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SPECIAL: धमाकों से हर रोज खौफ में कटती है जिंदगी, जीना हुआ मुहाल

एसईसीएल की गेवरा खदान के मुहाने पर स्थित है रलिया गांव. यहां खदान में कोयला उत्खनन के लिए बारूद लगाकर जब विस्फोट किया जाता है, तब पूरा गांव हिल जाता है. इससे कई मकानों की दीवारों में दरार पड़ गई है. आए दिन होने वाले धमाके से लोग खौफ में जिंदगी जीने को मजबूर हैं

blasting at gevra coal mine
धमाकों से हर रोज खौफ में कटती है जिंदगी
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Published : Oct 14, 2020, 8:00 AM IST

कोरबा: एसईसीएल (SECL) की बड़ी-बड़ी कोयला खदानों के पास रहने वाले ग्रामीणों का जीवन परेशानियों से घिरा हुआ है. हालात ये हैं कि खदान में उत्खनन के लिए होने वाले ब्लास्टिंग से ग्रामीणों के मकान में दरारें पड़ गई है. देखने में तो यह दरारें ग्रामीणों के मकानों पर दिखती हैं, लेकिन वास्तव में यह दरार उनके जीवन में पड़ गई है. जिससे ग्रामीण बेहद परेशान हैं. ब्लास्टिंग की वजह से ग्रामीणों की रात की नींद भी उड़ गई है.

धमाकों से हर रोज खौफ में कटती है जिंदगी

एसईसीएल (SECL) की कोयला खदानों के उत्खनन और उनके विस्तार के लिए ग्रामीणों की भूमि का अधिग्रहण तो किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों से ली गई उनके जमीन के बदले में सरकार ने जो प्रबंध किए हैं, वो कभी भी धरातल पर नहीं उतर पाते. जमीन के बदले उचित मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की लड़ाई जैसी चीजें अब भू-विस्थापितों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है. भू-विस्थापित संगठन के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप कहते हैं कि जमीन के बदले उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो पाती. हम लंबा संघर्ष करते आ रहे हैं, लेकिन समस्याओं का समाधान करने के प्रति अधिकारी कभी भी गंभीर नहीं दिखते. जिसके कारण ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ती है.

आधी जमीन का अधिग्रहण

कटघोरा विकासखंड के रलिया गांव के ग्रामीण हर रोज इन परेशानियों को झेल रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि एसईसीएल ने रलिया गांव की आधी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है. लेकिन आधे गांव को छोड़ दिया है. अब ग्रामीण कहते हैं कि लेना है तो पूरे गांव की जमीन ले लो, आधे गांव की जमीन लेकर आधे गांव को क्यों मुसीबत में डाला जा रहा है.

SPECIAL: ऐसा क्या है कि इस जमीन पर पैर रखते ही उछलने लगते हैं लोग

पुनर्वास बड़ी समस्या

खदान के लिए अपनी जमीन देने वाले ग्रामीणों के लिए पुनर्वास एक बड़ी समस्या है. जिस जमीन पर वह रहते हैं, उसे कोयला खदानों ने अधिग्रहित कर लिया है. लेकिन उसके बदले उन्हें पुनर्वास कहां दिया जाएगा इस बात का फैसला अब तक नहीं हो सका है. जिसके कारण ही ब्लास्टिंग से मकानों पर दरारें पड़ने के बाद भी ग्रामीण उस स्थान को छोड़ नहीं पा रहे हैं. रलिया और भिलाईबाजार जैसे गांव में एसईसीएल ने आंशिक अधिग्रहण किया है. मुख्य सड़क से 100 मीटर के भीतर तक के इलाकों का अधिग्रहण हो चुका है. जबकि मुख्य बस्तियों का अधिग्रहण नहीं किया गया है. अकेले रलिया गांव में ही लगभग 100 एकड़ निजी भूमि का अधिग्रहण हुआ है.

पानी की भी समस्या

खदान से लगे होने के कारण आसपास के गांव का भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. पेयजल के लिए ग्रामीण लगातार परेशान हो रहे हैं. देवी कुमारी और जनपद सदस्य प्रभा कंवर का कहना है कि समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन से लेकर एसईसीएल को कई बार पत्र लिखा जा चुका है. लेकिन कभी भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. ना ही समस्याओं का समाधान किया गया.

रिपोर्ट में भी खुलासा

कुछ समय पहले सिंघाली खदान के पास हुए भू धसान के लिए एसईसीएल प्रबंधन ने एक टीम बनाई थी. सर्वे किया गया था. इस रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ है कि खदानों में होने वाले गतिविधियों और इसके साइड इफेक्ट से लोगों के मकानों में दरार पड़ रही है. इन इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा के साथ ही उचित प्रबंध किए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं.

कोरबा: एसईसीएल (SECL) की बड़ी-बड़ी कोयला खदानों के पास रहने वाले ग्रामीणों का जीवन परेशानियों से घिरा हुआ है. हालात ये हैं कि खदान में उत्खनन के लिए होने वाले ब्लास्टिंग से ग्रामीणों के मकान में दरारें पड़ गई है. देखने में तो यह दरारें ग्रामीणों के मकानों पर दिखती हैं, लेकिन वास्तव में यह दरार उनके जीवन में पड़ गई है. जिससे ग्रामीण बेहद परेशान हैं. ब्लास्टिंग की वजह से ग्रामीणों की रात की नींद भी उड़ गई है.

धमाकों से हर रोज खौफ में कटती है जिंदगी

एसईसीएल (SECL) की कोयला खदानों के उत्खनन और उनके विस्तार के लिए ग्रामीणों की भूमि का अधिग्रहण तो किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों से ली गई उनके जमीन के बदले में सरकार ने जो प्रबंध किए हैं, वो कभी भी धरातल पर नहीं उतर पाते. जमीन के बदले उचित मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की लड़ाई जैसी चीजें अब भू-विस्थापितों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है. भू-विस्थापित संगठन के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप कहते हैं कि जमीन के बदले उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो पाती. हम लंबा संघर्ष करते आ रहे हैं, लेकिन समस्याओं का समाधान करने के प्रति अधिकारी कभी भी गंभीर नहीं दिखते. जिसके कारण ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ती है.

आधी जमीन का अधिग्रहण

कटघोरा विकासखंड के रलिया गांव के ग्रामीण हर रोज इन परेशानियों को झेल रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि एसईसीएल ने रलिया गांव की आधी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है. लेकिन आधे गांव को छोड़ दिया है. अब ग्रामीण कहते हैं कि लेना है तो पूरे गांव की जमीन ले लो, आधे गांव की जमीन लेकर आधे गांव को क्यों मुसीबत में डाला जा रहा है.

SPECIAL: ऐसा क्या है कि इस जमीन पर पैर रखते ही उछलने लगते हैं लोग

पुनर्वास बड़ी समस्या

खदान के लिए अपनी जमीन देने वाले ग्रामीणों के लिए पुनर्वास एक बड़ी समस्या है. जिस जमीन पर वह रहते हैं, उसे कोयला खदानों ने अधिग्रहित कर लिया है. लेकिन उसके बदले उन्हें पुनर्वास कहां दिया जाएगा इस बात का फैसला अब तक नहीं हो सका है. जिसके कारण ही ब्लास्टिंग से मकानों पर दरारें पड़ने के बाद भी ग्रामीण उस स्थान को छोड़ नहीं पा रहे हैं. रलिया और भिलाईबाजार जैसे गांव में एसईसीएल ने आंशिक अधिग्रहण किया है. मुख्य सड़क से 100 मीटर के भीतर तक के इलाकों का अधिग्रहण हो चुका है. जबकि मुख्य बस्तियों का अधिग्रहण नहीं किया गया है. अकेले रलिया गांव में ही लगभग 100 एकड़ निजी भूमि का अधिग्रहण हुआ है.

पानी की भी समस्या

खदान से लगे होने के कारण आसपास के गांव का भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. पेयजल के लिए ग्रामीण लगातार परेशान हो रहे हैं. देवी कुमारी और जनपद सदस्य प्रभा कंवर का कहना है कि समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन से लेकर एसईसीएल को कई बार पत्र लिखा जा चुका है. लेकिन कभी भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. ना ही समस्याओं का समाधान किया गया.

रिपोर्ट में भी खुलासा

कुछ समय पहले सिंघाली खदान के पास हुए भू धसान के लिए एसईसीएल प्रबंधन ने एक टीम बनाई थी. सर्वे किया गया था. इस रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ है कि खदानों में होने वाले गतिविधियों और इसके साइड इफेक्ट से लोगों के मकानों में दरार पड़ रही है. इन इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा के साथ ही उचित प्रबंध किए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं.

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