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चैतुरगढ़ की दुर्गम पहाड़ियों पर विराजमान हैं महिषासुर मर्दिनी - पहाड़ियों में विराजमान

महिषासुर मर्दिनी मां चैतुरगढ़ के दुर्गम पहाड़ियों पर विराजमान हैं, जिनके दर्शन के लिए श्रृद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

चैतुरगढ़ के दुर्गम पहाड़ियों में विराजमान हैं महिषासुर मर्दिनी
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Published : Oct 6, 2019, 4:13 PM IST

कोरबा: शारदीय नवरात्र में पूरे देश में भक्तिमय माहौल है. श्रद्धालु देवी मंदिरों में माथा टेक रहे हैं. मां शक्ति से सुख, शांति और समृद्धि की कामना कर रहे हैं. मनोकामना पूरा करने के लिए मां के दरबार में दीप प्रज्ज्वलित करवा रहे हैं. ऐसा ही नजारा देखने को मिला चैतुरगढ़ के महिषासुर मर्दिनी दरबार में, यहां मां चैतुरगढ़ की दुर्गम पहाड़ियों पर विराजमान हैं.

पैकेज.

पहाड़ी के शीर्ष पर 5 वर्ग मीटर का एक समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं. इनमें से तीन तालाब में पानी भरा है. नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का जत्था प्रदेश के साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी पहुंचता है और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कर मां से आशीर्वाद लेते हैं.

मंदिर की मान्यताएं

  • मान्यता है कि महिषासुर मर्दिनी मंदिर को चैतुरगढ़ के किले में स्थापित किया गया है. यहां महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है.
  • मंदिर से 3 किमी की दूरी पर शंकर गुफा है. ये गुफा एक सुरंग की तरह है. इस गुफा का आकार बहुत छोटा होने के कारण इसमें लेटकर जाना पड़ता है.
  • इस चैतुरगढ़ या लाफागढ़ किले की दीवारें एक समान न होने के कारण कई जगह छोटी तो कई जगह मोटी हैं. किले के द्वार बहुत ही खूबसूरत हैं.
  • इसमें कई सारे स्तंभ और मूर्तियां भी हैं. यहां एक बड़ा गुबंद है, जो मजबूत स्तंभों पर टिका है. गुंबद को आधार देने के लिए पांच स्तंभ बनवाए गए हैं.
  • किले के बगल में मौजूद पहाड़ी पर पांच तालाब हैं जो करीब 5 वर्ग किमी में फैले हैं.
  • यह पहाड़ जलहल्ली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 300 फीट है, यहां से निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है और शिवजी की अष्ट मूर्ति झलकती है.

कोरबा: शारदीय नवरात्र में पूरे देश में भक्तिमय माहौल है. श्रद्धालु देवी मंदिरों में माथा टेक रहे हैं. मां शक्ति से सुख, शांति और समृद्धि की कामना कर रहे हैं. मनोकामना पूरा करने के लिए मां के दरबार में दीप प्रज्ज्वलित करवा रहे हैं. ऐसा ही नजारा देखने को मिला चैतुरगढ़ के महिषासुर मर्दिनी दरबार में, यहां मां चैतुरगढ़ की दुर्गम पहाड़ियों पर विराजमान हैं.

पैकेज.

पहाड़ी के शीर्ष पर 5 वर्ग मीटर का एक समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं. इनमें से तीन तालाब में पानी भरा है. नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का जत्था प्रदेश के साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी पहुंचता है और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कर मां से आशीर्वाद लेते हैं.

मंदिर की मान्यताएं

  • मान्यता है कि महिषासुर मर्दिनी मंदिर को चैतुरगढ़ के किले में स्थापित किया गया है. यहां महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है.
  • मंदिर से 3 किमी की दूरी पर शंकर गुफा है. ये गुफा एक सुरंग की तरह है. इस गुफा का आकार बहुत छोटा होने के कारण इसमें लेटकर जाना पड़ता है.
  • इस चैतुरगढ़ या लाफागढ़ किले की दीवारें एक समान न होने के कारण कई जगह छोटी तो कई जगह मोटी हैं. किले के द्वार बहुत ही खूबसूरत हैं.
  • इसमें कई सारे स्तंभ और मूर्तियां भी हैं. यहां एक बड़ा गुबंद है, जो मजबूत स्तंभों पर टिका है. गुंबद को आधार देने के लिए पांच स्तंभ बनवाए गए हैं.
  • किले के बगल में मौजूद पहाड़ी पर पांच तालाब हैं जो करीब 5 वर्ग किमी में फैले हैं.
  • यह पहाड़ जलहल्ली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 300 फीट है, यहां से निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है और शिवजी की अष्ट मूर्ति झलकती है.
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शारदीय नवरात्रि में जहां पूरे भारत देश में भक्तिमय माहौल है, नवरात्रि में पूरे भक्तों का जत्था देवी मंदिरों में अपना माथा टेकने पहुंचते हैं ,पुराणों के अनुसार कहा जाता है ,कि देवी की महिमा अपार है, और यह दुर्गम पहाड़ियों में विराजमान होती हैं, आज हम आपको ऐसे ही दुर्गम और कई पहाड़ श्रृंखलाओं के बीच में विराजित माता. महिषासुर मर्दिनी चैतुरगढ़ के दर्शन करने जा रहे हैं............. Body:

V.O.....
कोरबा शहर से चैतुरगढ़ (लाफागढ़) करीब लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित है। यह पाली से 40 किलोमीटर उत्तर की ओर समुद्र तल से 3060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है, इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मंदिर निर्माण के संबंध में पूर्ण जानकारी अभी तक किसी को नहीं है परंतु यहां के वास्तुकला के हिसाब से भोपाल बैरागढ़ के वास्तु कला से मेल खाती है जिसको छठी छठी शताब्दी में शिवपुर के महाराजा बाल अर्जुन गुप्त वंश की शाखा राज्य बैरागढ़ से संबलपुर महानगर शिवपुर की महारानी के द्वारा गजटेड के अनुसार पाली के शिव मंदिर का निर्माण किया गया था जो लगभग 500 ईसवी छठी शताब्दी लगभग 1600वर्ष के पूर्व की है, पुरातत्वविदों ने इसे मजबूत प्राकृतिक किलो में शामिल किया गया है, चूंकि यह चारों ओर से मजबूत प्राकृतिक दीवारों से संरक्षित है केवल कुछ स्थानों पर उच्च दीवारों का निर्माण किया गया है।किले के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं जो मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार नाम से जाना जाता है।
पहाड़ी के शीर्ष पर 5 वर्ग मीटर का एक समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं इनमें से तीन तालाब में पानी भरा है। नवरात्रि पर्व में यहां श्रद्धालुओं का जत्था पूरे प्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी दर्शन करने पहुंचते हैं, और यहां मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित करते हैं यहां प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर स्थित है। महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति, 18 हाथों की मूर्ति, गर्भगृह में स्थापित होती है। मंदिर से 3 किमी दूर शंकर की गुफा स्थित है। यह गुफा जो एक सुरंग की तरह है, 25 फीट लंबा है। सच्चे मन से जाने वाले ही गुफा के अंदर जा सकता है क्योंकि यह व्यास में बहुत कम है।
चित्तौड़गढ़ की पहाड़ी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं और यह रोमांचक एह्साह का अनुभव प्रदान करती है।कई प्रकार के जंगली जानवर और पक्षी यहां पाए जाते हैं। मंदिर ट्रस्ट ने पर्यटकों के लिए कुछ कमरे भी बनाये।
नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा आयोजित की जाती है।

*चैतुरगढ़ के किले का इतिहास...*

प्रसिद्ध चैतुरगढ़ का किला छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में आता है। इस किले को लाफागढ़ किला नाम से भी जाना जाता है। इस किले का प्राकृतिक महत्व तो है ही लेकिन साथ ही इस किले को वास्तुकला की दृष्टि से देखा जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से चैतुरगढ़ किले को बहुत ही महत्व प्राप्त है। पुरातत्वविद इस किले को एक प्राकृतिक और मजबूत किला मानते है। कुछ का ऐसा भी मानना है मध्य प्रदेश के बैरागढ़ में मिले कुछ शिलालेख बताते है यह किला 933 कलचुरी के ज़माने का है और उस वक्त कलचुरी राजा का शासन था।

ऐसा माना जाता है की यहाँ का राजा हैहाया परिवार का था और उसे अठरा लड़के थे। उस राजा के लडको में से एक का नाम कलिंगा था और उस कलिंगा का लड़का कमला राजा था। कमला राजा ने तुमान पर कई सालो तक शासन किया था। लेकिन कमला राजा को रत्नराजा 1 ने हराया था।

लेकिन रत्नराजा के बाद पृथ्वीदेव ने शासन किया। ऐसा कहा जाता है की इस किले का निर्माण राजा पृथ्वीदेव ने करवाया था। भारत का पुरातत्व विभाग इस किले की देखभाल का काम देखता है।
प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर भी यही पर है। यहाँ के मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित की गयी है। इस मंदिर से 3 किमी की दुरी पर शंकर गुफा है। यह गुफा एक सुरंग की तरह है जो की 25 फूट की है। इस गुफा का आकार बहुत छोटा होने के कारण इसमें से रेंगते हुए ही जाना पड़ता है।

इस चैतुरगढ़ या लाफागढ़ किले की दीवारे एक तरह से ने ना होने के कारण हमें इसकी दीवारे कई जगह पर छोटी तो कई जगह पर मोटी देखने को मिलती है। किले के प्रवेश द्वार बहुत ही खुबसूरत तरीक़े से बनाया गया है। इसमें कई सारे स्तंभ और मुर्तिया भी देखने को मिलती है। यहा पर एक बहुत बड़ी गुबंद है जो मजबूत स्थम्भो पर बनायीं गयी है। इस गुबंद को आधार देने के लिए पाच स्तंभ बनवाये गए थे।

किले के बाजु में जो पहाड़ी है उसके आजूबाजू में पाच तालाब थे जो की करीब 5 वर्ग किमी में फैले हुए थे। उन पाच तालाबो में से तीनतालाब साल भर पानी से भरे रहते थे।किले को मेनका, हुम्कारा और सिंहद्वार नामके तीन सबसे अहम द्वार माने जाते है और चौथा द्वार गुप्त गुप्त है जो दक्षिण दिशा में है।

बहुत सारे किले को एक ही नाम दिया जाता है। लेकिन चैतुरगढ़ के किले को एक नहीं बल्कि दो नाम दिए गए है। और यही इस किले की खासियत है। इस किले को चैतुरगढ़ के साथ साथ लाफागढ़ किला नाम से भी जाना जाता है।

और सबसे बड़ी और चौकाने वाली बात यह है की यह किला इतना उचाई पर होने के बाद इसके सबसे ऊपर के इलाके में एक नहीं बल्की पुरे पाच तालाब है और उनमे से ज्यादातर तालाबो में साल भर पानी भरा रहता है।
यह पहाड़ जलहल्ली पर्वत श्रृंखला है यह पहाड़ उत्तर की तरफ जलहल्ली से ही जटाशंकरी जिसको अहिरण कहते हैं जिसकी ऊंचाई लगभग 300 फीट ऊपर है जहां से निरंतर जल प्रवाह हो रही है और शिव जी की अष्ट मूर्ति झलकती है जलहल्ली शिवजी के ब्रह्मानंद जैसे हैं मान्यता है कि इस द्वार से स्वर्ग लोग को जाते हैं, लोक मान्यता है कि सुरंग से कुबेर की पूरी तक कुबेर खजाना स्थित है इस खजाने में इतनी संपत्ति है कि पूरे विश्व के एक युग तक भरण पोषण किया जा सकता है

Conclusion:बाइट..

1. संस्थापक न्यासी गिरधारी लाल पांडे,.....

2. दर्शनार्थी
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