एमसीबी: छत्तीसगढ़ के वनांचल जिलों में कोरिया और एमसीबी ऐसा जिला है, जहां इन दिनों महुआ बीनने की होड़ मची है. इन दिनों महुआ के साथ-साथ अन्य लघु वनोपजों जैसे, इमली, हर्रा, बेहड़ा, चरोटा बीज का भी संग्रहण किया जा रहा है. यहां के लोगों के लिए महुआ जीविकोपार्जन का प्रमुख जरिया है.
वनांचल क्षेत्रों के लोगों में महुआ फूल चुनने का उत्साह: भरतपुर के आदिवासी समुदाय के लोग महुआ और अन्य लघु वनोपज के संग्रहण के काम में जुटे हुए हैं. इन दिनों महुआ फूल चुनने का उत्साह वनांचल के लोगों में देखते ही बनता है. इन क्षेत्रों में सुबह होते ही महिलाओं की टोली अपने हाथों में खाली टोकरी लिए महुए के पेड़ों की ओर निकल पड़ती हैं. महुआ पेड़ के नीचे सुनहरी चादर के रूप में फैले, महुआ फूल का संग्रहण कर ये महिलाएं 4 से 6 घंटों में अपने घर लौट आती हैं.
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आदिवासियों की जीविका का साधन महुआ: आदिवासी बाहुल्य इलाकों में घर-घर महुआ से शराब तैयार किया जाता है. आदिवासी इलाकों के रहने वाले लोगों के जीविका का मुख्य साधन महुआ से शराब बनाना है. यदि महुआ शराब न हो तो शायद हर कार्यक्रम अधूरा ही रह जाता है. बच्चे के जन्म से लेकर शादी तक के हर प्रयोजनों में शराब की आवश्यकता लोगों को महसूस होती है. घर में आए मेहमानों का स्वागत भी आदिवासी महुआ शराब से करते हैं. कोई भी कार्यक्रम हो महुआ शराब को प्रमुखता दी जाती है. वनों के भीतर या वनों से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ के पेड़ की प्रमुखता से रखवाली की जाती है.
महुआ से होता है इनका भरण पोषण: इन आदिवासियों के परिवार का भरण पोषण इन्हीं महुआ पर निर्भर करता है. आदिवासी महिलाओं के लिए महुआ के पेड़ ही निवास स्थान बन जाता है. रात हो या दिन, आदिवासी परिवार महुआ को इकट्ठा कर दुकानदारों को बेचते हैं. बदले में उनसे तेल, हल्दी, मसाला आदि खरीदते हैं.
महुआ का सीजन: जो मजदूर बाहर काम करते हैं, वो भी अपने परिवार के साथ महुआ बीनने चले जाते हैं. क्योंकि इन दिनों महुआ का सीजन चल रहा है. इस बार महुआ काफी कम फला है. इसलिए आदिवासी बिना समय बर्बाद किए महुआ बीनने का काम कर रहे है. बता दें कि, महुआ आदिवासी समाज की महुआ से काफी अच्छी आमदनी होती है. महुआ की वर्तमान में कीमत करीब 30 रुपये प्रति किलो है.