कोरबा: कोरबा जिले से सटे सरगुजा में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे आदिवासियों ने मदनपुर में हसदेव सम्मेलन का आयोजन (Hasdev conference organized in Madanpur) किया. 'हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष' (Hasdeo Aranya Bachao Sangharsh ) समिति द्वारा इस क्षेत्र में कोयला खदानों का विरोध (Protest Against Coal Mines) लगातार जारी है. इस क्षेत्र के आदिवासी कुछ एक्टिविस्ट के साथ मिलकर बीते एक दशक से कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं. आदिवासियों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. आदिवासियों का आरोप है कि सरकार उद्योगपतियों को बढ़ावा देने के नाम पर आदिवासियों की संस्कृति का विनाश करने पर तुली हुई है. आदिवासियों ने हाल ही में कोरबा से लेकर रायपुर तक की पदयात्रा भी की थी.
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सम्मेलन में इन बिन्दुओ पर चर्चा
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में स्थित परसा ईस्ट के बासन कोयला खनन परियोजना की वन स्वीकृति NGT द्वारा वर्ष 2014 में निरस्त की गई थी. NGT ने आदेश में कहा था कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र की जैवविविधता का अध्यनन कर केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय यह निर्णय ले कि उक्त खदान को पुनः वन स्वीकृति देना है या नहीं. इस आदेश के तारतम्य में प्रस्तावित परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति पर निर्णय लेने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ICFRE (Indian Council of Forestry Research And Education) और WII को अध्ययन का दायित्व सौंपा.
पिछले महीने ICFRE ने छत्तीसगढ़ सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में हसदेव अरण्य क्षेत्र के संरक्ष्ण सहित खनन के गंभीर दुष्परिणामों को इंगित करते हुए खनन कम्पनी के दबाव में यह अनुशंसा लिखी – "परसा ईस्ट के बासन कोल ब्लॉक में खनन चल रहा है और परसा की स्वीकृति एडवांस स्टेज में है. इसलिए इसे 4 कोल ब्लॉक में खनन विशेष शर्तों के साथ नियंत्रित हो सकता है."
इस अनुशंसा को आधार बनाकर कर केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय ने राज्य सरकार की सहमति से परसा कोल ब्लॉक की अंतिम वन स्वीकृति 22 अक्टूबर को जारी कर दी. हाल ही में WII की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई. जिसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध, जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है. इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद हैं. वर्तमान संचालित परसा ईस्ट बासन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए शेष सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल 'नो गो' घोषित किया जाए.
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इस रिपोर्ट में एक चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई, तो मानव हाथी संघर्ष (human elephant conflict Chhattisgarh) की स्थिति को संभालना लगभग नामुमकिन होगा. भारतीय वन्य जीव संस्थान ने हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में खनन पर प्रतिबन्ध की अनुशंसा की थी. वाबजूद इसके विपरीत ICFRE ने खनन के पक्ष में अनुशंसा लिखी है. स्पष्ट दिखाता है कि यह संस्थान खनन कम्पनी के दवाब में कार्य कर रही थी. इस रिपोर्ट पर आपत्ति की बजाए राज्य सरकार ने भी न सिर्फ सहमति जताई, बल्कि भारतीय वन्य जीव संस्थान चेतवानी को खनन कम्पनी के मुनाफे के लिए अनदेखा किया.
जारी है आंदोलन
पिछले एक दशक से हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आन्दोलनरत है. विपक्ष में रहते हुए स्वयं कांग्रेस पार्टी ने उनके आन्दोलन को अपना समर्थन दिया था. अब आदिवासियों को 300 किलोमीटर पैदल चलकर न्याय की गुहार लगाते हुए राजधानी आना पड़ा. मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि उनकी मांगों पर संज्ञान लेते हुए फर्जी ग्रामसभा की जांच की जाएगी, लेकिन उस पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई. परसा कोल ब्लॉक को वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 के तहत अंतिम आदेश को जारी करने की कोशिश की जा रही है.