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हाय रे बेबसी! भूखे पेट परिवार को लेकर अपने घर लौट रहे मजदूर

लॉकडाउन की वजह से कोरिया से सैकड़ों की संख्या में मध्यप्रदेश के शहडोल के रहने वाले बैगा जनजाति के मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं. ये सभी मजदूर बरतुंगा में ईंट भट्ठे में काम करते हैं.

bad condition of labourers during lock down
लॉकडाउन में बेबस मजदूर
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Published : May 1, 2020, 5:32 PM IST

कोरिया: कोरोनावायरस के रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा मजदूर और किसानों को परेशान किया है. छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों के कई ऐसे मजदूर हैं जो लॉकडाउन की वजह से अपने घर नहीं जा पा रहे हैं.

लॉकडाउन में बेबस मजदूर

इसी कड़ी में सैकड़ों की संख्या में मध्यप्रदेश के शहडोल में रहने वाले बैगा जनजाति के लोग चिरमिरी में फंसे हुए हैं. ये लोग बरतुंगा में ईंट भट्ठे में काम करने वाले मजदूर हैं. लॉकडाउन के फिर से बढ़ने के आसार को देखते हुए ये सैकड़ों की संख्या में अपने घर शहडोल जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं.

बच्चों को कंधों पर लेकर निकले मजदूर

मजदूरों की मानें तो शासन की ओर से महज कुछ दिनों का राशन मुहैया कराया गया है, जिसकी वजह से इनके गुजर-बसर में काफी दिक्कतें आ रही हैं. ये सभी मजदूर अपने मासूम बच्चों को कंधों पर लेकर निकल पड़े हैं.

सरकार नहीं ले रही सुध

इस सबके बीच सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार के नुमाइंदों को इन मजदूरों के बारे में जानकारी होते हुए भी कोई पहल नहीं की गई है. अब देखना ये होगा कि शासन और प्रशासन कब इन बेसहारों को मदद पहुंचाती है और कब इनकी जिंदगी पटरी पर आती है.

कोरिया: कोरोनावायरस के रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा मजदूर और किसानों को परेशान किया है. छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों के कई ऐसे मजदूर हैं जो लॉकडाउन की वजह से अपने घर नहीं जा पा रहे हैं.

लॉकडाउन में बेबस मजदूर

इसी कड़ी में सैकड़ों की संख्या में मध्यप्रदेश के शहडोल में रहने वाले बैगा जनजाति के लोग चिरमिरी में फंसे हुए हैं. ये लोग बरतुंगा में ईंट भट्ठे में काम करने वाले मजदूर हैं. लॉकडाउन के फिर से बढ़ने के आसार को देखते हुए ये सैकड़ों की संख्या में अपने घर शहडोल जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं.

बच्चों को कंधों पर लेकर निकले मजदूर

मजदूरों की मानें तो शासन की ओर से महज कुछ दिनों का राशन मुहैया कराया गया है, जिसकी वजह से इनके गुजर-बसर में काफी दिक्कतें आ रही हैं. ये सभी मजदूर अपने मासूम बच्चों को कंधों पर लेकर निकल पड़े हैं.

सरकार नहीं ले रही सुध

इस सबके बीच सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार के नुमाइंदों को इन मजदूरों के बारे में जानकारी होते हुए भी कोई पहल नहीं की गई है. अब देखना ये होगा कि शासन और प्रशासन कब इन बेसहारों को मदद पहुंचाती है और कब इनकी जिंदगी पटरी पर आती है.

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