 'पढ़ाई तुंहर दुआर' योजना की सफलता के बाद अब आंगनबाड़ियों के छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी सरकार 'अंगना म शिक्षा' कार्यक्रम चला रही है. कोरोनाकाल में लंबे समय से छोटे बच्चों के स्कूल बंद पड़े हैं. बच्चे घरों में कैद हैं. ऐसे में बच्चों में अनिवार्य शिक्षा की अलख जगाने के लिए 'अंगना म शिक्षा' कार्यक्रम कारगर साबित हो रहा है.
इस योजना के तहत प्राथमिक शाला से पूर्व बच्चों को उनकी माताओं के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना मकसद है. ताकि बच्चों को स्कूल खुलने के बाद किसी तरह की परेशानी न हो. बच्चे घर पर पढ़ सकें और पाठ्यक्रम की बातों को आसानी से समझ सकें.
'अंगना म शिक्षा' कार्यक्रम
कोरोना के चलते आंगनबाड़ी संचालित नहीं हो पा रहे हैं. लिहाजा छोटे बच्चे अपनी पढ़ाई भूलते जा रहे हैं. शासन ने इसे ध्यान में रखते हुए 'अंगना म शिक्षा' योजना की शुरुआत की है. बच्चे घर पर ही रह कर अपने माता से प्राथमिक शिक्षा ले सकें. जिसे उन्हें स्कूल खुलने पर पढ़ाई करने में परेशानी का सामना ना करना पड़े.
माताओं का प्रशिक्षण
'अंगना म शिक्षा' कार्यक्रम में आंगनबाड़ी केंद्रों में माताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें माताओं के सहयोग से बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है. इस योजना में 3 से 7 साल के बच्चों को शामिल किया गया है.बच्चों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, व्यक्तित्व विकास पर फोकस किया जा रहा है. विभिन्न एक्टिविटीज करवाई जा रही है. जिसमें पेंटिंग, खिलौने, विभिन्न गेम्स भी कराए जा रहे हैं. जिससे उनका विकास हो सके. वहीं उनकी झिझक को दूर करना, भाषा विकास के साथ पाठ्यक्रम से रूबरू करवाया जा रहा है.
गजब : इस गांव की पाठशाला में दादी से लेकर, बुआ, मामी और नानी तक हो रहीं साक्षर
वॉलिंटियर्स दे रहे सहयोग
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हाई सेकेंडरी स्कूल के छात्र भी अपना सहयोग दे रहे हैं. छात्र स्वेच्छा से माताओं और छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इन वॉलिंटियर का कहना है कि छोटे बच्चों को जैसा सिखाएंगे वे वैसा ही सीखते हैं. बच्चों को सिखाने की साइकोलॉजी अलग है. बच्चे खेल-खेल में ही सीखते हैं. उन्होंने बताया कि छोटे बच्चों और माताओं को पढ़ाने में उन्हें अच्छा लग रहा है.
1 महीने का कोर्स वर्क
माताओं को प्रशिक्षित कर रही टीचर्स का कहना है कि इस योजना के तहत माताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बच्चों को घर में किस तरह से खेल-खेल में पढ़ाना है. इसके लिए 1 महीने के लिए कोर्स तैयार किया गया है. फिर 1 महीने बाद बच्चों का टेस्ट लिया जाएगा जो जिले से आई टीम के निगरानी में होगा. टीम ही तय करेगी बच्चों ने कितना प्रोग्रेस किया है फिर उसके हिसाब से उन्हें और सिखाया जाएगा.
मां होती हैं बच्चों की पहली गुरु
कहा भी जाता है कि बच्चे की असली गुरु उसकी मां होती है. बच्चा स्कूल में बाद में सबकुछ सीखता ही है, लेकिन उससे पहले मां ही उसकी गुरु होती है. माताएं अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा के पूर्व बहुत से ज्ञान खेल-खेल में घर पर ही दे सकती है. साथ ही यह कार्य पूरे समाज का दायित्व है. माताओं की क्षमता वृद्धि कर इनकी सहभागिता प्राप्त करना इस योजना का उद्देश्य है.