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महिलाएं सुआ गीत गाकर करती हैं नई फसल का स्वागत, छत्तीसगढ़ की समृद्ध परंपरा

सुआ गीत छत्तीसगढ़ की प्राचीन परंपरा की एक छाप है. खासतौर पर जब किसानों द्वारा मेहनत से उगाई गयी फसल पक जाती है, जब किसान पहली फसल काटते हैं. इसी समय घर की महिलाएं सुआ गीत गाती हैं.tradition of chhattisgarh

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नई फसल का गीत गाकर स्वागत
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 11, 2023, 11:03 PM IST

Updated : Dec 12, 2023, 7:00 AM IST

नई फसल का गीत गाकर स्वागत

कोरबा: नई फसल के आने के बाद महिलाएं गांव और शहर तक घर-घर जाकर सुआ गीत गाते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं. कोरबा जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में फिलहाल महिलाएं सुआ गीत गाते हुए दिख जाती हैं. जो नई फसल कटने की खुशी मना रही हैं.

गीत के बदले मेहनताना, फिर गौरा गौरी की पूजा: महिलाएं गीत के बदले में मेहनतना भी लेती हैं. गीत गाकर और सुआ नृत्य नाच कर जो राशि एकत्र होती है. उससे महिलाएं धूमधाम से गौरा-गौरी की पूजा करती हैं. इस तरह से छत्तीसगढ़ में नई फसल का स्वागत किया जाता है. नई फसल कटने पर सुआ गीत गाना न सिर्फ समृद्धि का पैमाना माना जाता है. बल्कि यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध परंपरा का भी एक जीता जागता प्रमाण है. जो आज भी जीवित है.

लोककथाएं मशहूर, सुआ के जरिए संदेश: आमतौर पर सुआ गीत दीपावली के पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत है. छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी में भी सुआ का अर्थ 'तोता' होता है.जो रटी-रटायी बात बोलता है. इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस लोकगीत में महिलाएं तोते के माध्यम से संदेश देते हुए, अपने मन की बात बताती हैं. उन्हें यह विश्वास होता है कि तोता, उनके मन की बात प्रेमी तक पहुंचा देगा. इसलिए कई स्थानों पर सुआ गीत को वियोग गीत भी कहा जाता है. धान की कटाई के समय इस लोकगीत को उत्साह के साथ गाया जाता है. इसमे गौरा-गौरी यानी शिव-पार्वती के विवाह की रस्म भी पूरी की जाती है.

इस तरह गाया जाता है सुआ गीत: सुआ गीत गाने के लिए महिला खास तैयारी करती हैं. वह एक रंग की साड़ी पहनती हैं. इसके बाद मिट्टी के गौरा-गौरी बनाकर उसे जमीन पर दिया जाता है. उसके चारों ओर घूमकर सुआ गीत गाकर सुआ नृत्य किया जाता है. कुछ जगहों पर मिट्टी के सुआ यानी तोता बनाकर भी यह गीत गाया जाता है.

तरी हरी ना ना
मोर ना ना रे सुअना
कइसे के बन गे वो ह निरमोही
रे सुअना
कोन बैरी राखे बिलमाय
चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
रे सुअना
मन के लहर लहराय
देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
रे सुअना
बाती संग जाहंव लपटाय

पूर्वजों से मिली परंपरा को बढ़ा रहे हैं आगे: कोरबा जिले के हरदीबाजार क्षेत्र से शहर आकर सुआ नृत्य गाने पहुंचे पार्वती यादव कहती है कि, सुआ नृत्य का हमारे छत्तीसगढ़ में खास महत्व होता है. नई फसल कटने पर हम इसका स्वागत भी करते हैं. जो राशि एकत्र होती है, उससे धूमधाम से गौरा गौरी की पूजा करते हैं. हमारे पूर्वजों ने सुआ गीत और नृत्य के बारे में हमें बताया था. हम इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं धात्री पटेल कहती हैं कि, सुआ नृत्य काफी शुभ होता है. समृद्धि का प्रतीक भी है. इसे हम बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ करते हैं. हम सभी महिलाएं एक तरह की साड़ी पहनकर घर से निकलते हैं, और घर-घर जाकर सुआ नृत्य का प्रदर्शन करते हैं. यह परंपरा बीते कई सालों से छत्तीसगढ़ में चली आ रही है.

सुआ नृत्य पूर्वजों की देन है.एक परंपरा है जो समृद्ध है. इस अभी तक सहेज कर इन लोगों ने रखा है. ये अपने बच्चों को भी इस परंपरा के बारे में बताते हैं, और इसे आगे बढ़ाने की सीख देते हैं.

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नई फसल का गीत गाकर स्वागत

कोरबा: नई फसल के आने के बाद महिलाएं गांव और शहर तक घर-घर जाकर सुआ गीत गाते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं. कोरबा जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में फिलहाल महिलाएं सुआ गीत गाते हुए दिख जाती हैं. जो नई फसल कटने की खुशी मना रही हैं.

गीत के बदले मेहनताना, फिर गौरा गौरी की पूजा: महिलाएं गीत के बदले में मेहनतना भी लेती हैं. गीत गाकर और सुआ नृत्य नाच कर जो राशि एकत्र होती है. उससे महिलाएं धूमधाम से गौरा-गौरी की पूजा करती हैं. इस तरह से छत्तीसगढ़ में नई फसल का स्वागत किया जाता है. नई फसल कटने पर सुआ गीत गाना न सिर्फ समृद्धि का पैमाना माना जाता है. बल्कि यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध परंपरा का भी एक जीता जागता प्रमाण है. जो आज भी जीवित है.

लोककथाएं मशहूर, सुआ के जरिए संदेश: आमतौर पर सुआ गीत दीपावली के पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत है. छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी में भी सुआ का अर्थ 'तोता' होता है.जो रटी-रटायी बात बोलता है. इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस लोकगीत में महिलाएं तोते के माध्यम से संदेश देते हुए, अपने मन की बात बताती हैं. उन्हें यह विश्वास होता है कि तोता, उनके मन की बात प्रेमी तक पहुंचा देगा. इसलिए कई स्थानों पर सुआ गीत को वियोग गीत भी कहा जाता है. धान की कटाई के समय इस लोकगीत को उत्साह के साथ गाया जाता है. इसमे गौरा-गौरी यानी शिव-पार्वती के विवाह की रस्म भी पूरी की जाती है.

इस तरह गाया जाता है सुआ गीत: सुआ गीत गाने के लिए महिला खास तैयारी करती हैं. वह एक रंग की साड़ी पहनती हैं. इसके बाद मिट्टी के गौरा-गौरी बनाकर उसे जमीन पर दिया जाता है. उसके चारों ओर घूमकर सुआ गीत गाकर सुआ नृत्य किया जाता है. कुछ जगहों पर मिट्टी के सुआ यानी तोता बनाकर भी यह गीत गाया जाता है.

तरी हरी ना ना
मोर ना ना रे सुअना
कइसे के बन गे वो ह निरमोही
रे सुअना
कोन बैरी राखे बिलमाय
चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
रे सुअना
मन के लहर लहराय
देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
रे सुअना
बाती संग जाहंव लपटाय

पूर्वजों से मिली परंपरा को बढ़ा रहे हैं आगे: कोरबा जिले के हरदीबाजार क्षेत्र से शहर आकर सुआ नृत्य गाने पहुंचे पार्वती यादव कहती है कि, सुआ नृत्य का हमारे छत्तीसगढ़ में खास महत्व होता है. नई फसल कटने पर हम इसका स्वागत भी करते हैं. जो राशि एकत्र होती है, उससे धूमधाम से गौरा गौरी की पूजा करते हैं. हमारे पूर्वजों ने सुआ गीत और नृत्य के बारे में हमें बताया था. हम इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं धात्री पटेल कहती हैं कि, सुआ नृत्य काफी शुभ होता है. समृद्धि का प्रतीक भी है. इसे हम बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ करते हैं. हम सभी महिलाएं एक तरह की साड़ी पहनकर घर से निकलते हैं, और घर-घर जाकर सुआ नृत्य का प्रदर्शन करते हैं. यह परंपरा बीते कई सालों से छत्तीसगढ़ में चली आ रही है.

सुआ नृत्य पूर्वजों की देन है.एक परंपरा है जो समृद्ध है. इस अभी तक सहेज कर इन लोगों ने रखा है. ये अपने बच्चों को भी इस परंपरा के बारे में बताते हैं, और इसे आगे बढ़ाने की सीख देते हैं.

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Last Updated : Dec 12, 2023, 7:00 AM IST
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