कोरिया: शहर में हर साल की तरह इस साल भी भरतपुर में गौरा-गौरी उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया. यह लोक उत्सव हर साल लक्ष्मी पूजा (दिवाली) के बाद मनाया जाता है. इस पूजा में महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी शामिल होते हैं. धनतेरस के कुछ दिन पहले से ही इस उत्सव की तैयारियां शुरू हो जाती है.
लक्ष्मी पूजा के बाद शुरू होती है पूजा
गौरा-गौरी का जो मुख्य उत्सव होता है वह लक्ष्मी पूजा यानि दिवाली की रात से गोवर्धन पूजा के दिन तक चलता है. इस उत्सव के लिए ग्रामीण सबसे पहले मिट्टी से गौरा-गौरी (शिव-पार्वती) की मूर्ति बनाते हैं. मूर्ति बनाने के बाद इन मूर्तियों की लकड़ी के पीढ़े (पटा) पर स्थापना कर, मूर्तियों को सजाया जाता है.
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रचाई जाती है शिव-पार्वती की शादी
पीढ़े के चारों कोने में चार खंभे लगाकर उसमें दीया जलाया जाता है. जिसके बाद ग्रामीण गौरा-गौरी गीत के साथ नाच-गाना करते हैं. वहीं युवाओं के करतब के साथ परघाते हुए मूर्तियों को गौरा गुड़ी (स्थापना के लिए बनाई गई जगह) में लाया जाता है. जहां गौरा-गौरी की शादी रचाई जाती है.
प्रतिमा का किया जाता है विसर्जन
इस साल शहर में कई जगहों पर गौरा-गौरी की स्थापना की गई. जहां ग्रामीणों ने गौरा-गौरी की पूजा की. करीब 24 घंटे की पूजा के बाद दोपहर में प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया. यह उत्सव ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है. ग्रामीण इलाकों में हर गली-मोहल्लों में गौरा-गौरी की स्थापना की जाती है.