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कोरिया: वनांचल में महुआ बना आजीविका का साधन

भरतपुर के कोटाडोल में ग्रामीण महुआ और अन्य लघु वनोपज के संग्रहण के काम में जुटे हुए हैं.वनांचल में महुआ आजीविका का साधन बना हुआ है.

Mahua becomes a means of livelihood
वनांचल में महुआ बना आजीविका का साधन
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Published : Apr 3, 2021, 7:32 PM IST

Updated : Apr 3, 2021, 11:05 PM IST

कोरिया: भरतपुर के ग्राम पंचायत कोटाडोल में ग्रामीण इन दिनों लघु वनोपज के संग्रहण का काम उत्साह से कर रहे हैं. तेंदूपत्ता संग्रहण के पारिश्रमिक दर में वृद्धि के साथ ही लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर खरीदी से ग्रामीण खुश हैं. आदिवासी समुदाय के लोग इन दिनों महुआ और अन्य लघु वनोपज के संग्रहण के काम में जुटे हैं. सुबह होते ही महिलाओं की टोली अपने हाथों में खाली टोकनी लिए हुए महुआ के पेड़ों की ओर निकल पड़ती है.

वनांचल में महुआ बना आजीविका का साधन

ग्रामीण महुआ के साथ-साथ अन्य लघु वनोपज जैसे- इमली, हर्रा, बेहड़ा, चरोटा बीज आदि का भी संग्रहण कर रहे हैं. ग्रामीण अपने मुंह और नाक को गमछा, रूमाल, मास्क आदि से अच्छी तरह से ढंक रहे हैं. इसके साथ ही फिजिकल डिस्टेंसिंग का भी पालन कर रहे हैं.

कोरिया के जंगलों में तेजी से बढ़ रही है आग

आदिवासियों के आजीविका का साधन बना महुआ

आदिवासी बाहुल्य इलाकों में घर-घर महुआ की शराब बनाई जाती है. इस समय महुआ आदिवासियों के जीविका का साधन बना हुआ है. आदिवासी महिलाओं के लिए महुआ के पेड़ ही निवास स्थान बन जाते हैं. आदिवासी परिवार महुआ को इकट्ठा कर दुकानदारों को बेचते हैं. बदले में उनसे भोजन की सामग्री जैसे तेल, हल्दी, मसाला आदि खरीदते हैं. महुआ की वर्तमान में कीमत करीब 50 रुपये प्रति किलो है.

कोरिया: भरतपुर के ग्राम पंचायत कोटाडोल में ग्रामीण इन दिनों लघु वनोपज के संग्रहण का काम उत्साह से कर रहे हैं. तेंदूपत्ता संग्रहण के पारिश्रमिक दर में वृद्धि के साथ ही लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर खरीदी से ग्रामीण खुश हैं. आदिवासी समुदाय के लोग इन दिनों महुआ और अन्य लघु वनोपज के संग्रहण के काम में जुटे हैं. सुबह होते ही महिलाओं की टोली अपने हाथों में खाली टोकनी लिए हुए महुआ के पेड़ों की ओर निकल पड़ती है.

वनांचल में महुआ बना आजीविका का साधन

ग्रामीण महुआ के साथ-साथ अन्य लघु वनोपज जैसे- इमली, हर्रा, बेहड़ा, चरोटा बीज आदि का भी संग्रहण कर रहे हैं. ग्रामीण अपने मुंह और नाक को गमछा, रूमाल, मास्क आदि से अच्छी तरह से ढंक रहे हैं. इसके साथ ही फिजिकल डिस्टेंसिंग का भी पालन कर रहे हैं.

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आदिवासियों के आजीविका का साधन बना महुआ

आदिवासी बाहुल्य इलाकों में घर-घर महुआ की शराब बनाई जाती है. इस समय महुआ आदिवासियों के जीविका का साधन बना हुआ है. आदिवासी महिलाओं के लिए महुआ के पेड़ ही निवास स्थान बन जाते हैं. आदिवासी परिवार महुआ को इकट्ठा कर दुकानदारों को बेचते हैं. बदले में उनसे भोजन की सामग्री जैसे तेल, हल्दी, मसाला आदि खरीदते हैं. महुआ की वर्तमान में कीमत करीब 50 रुपये प्रति किलो है.

Last Updated : Apr 3, 2021, 11:05 PM IST
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