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SPECIAL: कुम्हारों की दिवाली काली कर रहे हैं गोबर के दीये, नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये

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Published : Nov 3, 2020, 9:49 PM IST

एक तरफ सरकार गोबर को बढ़ावा दे रही है तो वहीं यही गोबर कुम्हारों की रोजी-रोटी छीनता नजर आ रहा है. दिवाली पर लगभग हर जिले में गोबर के दीये बनाए जा रहे हैं. जिससे मिट्टी के दीयों का कारोबार खत्म होता नजर आ रहा है.

The condition of potters in Korba is pathetic
गोबर के दीये मिट्टी के दीयों पर पड़ रहे भारी

कोरबा: दीपोत्सव में दूसरों का घर रोशन करने वाले कुम्हारों को बदहाली ने घेर रखा है. कुम्हारों ने सरकार से सवाल किया है कि नरवा, गरवा और घुरुवा और बाड़ी की महत्वाकांक्षा ने गोबर के दीयों को जन्म दिया. सरकार इन्हें बेशक बढ़ावा दे और इसे महिलाओं के स्वावलंबन से भी जोड़े, लेकिन इसमें उनका क्या दोष है? कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज उत्पादों ने पहले ही उनकी आजीविका पर ग्रहण लगा दिया था. इस वर्ष तो कोरोना वायरस और गोबर के दीयों ने मिट्टी के दीयों का कारोबार पूरी तरह से ही चौपट कर दिया है.

कुम्हारों का सरकार से सवाल

कुम्हारों की दिवाली पर लगा ग्रहण

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि मिट्टी का काम करने वाले कुम्हारों की दिवाली कैसे खुशहाल होगी. इनकी दिवाली कैसे मनेगी. नरवा, गरवा को बढ़ावा देने और इसे दूसरे लेवल पर ले जाने के लिए सरकार ने अब गोठानों में महिला समूह को गोबर के दीये बनाने का प्रशिक्षण दिया है. वर्तमान में अन्य जिलों से भी गोबर के दीये आयात किया जा रहे हैं, लेकिन कुम्हारों को न तो गोबर के दीये बनाना आता है, न तो उन्हें इनसे कोई सरोकार है.

The condition of potters in Korba is pathetic
कैसे मनेगी दिवाली

सरकार से मदद की गुहार

कुम्हार दो टूक कहते हैं कि सरकार हमारे बारे में क्यों नहीं सोचती? कुम्हारों का जीवन हर बीतते साल के साथ और भी मुश्किल होता जा रहा है. बदहाली के बीच किसी तरह उन्होंने इस पुश्तैनी कारोबार को जीवित तो रखा है, लेकिन अब इससे आजीविका चलाना किसी चुनौती की तरह ही नजर आ रहा है. पिछले कुछ सालों से चायनीज उत्पादों से उनका पारंपरिक कारोबार बुरी तरह से प्रभावित रहा. इस वर्ष रही सही कसर कोरोना वायरस और गोबर से निर्मित दीयों ने पूरी कर दी है. कुम्हार बेहद परेशान हैं, वह कह रहे हैं कि सरकार को हमारी बदहाली दूर करने की दिशा में भी कुछ पहल तो करनी ही चाहिए.

The condition of potters in Korba is pathetic
मिट्टी के दीयों की बिक्री हुई कम

100 से अधिक परिवारों की स्थिति एक जैसी

कोरबा जिले के सीतामणी क्षेत्र में कुम्हारों के लगभग 100 परिवार रहते हैं. इन सभी की स्थिति लगभग एक जैसी है, जो सरकारी योजनाओं से कोसों दूर हैं. कुछ परिवार तो ऐसे हैं जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक चाक तक नहीं मिला है. कुम्हारों का कहना है कि पिछले साल तक किसी तरह इनका मिट्टी का कारोबार चल रहा था, लेकिन इस साल दीवाली भी इनके लिए खुशहाली नहीं ला पाई है.

The condition of potters in Korba is pathetic
कोरोना काल में बदहाल हुए कुम्हार

दाम पिछले वर्ष से भी हो गए कम
मिट्टी के दीयों का व्यवसाय संभवत: इकलौता ऐसा व्यवसाय होगा, जिसके दाम बढ़ती महंगाई के साथ बढ़ने के बजाय घट रहे हैं. कुम्हार कहते हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने थोक व्यापारियों के साथ ही चिल्लर में भी दीये बेचे थे. जिसके 25 दर्जन के हिसाब से ठीक-ठाक दाम मिल गए थे, लेकिन इस वर्ष यह दाम इतने नहीं मिलने वाले है. दीयो के दाम घटकर इस वर्ष महज 20 रुपये प्रति दर्जन हो गए हैं.

The condition of potters in Korba is pathetic
कुम्हारों की हालत बदहाल

मिट्टी भी नहीं हो रही उपलब्ध
कुम्हार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई और चौतरफा दबाव ने तो उन्हें परेशान कर ही रखा है. लेकिन अब दीये बनाने के लिए मिट्टी का इंतजाम करना भी बेहद मुश्किलों भरा है. सरकार कहती तो है कि कुम्हारों को मिट्टी निशुल्क उपलब्ध करा दिया जाएगा, लेकिन धरातल की वास्तविकता कुछ और है. खनिज विभाग वाले उन्हें अकारण परेशान करते हैं, और मिट्टी के परिवहन में लगने वाला भाड़ा भी वहन करने में वह असमर्थ हैं. मिट्टी के दीये बनाने के लिए अब मिट्टी का इंतजाम भी बेहद कठिनाइयों भरा है.

The condition of potters in Korba is pathetic
मिट्टी के दीयों पर भारी पड़ रहे गोबर के दीये

लोकल उत्पादों को दिया जाए बढ़ावा

कुम्हार कहते हैं कि उनकी स्थिति में सुधार तभी आ सकता है, जब सिर्फ और सिर्फ लोकल उत्पादों को ही बढ़ावा दिया जाए. चायनीज उत्पादों या फिर बाहर से बनकर आने वाले मटके हर तरह के ऐसे उत्पादों पर रोक लगनी चाहिए. सिर्फ और सिर्फ हमारे बनाए दीये और मटके बाजार में बिकने चाहिए, ताकि उनकी बदहाली दूर हो.

The condition of potters in Korba is pathetic
परंपरा बचाने की जद्दोजहद

ये है स्थिति-

  • सीतामणी में रहने वाले कुल कुम्हार परिवार- 100
  • प्रति परिवार पिछले वर्ष तक बनाए गए दीयों की संख्या 1 से 3 लाख, इस वर्ष बना रहे महज 20 से 30 हजार
  • प्रतिवर्ष दिवाली में होने वाली आय 50 हजार से 1 लाख तक, इस वर्ष 20,000 की भी उम्मीद नहीं
  • पिछले वर्ष दीयों के दाम 25 रुपये प्रति दर्जन, इस वर्ष दीयों के दाम घटकर हो गए 20 रुपये प्रति दर्जन

कोरबा: दीपोत्सव में दूसरों का घर रोशन करने वाले कुम्हारों को बदहाली ने घेर रखा है. कुम्हारों ने सरकार से सवाल किया है कि नरवा, गरवा और घुरुवा और बाड़ी की महत्वाकांक्षा ने गोबर के दीयों को जन्म दिया. सरकार इन्हें बेशक बढ़ावा दे और इसे महिलाओं के स्वावलंबन से भी जोड़े, लेकिन इसमें उनका क्या दोष है? कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज उत्पादों ने पहले ही उनकी आजीविका पर ग्रहण लगा दिया था. इस वर्ष तो कोरोना वायरस और गोबर के दीयों ने मिट्टी के दीयों का कारोबार पूरी तरह से ही चौपट कर दिया है.

कुम्हारों का सरकार से सवाल

कुम्हारों की दिवाली पर लगा ग्रहण

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि मिट्टी का काम करने वाले कुम्हारों की दिवाली कैसे खुशहाल होगी. इनकी दिवाली कैसे मनेगी. नरवा, गरवा को बढ़ावा देने और इसे दूसरे लेवल पर ले जाने के लिए सरकार ने अब गोठानों में महिला समूह को गोबर के दीये बनाने का प्रशिक्षण दिया है. वर्तमान में अन्य जिलों से भी गोबर के दीये आयात किया जा रहे हैं, लेकिन कुम्हारों को न तो गोबर के दीये बनाना आता है, न तो उन्हें इनसे कोई सरोकार है.

The condition of potters in Korba is pathetic
कैसे मनेगी दिवाली

सरकार से मदद की गुहार

कुम्हार दो टूक कहते हैं कि सरकार हमारे बारे में क्यों नहीं सोचती? कुम्हारों का जीवन हर बीतते साल के साथ और भी मुश्किल होता जा रहा है. बदहाली के बीच किसी तरह उन्होंने इस पुश्तैनी कारोबार को जीवित तो रखा है, लेकिन अब इससे आजीविका चलाना किसी चुनौती की तरह ही नजर आ रहा है. पिछले कुछ सालों से चायनीज उत्पादों से उनका पारंपरिक कारोबार बुरी तरह से प्रभावित रहा. इस वर्ष रही सही कसर कोरोना वायरस और गोबर से निर्मित दीयों ने पूरी कर दी है. कुम्हार बेहद परेशान हैं, वह कह रहे हैं कि सरकार को हमारी बदहाली दूर करने की दिशा में भी कुछ पहल तो करनी ही चाहिए.

The condition of potters in Korba is pathetic
मिट्टी के दीयों की बिक्री हुई कम

100 से अधिक परिवारों की स्थिति एक जैसी

कोरबा जिले के सीतामणी क्षेत्र में कुम्हारों के लगभग 100 परिवार रहते हैं. इन सभी की स्थिति लगभग एक जैसी है, जो सरकारी योजनाओं से कोसों दूर हैं. कुछ परिवार तो ऐसे हैं जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक चाक तक नहीं मिला है. कुम्हारों का कहना है कि पिछले साल तक किसी तरह इनका मिट्टी का कारोबार चल रहा था, लेकिन इस साल दीवाली भी इनके लिए खुशहाली नहीं ला पाई है.

The condition of potters in Korba is pathetic
कोरोना काल में बदहाल हुए कुम्हार

दाम पिछले वर्ष से भी हो गए कम
मिट्टी के दीयों का व्यवसाय संभवत: इकलौता ऐसा व्यवसाय होगा, जिसके दाम बढ़ती महंगाई के साथ बढ़ने के बजाय घट रहे हैं. कुम्हार कहते हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने थोक व्यापारियों के साथ ही चिल्लर में भी दीये बेचे थे. जिसके 25 दर्जन के हिसाब से ठीक-ठाक दाम मिल गए थे, लेकिन इस वर्ष यह दाम इतने नहीं मिलने वाले है. दीयो के दाम घटकर इस वर्ष महज 20 रुपये प्रति दर्जन हो गए हैं.

The condition of potters in Korba is pathetic
कुम्हारों की हालत बदहाल

मिट्टी भी नहीं हो रही उपलब्ध
कुम्हार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई और चौतरफा दबाव ने तो उन्हें परेशान कर ही रखा है. लेकिन अब दीये बनाने के लिए मिट्टी का इंतजाम करना भी बेहद मुश्किलों भरा है. सरकार कहती तो है कि कुम्हारों को मिट्टी निशुल्क उपलब्ध करा दिया जाएगा, लेकिन धरातल की वास्तविकता कुछ और है. खनिज विभाग वाले उन्हें अकारण परेशान करते हैं, और मिट्टी के परिवहन में लगने वाला भाड़ा भी वहन करने में वह असमर्थ हैं. मिट्टी के दीये बनाने के लिए अब मिट्टी का इंतजाम भी बेहद कठिनाइयों भरा है.

The condition of potters in Korba is pathetic
मिट्टी के दीयों पर भारी पड़ रहे गोबर के दीये

लोकल उत्पादों को दिया जाए बढ़ावा

कुम्हार कहते हैं कि उनकी स्थिति में सुधार तभी आ सकता है, जब सिर्फ और सिर्फ लोकल उत्पादों को ही बढ़ावा दिया जाए. चायनीज उत्पादों या फिर बाहर से बनकर आने वाले मटके हर तरह के ऐसे उत्पादों पर रोक लगनी चाहिए. सिर्फ और सिर्फ हमारे बनाए दीये और मटके बाजार में बिकने चाहिए, ताकि उनकी बदहाली दूर हो.

The condition of potters in Korba is pathetic
परंपरा बचाने की जद्दोजहद

ये है स्थिति-

  • सीतामणी में रहने वाले कुल कुम्हार परिवार- 100
  • प्रति परिवार पिछले वर्ष तक बनाए गए दीयों की संख्या 1 से 3 लाख, इस वर्ष बना रहे महज 20 से 30 हजार
  • प्रतिवर्ष दिवाली में होने वाली आय 50 हजार से 1 लाख तक, इस वर्ष 20,000 की भी उम्मीद नहीं
  • पिछले वर्ष दीयों के दाम 25 रुपये प्रति दर्जन, इस वर्ष दीयों के दाम घटकर हो गए 20 रुपये प्रति दर्जन
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